-फलों और सब्जियों को जहरीला बना रही है वैक्स कोटिंग

-चमक देखकर खरीदने को मजबूर हो जाते हैं लोग

vineet.tiwari@inext.co.in

ALLAHABAD: ऊंची दुकानों और मॉल्स में बिकने वाली चमकदार सब्जियां और फल सभी को लुभाते हैं। कस्टमर मुंह मांगी कीमत अदा कर इन्हें घर लाने में देरी नहीं करते। लेकिन, उन्हें जरा भी नहीं मालूम कि यह चमक कितनी जहरीली है। ऐसे प्रोडक्ट्स का सेवन करने के बाद वह कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। आई नेक्स्ट ने इस सच्चाई की पड़ताल की तो असलियत खुद ब खुद सामने आ गई। आइए जानते हैं कि किस तरह से मार्केट में घटिया वैक्स कोटिंग (मोम की पर्त) के जरिए लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है-

पलक झपकते ही आ जाती है चमक

वैक्स कोटिंग की हकीकत जानने के लिए हमने शहर की अलग-अलग मार्केट का रुख किया। सबसे पहले हम एजी ऑफिस पहुंचे। यहां फल की दुकानों पर सेब की कई वैरायटी मौजूद थीं। नॉर्मल सेब क्ख्0 रुपए किलो और इम्पोर्टेड सेब ख्ख्0 रुपए किलो है। महंगे सेब में अजीब सी चमक थी। जब हमने उसे चाकू से खुरचना शुरू किया तो मोम की पर्त सामने आने लगी। दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वैक्स लगाने के कई फायदे हैं, लेकिन कुछ दुकानदार घटिया वैक्स यानी सस्ती मोम का इस्तेमाल कर बीमारियां बांट रहे हैं। इडिबल वैक्स नहीं होने की वजह से यह पेट में जाकर दिक्कतें पैदा करता है।

मंडियों में चढ़ाई जाती है मोम

सिविल लाइंस स्थित एक फल विक्रेता ने बताया कि फलों और सब्जियों पर कोटिंग का काम मंडियों में किया जाता है। मार्केट में टेम्प्रेरी तौर पर पैराफीन वैक्स को घिसकर प्रोडक्ट को चमकदार बना दिया जाता है। जबकि मंडियों में कैंडिल को जलाने के बाद उसे पिघला लिया जाता है। पिघली हुई मोम में एक के बाद एक फल या सब्जियों को डाला जाता है और फिर उसे कपड़े से रगड़-रगड़ कर साफ किया जाता है। इसके बाद चमकदार फल या सब्जियां तैयार कर दिए जाते हैं जिसके लोगों से ऊंचे दाम वसूले जाते हैं। शहर की मंडियों में यह काम बड़े पैमाने पर किया जाता है।

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सेफ है सेंपर फ्रेश की कोटिंग

फलों और सब्जियों पर लगाए जाने वाले इडिबल वैक्स को सेंपर फ्रेश कहते हैं जिससे उनकी ताजगी लंबे समय तक बनी रहती है। यह एक सस्ती तकनीक है, लेकिन दुकानदार इसकी जगह घटिया दर्जे का मोम इस्तेमाल करते हैं। यह ओलिक एसिड और ट्राई इथेलान को मिलाकर बनाया जाता है। जिससे प्रोडक्ट्स में फफूंद नहीं लगती है। उन्हें गर्मी और बारिश में बचाकर रखा जा सकता है। जानकार बताते हैं कि कृषि उत्पादों का लगभग म्भ् फीसदी ही बाजारों तक पहुंच पाता है, बाकी ट्रांसपोर्टेशन के दौरान बेकार हो जाता है। ऐसे में वैक्सिंग इन्हें बचाने का बेहतरीन तरीका है।

कितनी खतरनाक है घटिया वैक्सिंग

डॉक्टर्स की मानें तो वैक्स कोलतार का बाई प्रोडक्ट होता है। यह डाइजेस्टिव नहीं है और पेट में जाकर गंभीर बीमारियां पैदा करता है। इससे गैस्ट्रो संबंधी दिक्कतें पैदा होती हैं। पेट में अल्सर हो जाता है और लीवर डैमेज होने के चांसेज बढ़ जाते हैं। इसके अलावा आंतों में प्रॉब्लम होती है। ब्लड सर्कुलेशन डिस्टर्ब होता है। लंबे समय तक इसका सेवन करने से हार्ट अटैक के चांसेज बनने लगते हैं। डॉक्टर्स कहते हैं कि लोगों को विश्वसनीय जगहों से ही ऐसे प्रोडक्ट खरीदने चाहिए। आमतौर पर तोरई, लौकी, टमाटर आदि सब्जियों पर भी वैक्सिंग की जाती है।

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स्टिकर पर मत जाना

कंपनी बाग के नजदीक स्थित फल की दुकान के ओनर ने बताया कि साधारण फलों को वैक्सिंग के जरिए महंगे दामों पर बेचना आम बात है। इससे लोग आसानी से झांसे में आ जाते हैं। उसने बताया कि ऐसे फलों पर कई बार स्टिकर लगाकर उसे इम्पोर्टेड बताया जाता है। लुक बेहतर होने पर खरीदार इस दावे को सही मान बैठते हैं। इस तरह से सेम क्वालिटी के फलों को अलग-अलग दामों पर बेचना आसान होता है। हालांकि, डॉक्टर्स फलों पर लगाए जाने वाले स्टिकर्स पर मौजूद गम को भी सेहत के लिए खतरनाक मानते हैं।

ऐसे होगा बचाव

-चमकते फल या सब्जियां खरीद लिया है तो उसे गर्म पानी में डुबाएं।

-कपड़े से अच्छी तरह से साफ करें इससे वैक्स कोटिंग काफी हद तक साफ हो जाएगी।

-अटै्रक्टिव रेड दिखने वाले प्रोडक्ट को अवायड करें।

-इम्पोर्टेड के नाम पर बिकने वाले प्रोडक्ट की जगह देसी आइटम पर बिलीव करें।

चलाया जा रहा अभियान

फलों और सब्जियों में मिलावट के खेल से गवर्नमेंट भी अंजान नहीं है। यही कारण है कि लगातार छापेमार कार्रवाई की जा रही है। पिछले दिनों खाद्य सुरक्षा विभाग की ओर से एजी आफिस समेत शहर के दूसरे इलाकों में जांच कर भारी मात्रा में भारी फल और सब्जियों को जब्त किया गया है। मिलावट के संदेह पर इनके सैंपल भी टेि1स्टंग के लिए लैब भेजे गए हैं।

पब्लिक स्पीक

जान जाए तो जाए, लेकिन क्या किया जा सकता है। जनता के पास फल या सब्जियों का दूसरा विकल्प मौजूद नहीं है।

भारतेंद्र त्रिपाठी

ये बात सही है कि मिलावट की वजह से हमारे समाज में खतरनाक बीमारियां फैल रही हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

आकाश दुबे

मिलावट का धंधा फल-फूल रहा है। चारों ओर कालाबाजारी चोर बाजारी की वजह से बीमारियां फैल रही हैं। जो लोग मिलावटखोरी का धंधा कर रहे हैं उनको सजा मिलनी चाहिए।

नीरा त्रिपाठी

वर्जन

-फलों और सब्जियों पर की जाने वाली वैक्सिंग में घटिया दर्जे की मोम का इस्तेमाल किया जाता है। यह कई तरह की बीमारियां फैलाती हैं। पिछले दिनों सैंपलिंग कर जांच के लिए भेजा गया है। रिपोर्ट आने पर कार्रवाई की जाएगी।

-हरिमोहन श्रीवास्तव, डीओ, खाद्य सुरक्षा विभाग

मोम डाइजेस्टिव नहीं होती है। यह पेट में जाकर अपच का कारण बनती है। इसकी वजह से हार्ट और बीपी भी डिस्टर्ब होता है। लोगों को सोच-समझकर सब्जियों और फलों की खरीदारी करना चहिए। जरा सी गलती खतरनाक हो सकती है।

-डॉ। ओपी त्रिपाठी, सीनियर फिजीशियन