प्रयागराज (ब्‍यूरो)। एयू के मानव विज्ञान विभाग द्वारा 'मानव वैज्ञानिक क्षेत्र कार्य के दौरान कैमरे का उपयोग: दस्तावेजीकरण का एक वैज्ञानिक आधार विषय पर विशेष व्याख्यान हुआ। इसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन केंद्र के पाठ्यक्रम समन्वयक डा। धनंजय चोपड़ा ने कहा कि आज हम उत्तर सत्य के समय में हैं। यह तस्वीरों की क्रांति का युग है। अब तस्वीरें अनुभूति का साधन मात्र नहीं रह गई हैं। आज अखबारों या सोशल मीडिया पर प्रसारित एक तस्वीर मात्र ही राष्ट्रों के राजनीतिक परि²श्य को भी बदल देने का माद्दा रख रही है। उदाहरण सामने है कि हमारे प्रधानमंत्री की लक्षद्वीप यात्रा की एक तस्वीर सामने आई और एक देश की पर्यटन अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो गई।

फोटोग्राफ के प्रभाव को समझाते हुए कहा कि यह राजनीतिक एजेंडा को समझने, किसी स्थापित मत अथवा सिद्धांत के विखंडन और विचारों के आलोचनात्मक परीक्षण में तथा विचारों को बनाने वालों की मंशा को समझने में भी सहायक होती हैं। विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं को यह समझने की आवश्यकता है कि फोटो कंपोजिशन फोटोग्राफिक दस्तावेजीकरण में बहुत महत्वपूर्ण अंश है। फोटो खींचते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि सब कुछ कैद करने की बजाय अपने विषय फोकस करना है। चूंकि फोटोग्राफ शोधकर्ता और अध्ययन क्षेत्र एवं उसके विषय के बीच अंतरसंबंध को स्थापित करता है। यह फील्डवर्क का साक्ष्य होता है और शोध विनिबंध की प्रमाणिकता को तय करता है तथा फील्ड ऑब्सर्वेशन्स को रेखांकित करने में शोधार्थी की मदद करता है। विभागाध्यक्ष प्रो। राहुल पटेल ने विषय प्रवर्तन किया। संचालन पोस्ट डाक्टोरल फेलो आइसीएसएसआर डा। संजय कुमार द्विवेदी ने किया। डा। प्रशांत खत्री, डा। खिरोद मोहराना, विनय कुमार यादव आदि उपस्थित रहे।