प्रयागराज (ब्‍यूरो)। पुलिस महकमे में सिपाहियों से ज्यादा मौज घोड़ों की है। पुलिस लाइन के अस्तबल में रहने वाले घोड़ों को सिपाहियों से ज्यादा सुविधा मिलती है। तबियत खराब हो जाए तो सिपाही को कोई पूछने वाला नहीं। छुट्टी के लिए न जाने कितनी बार अफसरों के चक्कर काटने पड़ते हैं, वहीं पुलिस घुड़सवार दल के घोड़ों की रोज दिन में एक बार मालिश जरुर होती है। पुलिस के घोड़े ताजा पानी पीते हैं। काफी समय से रखा हुआ पानी घोड़े मुंह नहीं लगाते हैं। शायद इन्हीं सुविधाओं का कमाल है कि जब लॉ एण्ड आर्डर मेनटेन करने के लिए जीन पहनकर जब घोड़ो पुलिस लाइन से बाहर निकलते हैं तो फिर भीड़ अपने आप कंट्रोल में आ जाती है।

1-पुलिस लाइन में हैं बीस घोड़े
पुलिस लाइन में मौजूदा समय में बीस घोड़े हैं। इन घोड़ों का बकायदा नामकरण किया गया है। मार्थल, उर्वी, कांता, धवल, मृदा, महाराजा, मृणाल जैसे नाम घोड़ों के रखे गए हैं। ताकि इन्हें पहचानने में आसानी हो।

2- जान चली जाएगी पर रुकेंगे नहीं
आपात स्थिति में भीड़ को कंट्रोल करके लॉ एण्ड आर्डर मेनटेन करने के लिए पुलिस महकमे में घुड़सवार दल बनाया गया है। पुलिस के घुड़सवार दल की खासियत होती है कि एक बार इनके राइडर ने इन्हें भीड़ में अंदर कर दिया तो फिर घोड़ों की जान चली जाए मगर वह मैदान नहीं छोड़ेंगे।


3- रोज खर्च होता है छह सौ रुपये
एक घोड़े की डाइट पर रोज छह सौ रुपये खर्च होता है। एक घोड़े को प्रतिदिन एक किलो चना, दो किलो जौ, एक किलो चोकर, तीस ग्राम नमक और पंद्रह किलो घास दी जाती है। एक जुलाई से 31 दिसंबर तक घोड़ों को हरी घास दी जाती है, जबकि एक जनवरी से तीस जून तक सूखी घास घोड़ों को खिलाई जाती है।

4- पूरी ठाठ से रहते हैं घोड़े
पुलिस लाइन में बने अस्तबल में घोड़े पूरी ठाठ से रहते हैं। घोड़ों को गर्मी से बचाने के लिए कूलर लगाया गया है। रोज एक बार घोड़ों को नहलाया जाता है। एक बार मालिश की जाती है। घोड़ों की सुविधा के लिए पांच कर्मचारी लगाए गए हैं। जोकि घोड़ों की हर सुविधा का ख्याल रखते हैं।

5-दो घोड़े सबसे महंगे
पुलिस लाइन के अस्तबल में दो घोड़े सबसे महंगे हैं। इनका नाम मार्थल और उर्वी है। इनमें से एक घोड़े की कीमत तीन लाख पचहत्तर हजार रुपये है। इन दोनों के अलावा अन्य घोड़ों की कीमत पचास हजार से लेकर सवा लाख, डेढ़ लाख रुपये तक है।

6- यूपी में है केवल दस यूनिट
उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं। मगर घुड़सवार दल की यूनिट केवल दस जिलों में है। बताया गया कि यूपी के मेरठ, अलीगढ़, आगरा, कानपुर, लखनऊ, बरेली, फैजाबाद, गोरखुपर, वाराणसी और प्रयागराज में घुड़सवार दल की यूनिट है। इसके अलावा दो ट्रेनिंग सेंटर हैं। एक ट्रेनिंग सेंटर मेरठ में है, जबकि दूसरा ट्रेनिंग सेंटर सीतापुर में है।


प्रशांत की मौत से गमगीन रहा घुड़सवार दल
पुलिस लाइन के घुड़सवार दल में शामिल घोड़े प्रशांत की रविवार रात मौत हो गई। प्रशांत को तीन साल की उम्र में 23 अगस्त 2000 को घुड़सवार दल में शामिल किया गया था। घोड़े की औसत उम्र करीब बीस साल होती है। इसके बाद घोड़े बेकार होने लगते हैं, मगर प्रशांत 27 साल जीवित रहा। पिछले कुछ महीने से प्रशांत की तबियत खराब रहती है। रात में उसकी मौत से पूरा घुड़सवार दल गमगीन रहा। प्रशांत को अरैल घाट पर दफनाया गया। इसके पूर्व पुलिस लाइन में प्रशांत को अंतिम विदाई दी गई।


घोड़ा चढ़कर ले लिया आउट ऑफ टर्न प्रमोशन
पुलिस महकमे में आउट ऑफ टर्न प्रमोशन के लिए पुलिस कर्मियों को न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। न जाने कितने इन काउंटर करने और बड़े मामलों का खुलासा करने के बाद भी पुलिस कर्मियों को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन नसीब नहीं हो पाता है। वहीं, घुड़सवार दल के आरआई इंद्रपाल सिंह ने घोड़ा चढ़कर दो आउट ऑफ टर्न प्रमोशन ले लिया। सिपाही पद पर भर्ती हुए इंद्रपाल सिंह ने घुड़सवारी का ऐसा हुनर सीखा कि उनकी झोली में 13 मेडल आ गिरे। जिसमें से चार गोल्ड मेडल, पांच सिल्वर मेडल और चार ब्रांज मेडल हैं। इन्हीं मेडल की बदौलत इंद्रपाल सिंह सिपाही से हवलदार और फिर दारोगा बन गए।

पुलिस के घुड़सवार दल में शामिल घोड़े परिवार के एक सदस्य की तरह हैं। इनकी सुविधा का पूरा ख्याल रखा जाता है। ताकि मौका पडऩे पर लॉ एण्ड आर्डर मेनटेन करने में घोड़ों को दिक्कत न आए।
इंद्रपाल सिंह, इंचार्ज इंस्पेक्टर घुड़सवार दल