ऑनलाइन से लेकर ऑफलाइन शिक्षा व उसके बाद टीचर्स की ट्रेनिंग ने शिक्षकों को कर दिया पूरी तरह से व्यस्त

परिवार के लिए समय निकालने से लेकर मानसिक, शारीरिक व आर्थिक संकट से हो रहे दो चार

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दिन की शुरुआत होती है जूम लिंक शेयर करने से। कम से कम 40 मिनट की छह क्लासेज में लाइव होना पड़ता है। कॉलेज में भी क्लास लेनी है और लाइव क्लास भी लेनी है। इसके बाद स्टूडेंट्स के काम की चेकिंग। फिर शुरू हो जाती है नेक्स्ट डे की प्लानिंग। छात्रों के लिए लेसन प्लान की तैयारी। इसका डिटेल भी शाम को ही स्टूडेंट्स के ग्रुप में शेयर करना होता। फिर शुरू हो जाती है खुद की क्लास ताकि क्लास में आने वाली क्वैरीज का आन द स्पॉट साल्यूशन दिया जा सके। बर्डेन यहीं खत्म नहीं होता। इसके बाद वीडियो बनानी पड़ती है ताकि उसे ग्रुप में शेयर किया जाय। मकसद है कि बच्चों से कुछ मिसिंग हो गया है तो उसे रीकॉल कराया जा सके। जी हां, आजकल कुछ ऐसी ही हो चली है शिक्षकों की लाइफ। सर्वाधिक सुकून से सर्वाधिक व्यस्त में कन्वर्ट हो चुकी है शिक्षकों की नौकरी।

कांवेंट स्कूल में लेक्चरर के रूप में तैनात अनीता श्रीवास्तव बताती हैं कि कोविड काल में टीचर्स पर चौतरफा मार पड़ी है। सैलरी कट होने लगी। इस नाम पर कि फीस नहीं आ रही है। कब पूरी सैलरी मिलेगी? इसका कोई ठिकाना नहीं है। यह झटका अलग है। पहले हमें सिर्फ स्कूल जाने की टेंशन रहती थी। भले ही स्कूल में शाम हो जाय लेकिन उसके बाद कोई टेंशन नहीं होती थी। कोरोना काल के बाद क्लासेज शुरू हो चुकी हैं। स्टूडेंट्स के लिए क्लास अटेंड करना जरूरी नहीं है। इससे डबल बर्डेन आ गया है। क्लास में आने वाले बच्चों को अटेंड करो साथ में आनलाइन क्लासेज भी रन कराएं। अब चूंकि पूरा कम्युनिकेशन ह्वाट्सएप या टेलीग्राम पर हो रहा है। इसमें पैरेंट्स के साथ कॉलेज मैनेजमेंट जुड़ा है तो रिस्क लेने का कोई चांस ही नहीं है। क्लासेज ओवर होने के साथ नेक्स्ट डे की प्लानिंग में लग जाना होता है। इधर, बीच में आनलाइन दीक्षा ट्रेनिंग लेना अनिवार्य कर दिया गया है। इस वीडियो को भी पूरे कंसंट्रेशन के साथ देखना पड़ता है क्योंकि बीच बीच में सवाल आते हैं और उसका जवाब देना होता है। इसके बाद नेक्स्ट डे का प्लान तैयार करके शेयर करना होता है। सुबह आठ बजे से शुरू होने वाली क्लास का शेडयूल एक दिन पहले रात में ही करना होता है। इससे अब पूरे 24 घंटे की जॉब हो गयी है।

वर्तमान कोविड समस्या काल में शहरी एवं स्थापित विद्यालयों ने तो ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षण शुल्क व्यवस्था को तदनुरूप अपना लिया है, परंतु ग्रामीण एवं नये शिक्षण शिक्षण संस्थानों में जहां एक ओर पर्याप्त मोबाइल लैपटॉप आदि घर में उपलब्ध नहीं है एवं नेटवर्क की समस्या है वहीं अभिभावकों द्वारा शिक्षण शुल्क के मामले में भी विद्यालय से सहयोग न करने के कारण अध्यापकों एवं कर्मचारियों के वेतन एवं विद्यालय के रख-रखाव पर भी पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इस समस्या के साथ-साथ अभिभावकों एवं विद्यालय प्रबंधकों को भी लचीला रूप रखना होगा।

संजय शुक्ला, डायरेक्टर, स्पि्रंगर पब्लिक स्कूल, प्रयागराज

शिक्षकों ने भी इस कोरोना काल में अपने जान को जोखिमि में डाल कर विद्याíथयों के हितों को ध्यान में रखते हुए ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरह से अपने विद्याíथयों के पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आने दी है। देखा जाए तो शिक्षक चौबीसों घंटे अपने विद्याíथयों के लिए तत्पर हो कार्य कर रहें हैं, लेकिन दुर्भाग्य वश कुछ अभिभावकों को शिक्षकों के इस त्याग का मूल्य समझ में नहीं आता और वे अपने पाल्यों की फीस जमा नहीं कर रहे हैं। जिसका खामियाजा शिक्षकों के वेतन कटौती के रूप में शिक्षण संस्थानों में देखने को मिल रहा है।

संजय श्रीवास्तव,सचिव, राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस, प्रवक्ता रसायन शास्त्र, टैगोर पब्लिक स्कूल

इस कोरोना काल में शिक्षक अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं। शिक्षक जहां एक ओर ऑनलाइन, ऑफलाइन क्लास से स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे हैं वहीं प्राइवेट एवं नये शिक्षण संस्थानों के लिए यह समय बहुत ही प्रतिकूल है। हमारी ओर से सभी अभिभावकों से अपील की जाती है कि वे अपने पाल्यों की नियमित फीस विद्यालय में जमा करें। जिससे शिक्षा जगत से जुड़े हर एक व्यक्ति अपने दायित्व को ईमानदारी से निभाता रहे।

प्रशांत तिवारी, पुलिस माडर्न स्कूल, धूमनगंज प्रयागराज

सुबह से शुरू हुई ऑनलाइन क्लास से लेकर कॉलेज में ऑफलाइन क्लास व साथ ही शिक्षकों की ऑनलाइन ट्रेनिंग आदि को लेकर शिक्षक की लाइफ स्टाइल को तो चेंज किया है, पर इतनी मेहनत के बाद भी बच्चों को पूरा रिस्पांस नहीं मिल पाने का दुख भी होता है। बहुत से ऐसे बच्चे है जो दूर-दराज एरिया से आते हैं वहां नेटवर्क की प्रॉब्लम है तो बहुत से स्टूडेंट के पास स्मार्ट फोन नहीं होने से क्लास का लाभ नहीं हो पा रहा है। ऐसे परिस्थिति में दुख तो होता है, पर किया ही क्या जा सकता है।

सलोनी अग्रवाल, असिस्टेंट टीचर, आर्य कन्या इंटर कॉलेज

कॉलेज खुल गया है, ऑफलाइन क्लास भी शुरू हो गई है। शिक्षक भी क्लास में पहुंच रहे हैं, पर वर्तमान परिस्थिति में छात्रों की उपस्थिति बहुत ही कम हो रही है। वहीं दूसरी ओर ऑनलाइन क्लास के जरिये बच्चों को शिक्षा देने का प्रयास किया जा रहा है, पर शिक्षक के सामने भी कई समस्या आ रही है। जहां एक ओर जहां डाटा का खर्च तो बढ़ा है। इसके अलावा नेटवर्क की भी बहुत समस्या आती है। साथ ही अलग-अलग टॉपिक पर रिकार्डिग करने में भी समस्या आती है। आखिर टॉपिक की रिकार्डिग किससे कराया, फिर उसको डाउनलोड करने से लेकर अन्य टेक्निकल प्रॉब्लम से दो चार होना पड़ रहा है।

डाक्टर आर एक अवस्थी, एसोसिएट प्रोफेसर, कुलभाष्कर आश्रम पीजी कॉलेज, प्रयागराज

वैश्विक महामारी की इन विषम परिस्थितियों में विद्याíथयों को सुचारू एवम निर्वाध रूप से शिक्षा देना न केवल अभिभावकों अपितु शिक्षकों के लिए भी एक चुनौती है। फिर भी शिक्षक इस चुनौती की डट कर मुकाबला करते हुए पूर्ण कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपना दायित्व निभाने में कोई कोर कसर नही छोड़ रहे हैं। फिर भी इस पूरी मेहनत का फल स्टूडेंट्स तक नहीं पहुंच पा रहा है, उसका बहुत बड़ा कारण है कि ऑनलाइन में बच्चों को शिक्षक जो बताना चाहता है वह सम्भव नहीं हो पा रहा है वहीं ऑफलाइन क्लास तो स्टार्ट हो गया है, पर अभिभावक कोरोना की वजह से अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। जिस वजह से स्कूलों में बच्चों का प्रजेंट बहुत कम है।

डॉ.बीएल पाल, वरिष्ठ शिक्षक, राजकीय इंटर कॉलेज, प्रयागराज