प्रयागराज ब्यूरो । होली पर्व के मद्देनजर चंदा लेने वालों की टोली एक्टिव हो गई है। शहर में दुकानदारों से लेकर कई जगह मोहल्लों में होलिका दहन के नाम चंदा लिए जा रहे हैं। शहर के कई अपार्टमेंटों में भी चंदा करके उल्लास के साथ पर्व मनाने की तैयारी चल रही है। यथा शक्ति लोग टीम को खुले मन से चंदा दे रहे हैं। तैयारी में जुटे लोगों को होलिका दहन के शुभ मुहूर्त पर ध्यान देना जरूरी है। क्योंकि 24 मार्च को होलिका जलाई जाएगी और इस दिन भद्रा भी लग रहा है। पुरोहितों की मानें तो भद्रकाल में होलिका दहन वर्जित माना गया है।

घर-घर मांग रहे चंदा
रंगों और मिठास से भरी सतरंगी होली के पर्व की तैयारियां व खुशियां चारों तरफ दिखाई दे रही है। हर गली व मोहल्ले में लोग चंद युवाओं की टोलियां होलिका दहन की तैयारी में जुटी हैं। बात शहरी इलाकों की करें तो टोलियां यहां व्यापारियों व आम लोगों से घर-घर चंदा की वसूली कर रही हैं। वसूले गए चंदे के पैसे टोली के लोग होलिका दहन की तैयारी करते हैं। होलिका दहन के लिए लकड़ी व कंडे की व्यवस्था टीम के लोग चंदे के पैसे से ही करते हैं। चंदा के लिए प्रतिष्ठान या दरवाजे पर पहुंची टोली अपनी-अपनी क्षमता के अनुरूप लोग उन्हें चंदा दे रहे हैं। कटरा व चौक के व्यापारियों का कहना है कि साल भर का त्योहार है। बच्चे होलिका दहन या पर्व के लिए चंदा मांगते हैं तो इसमें गलत क्या है? बच्चे हैं त्योहारों पर वह होलिका लगाने जलाने में मेहनत भी तो करते हैं। चंदा हमें एक दूसरे से कनेक्ट करने का काम भी करता है। वहीं कई ऐसे अपार्टमेंट हैं जहां पर चंदे का पैसा जोड़कर इस पर्व को भव्य रूप देने की तैयारी है। यहां भी सभी एक जुट होकर होली के पर्व को इंज्वाय करने का प्लान बना चुके हैं।


जरूरी है शुभ मुहूर्त में होलिका दहन
होलिका दहन बस यूं ही किसी भी समय अपने टाइम व सुविधा के अनुरूप नहीं करना चाहिए। पुरोहितों की मानें हिन्दू धर्म के अनुसार हम होली को खुशी और सुख समृद्धि एवं आपसी भाई चारे को मजबूत करने के उद्देश्य से मनाते हैं। इसलिए यह शुभ कार्य शुभ मुहूर्त में किया जाना जरूरी है। बताते हैं कि 24 मार्च की रात होलिका दहन होगा। होलिका दहन भद्राकाल में नहीं करना चाहिए और 24 मार्च की सुबह 9.24 बजे से भद्रा लग जाएगा। यह भद्रता रात 10.27 बजे तक रहेगा। मतलब यह 24 मर्च की रात 10.28 बजे से लेकर रात 12 बजे तक ही होलिका दहन का शुभ योग है।


होलिका दहन में साइंटिफिक लॉजिक
होली पर्व सिर्फ धार्मिक मान्यताओं पर ही आधारित नहीं है। यह पर्व धार्मिक मान्यताओं व साइंटिफिक लॉजिक का काम्बो है।
होलिका दहन की वजह प्रहलाद की भक्ति व हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ही नहीं है।
पर्यावरण विद रजशेखर राज कहते हैं कि यह ऐसा समय होता है जब गेहूं और आलू जैसी अन्य फसलें तैयार होती हैं और मौसम पतझड़ वाला होता है।
पेड़ों की टहनियों से झड़े पत्तों का बाग बगीचों में ढेर लग जाता है। जिनके दरवाजे पर पेड़ हैं उनके दरवाजे पर पत्तियों का ढेर लग जाता है।
इस मौसम में न ज्यादा गर्मी होती और न ठंडी नतीजा फंगस फैलाने वाले वैक्टीरिया शरीर से टच कर जाते हैं।
ऐसी स्थिति में पत्तों व खेत में तैयार सरसों
जैसी तिलहनी व दलहनी फसलों के डंठल की भी भरमार हो जाती है।
इसलिए पत्तियों व इन डंठल आदि को एकत्रित करके जला जलाने से धुआं होता है। चूंकि लोग आग में कपूर व बालियां आदि डालते हैं इसलिए इसके प्रभाव से वातावरण शुद्ध हो जाता है।
साथ ही इस पर्व पर उबटन लगाने की परंपरा है। सरसो का उबटन एंटीवाइटिक लेप का काम करता है, जो शरीर की त्वचा को पतझड़ में झूखे पन एवं फंगस जैसी बीमारियों से बचाता है।
लगाए गए उबटन यानी बुकवा को होलिका में जलाने से शरीर की गंदगी व इंफेक्शन दूसरों में फैलने की संभावना भी कम हो जाती है।
इसके बाद सभी एक दूसरे से हंसीखुशी गले मिलकर स्वस्थ व सुखमय जीवन की कामना करते हैं।


भ्रदा काल में होलिका दहन करना वर्जित है। शुभ मुहूर्त में ही होलिका दहन करना चाहिए। रविवार की रात करीब दो घंटे ही होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है।
पं। मनोज तिवारी, ज्योतिषाचार्य रसूलाबाद