प्रयागराज ब्यूरो । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सामान्य तौर पर हाईस्कूल प्रमाणपत्र में दर्ज जन्मतिथि मान्य होती है, लेकिन यदि इस पर अविश्वास के लिए पर्याप्त विश्वसनीय साक्ष्य है तो उसे चुनौती दी जा सकती है। जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने मोबिन व अन्य की याचिका पर हस्तक्षेप से इन्कार करते हुए यह आदेश दिया है। मोबिन ने अपनी बेटी को पहले पति का बताते हुए उसकी संपत्ति पर दावा किया था।

डीएनए टेस्ट की मांग में याचिका

कोर्ट ने कहा कि याची की पुत्री का जन्म अपने कथित पिता शकील की मौत के एक वर्ष, आठ माह और सात दिन बाद हुआ। उस समय याची दूसरे से शादी कर चुकी थी। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि याची की पुत्री उसके पहले पति शकील से पैदा हुई है। याची को पहले पति शकील की संपत्ति में कोई हक नहीं है। यह प्रकरण मेरठ का है। याची के पहले पति के भाइयों की ओर से इस मामले में पुत्री के डीएनए टेस्ट की मांग की गई थी। याची का तर्क था कि हाईस्कूल प्रमाणपत्र में दर्ज जन्मतिथि की मान्यता है इसलिए डीएनए टेस्ट का औचित्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याची की पुत्री का जन्म उसके पति की मौत के 615 दिन बाद हुआ है। इससे ही यह स्पष्ट है कि पुत्री याची के पहले पति की नहीं हो सकती। डीएनए जांच रूटीन तौर पर नहीं कराई जा सकती। विशेष परिस्थितियों में ही हो सकती है। लड़की बालिग हो चुकी है। उसने अलग से कथित पिता की संपत्ति पर दावा नहीं किया है।

भाइयों के नाम कर दी थी वसीयत

मुकदमे के तथ्यों के अनुसार संपत्ति याकूब की थी। उसके तीन बेटे हुए शकील, जमील व फुरकान। शकील की शादी पहली मार्च 1997 को याची मोबिन से हुई। कुछ ही समय बाद 27 जुलाई 1997 को शकील की मौत हो गई। इसके बाद याची ने दूसरी शादी कर ली। शकील ने मृत्यु से पहले 12 जुलाई 1997 को दोनों भाइयों के नाम संपत्ति की वसीयत कर दी थी। याची को बेटी चार मई 1999 को पैदा हुई। शकील के भाइयों ने बेटी को शकील से पैदा हुई नहीं माना। याची सीओ, एसओसी व डीडीसी के समक्ष केस हारती गई। इसके बाद उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर तीनों अधिकारियों के आदेश को चुनौती दी थी।