प्रयागराज ब्यूरो । कैंसर जानलेवा है। यह बताने की जरूरत नहीं है। जिनको कैंसर हुआ है वह यह जानकर ही हिम्मत हार जाते हैं। अधिकतर में जीने की इच्छाशक्ति का अभाव होने लगता है। लेकिन, बिरले होते हैं जो सही इलाज और दृढ़ संकल्प और जिंदादिली के साथ कैंसर जैसी बीमारी को मात देते हैं। बता दें कि जिले में हर साल दस हजार से अधिक कैंसर के नए मामले दस्तक देते हैं और इसमें से 12 से 15 फीसदी इस बीमारी को मात देने में सफल रहते हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही लोगों के बारे में जिन्होंने कैंसर को हराकर जिंदगी की जंग जीत ली है।

केस नंबर एक- प्रतापगढ़ के रहने वाले जयलाल को लगभग ढाई साल पहले पेट में अचानक दर्द हुआ। इसके बाद यह दर्द लगातार बना रहने लगा। भूख नही लगती थी। अपच बना रहता था। जब जांच कराई तो बड़ी आंत में कैंसर निकला। इलाज के लिए वाराणसी स्थित टाटा मेमोरियल चले गए लेकिन वहां इलाज से मना कर दिया गया। बताया गया कि कैंसर छोटी आंत तक पहुंच गया है। लेकिन जयलाल ने हिम्मत नही हारी। वह प्रयागराज के एसआरएन अस्पताल पहुंचे। यहां पर उन्होंने डॉक्टरों से बातचीत की और इलाज शुरू कराने की अपील की। उन्होंने काम्प्लिकेटेड होते हुए भी सर्जरी के लिए हामी भरी। हालांकि इसमें जान का खतरा था, फिर भी मरीज पीछे नही हटा। डॉॅक्टरों ने मेजर सर्जरी का कैंसर के हिस्से को काटकर निकाला। मरीज को लगातार आब्जर्वेशन पर रखा गया। जयलाल कहते हैं कि खानपान से लेकर रोजाना की लाइफ स्टाइल में कई बदलाव किए गए। दो साल तक नियम संयम से रहे। दो माह पहले बॉडी के डिस्चार्ज के रास्ते की सर्जरी कर उसे नार्मल किया गया। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं। वह कहते हैं कि हिम्मत नही हारी जाए तो कैंसर को भी हराया जा सकता है।

केस नंबर दो- मेजा के रहने वाले पचास वर्षीय रामचरन पेशे से किसान हैं। दो साल पहले उनको जांच में लीवर कैंसर बताया गया। यह सुनकर वह हताश हो गए। जिंदगी जीने के सभी रास्ते बंद नजर आए। कई जगह इलाज के लिए गए लेकिन फायदा नही हुआ। मर्ज बढ़ता जा रहा था। लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी। डेढ साल पहले वह एसआरएन अस्पताल के आंकोलाजी विभाग पहुंचे। उन्हें बताया गया कि मेजर आपरेशन होना है। लीवर के बाएं हिस्स को निकाल दिया जाएगा। इसलिए काफी सावधानी बरतनी होगी। बाकी जीवन संयम के साथ बिताना होगा। दवाएं समय से लेनी होंगी। बिल्कुल भी निराश नही होना है। रामचरन इसके लिए तैयार थे। आपरेशन के बाद उनकी हालत में सुधार होने लगा। परिवार में उनकी पत्नी और एक बेटा है। बताते हैं कि सरकारी अस्पतालों में इलाज मौजूद है। जो लोग यह समझते हैं कि पैसा नही होने पर इलाज नही होगा, यह भी सही नही है। बस हिम्मत नही हारनी है।

केस नंबर तीन- 26 साल की शिवानी कोरांव की रहने वाली हैं। वह भी बाकी कैंसर मरीजों के लिए मिसाल बन सकती हैं। वह भी डेढ़ साल पहले एसआरएन अस्पताल पहुंची थीं। उनके काल के बगल में 25 सेमी बड़ा ट््यूमर था। कोई भी डॉक्टर इसके आपरेशन को तैयार नही हो रहा था। कोई और होता तो हिम्मत हार जाता। लेकिन शिवानी ने मर्ज से जूझती रहीं। उन्होंने एसआरएन के डाक्टर्स से आपरेशन की इच्छा जाहिर की। बताया गया कि यह जटिल है और इससे नुकसान हो सकता है। लेकिन जीने की चाह रखने वाली मरीज ने कैंसर से लड़ाई जारी रखी। सर्जरी के बाद से वह स्वस्थ हैं। समय समय पर डॉक्टर के पास जाती रहती हैं। कहती हैं कि कैंसर से लड़ाई में चौकन्ना रहना जरूरी है। तभी आप इससे जीत सकते हैं।

इन तीनों मरीजों की खासियत थी कि यह कैंसर से डरे नही। इनकी इच्छाशक्ति की वजह से इलाज करना आसान हो गया। प्राइवेट में इनके इलाज में लाखों रुपए खर्च होते लेकिन एसआरएन में काफी कम पैसों में इनकी सर्जरी की गई। अब यह स्वस्थ हैं और अंडर आब्जर्वेशन चल रहे हैं।

डॉ। राजुल अभिषेक, असिस्टेंट प्रोफेसर, सर्जरीकल आंकोलाजिस्ट एसआरएन अस्पताल प्रयागराज