प्रयागराज (ब्‍यूरो)।

बुराई नंबर वन- साइबर क्राइम
साइबर क्राइम का ग्राफ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। कभी इक्का-दुक्का केस सामने आते थे लेकिन वर्तमान में रोजाना 7 से 8 छोटे-बड़े साइबर क्राइम के मामले दर्ज हो रहे हैं। कुछ लोग हमारे अज्ञान का फायदा उठाकर हमें चूना लगा रहे हैं। अनजाने में लोग अपनी आधार, ओटीपी और बैंक डिटेल अजनबियों से शेयर करते हैं। बता दें कि आज भी तकनीकी रूप से हमारा पुलिस सिस्टम बहुत मजबूत नही हो सका है। संसाधनों की कमी की वजह से प्रयागराज में महज दस फीसदी केस ही साल्व हो पाते हैं। बाकी पीडि़तो का लाखों रुपए अभी बैंक खातों में वापस नही आ सका है।

बुराई नंबर दो- कन्या भ्रूण हत्या
पुरुष प्रधान समाज की सोच की उपज का परिणाम है कन्या भ्रूण हत्या। लोग लड़के की चाह में लड़कियों को मां के गर्भ में ही मार देते हैं। सरकार ने इस बुराई को रोकने के लिए पीसीपीएनडीटी एक्ट बनाया है लेकिन इसका कार्यान्वयन ठीक से नही हो रहा। यही कारण है कि रोजाना दर्जनों की संख्या में चोरी-छिपे कन्या भ्रूण हत्या हो रही है। अल्ट्रासाउंड सेंटर्स मोटी फीस लेकर गर्भ में पल रहे बच्चे की जानकारी उपलब्ध कराते हैं। संसाधनों की कमी की वजहसे सबकुछ जानते हुए भी स्वास्थ्य विभाग ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई नही कर पा रहा है। इसकी वजह से प्रयागराज के लिंगानुपात में सुधार नही हो सका है।

बुराई नंबर तीन- देह व्यापार
समाजसेवियों की मुहिम के चलते शहर के सबसे बड़े देह व्यापार स्थल मीरगंज को तो पुलिस ने बंद करा दिया, लेकिन इसकी जगह मसाज पार्लर और होटलों ने ले ली है। हाल ही में पुलिस ने इन जगहों से देह व्यापार में लिप्त लड़कियों को बरामद किया है। एक सर्वे के मुताबिक देह व्यापार में शामिल 40 फीसदी लड़कियां किशोर उम्र की है, और तो और 15 फीसदी लड़कियों की उम्र 15 साल से भी कम है। इस गंदगी का हिस्सा बनी 60 फीसदी महिलाओं की माने तो उन्होंने नौकरी की तलाश में घर छोड़ा था और मजबूरी में वेश्यावृत्ति में शामिल होना पड़ा। 40 फीसदी को शादी, प्यार, ऊंचे शौक या अपहरण के जरिए इस धंधे में धकेल दिया गया।

बुराई नंबर चार- नशाखोरी
वर्तमान परिवेश में नशोखारी फैशन बन गई है। शराब, स्मैक, अफीम, हेरोइन, तंबाकू, गुटखा, सिगरेट, भांग, चरस और गांजे की लत बढ़ती जा रही है। इनमें ब्वॉयज के साथ गल्र्स भी शामिल हैं। सबसे पहले सिगरेट का नंबर है और इसकी बिक्री पिछले पांच सालों में 60 फीसदी तक बढ़ गई है। यही हाल शराब का है। अंग्रेजी और देशी शराब के ठेके अमूमन आधा किमी पर मिल जाते हैं। ड्रग्स भी पीछे नही है। शहर के लगभग सभी इलाकों में स्मैक की बिक्री जोरदार तरीके से चल रही है। आंकड़ों पर जाएं तो हर साल प्रयागराज में 15 लाख लीटर देशी और 5 लाख लीटर विदेशी शराब की बिक्री होती है। असलियत में यह आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा भी हो सकता है।

बुराई नंबर पांच- मिलावटखोरी
त्योहार का सीजन हो और मिलावटखोरी न हो, ऐसा हो ही नही सकता। पिछले पांच साल के खाद्य सुरक्षा विभाग के आंकड़े देखें तो तीस से चालीस फीसदी खाद्य पदार्थो के सैंपल मिलावटखोरी की वजह से फेल हो जाते हैं। यह सैंपल दिवाली, होली, रक्षाबंधन, नवरात्रि और दशहरा पर लिए गए थे। अधिकारी कहते हैं कि लोगों में जागरुकता का अभाव है। इसका फायदा मिलावटखोर उठाते हैं। किराने की दुकान पर खुला तेल, बेसन, आटा, मैदा की आड़ में मिलावटखोरी अपनी रोटी सेंक रहे हैं। लोग चाहें तो जरा सा तरीके इस्तेमाल कर घर पर ही मिलावट की जांच कर सकते हैं। हो सके तो मार्केट से ब्रांडेड चीजें ही खरीदें।

बुराई नंबर छह- अंधविश्वास
शिक्षा का उजियारा भी अंधविश्वास के अंधेरे को खत्म नही कर सका है। पढ़े-लिखे लोग भी ऐसे लुटेरों के जाल में आसानी से फंस जाते हैं जो अनिष्ट का डर दिखाकर मनचाही रकम ऐंठने से पीछे नही रहते हैं। आजकल अखबारों में ऐसे विज्ञापनों की संख्या बढऩा इसका सीधा सादा प्रभाव माना जा सकता है। घर बैठे वशीकरण मंत्र का असर दिखाना हो या दुश्मन का नुकसान करना हो। ज्योतिष विद्या के नाम कुछ ठग भी जनता को लूटने का काम कर रहे हैं। सिस्टम भी ऐसे लोगों की पहचान करने से पीछे हट जाता है। संगम किनारे भूत-प्रेत भगाने के नाम पर महिलाओं पर शोषण और प्रताडऩा के मामले अक्सर सामने आते है।

बुराई नंबर सात- ट्रैफिक नियमों से एलर्जी
आजकल ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करना ट्रेंड बनता जारहा है। रेड लाइट जंप करना, हेलमेट नही पहनना और रांग साइड से चलने में लोग अपनी बहादुरी समझते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि प्रयागराज में हर मंथ 45 से 55 लोगों की मौत सड़क हादसे में होती है। इनमें से कई मामलों में हेलमेट का इस्तेमाल नही किया जाना बड़ा कारण बनता है। पुलिस भी रोजाना 60 से 70 हेलमेट के चालान करती है फिर भी लोग इसका पालन नही करते हैं। ट्रैफिक विभाग के अधिकारियों की माने तो आज भी तीस फीसदी लोग हेलमेट का इस्तेमाल नही करते हैं।

बुराई नंबर आठ- घूसखोरी
आधुनिक जमाने की सबसे अहम बुराई घूसखोरी बनकर उभरी है। सरकारी कार्यालयों में शायद ही कोई काम आजकल बिना लिए दिए होता है। यही कारण है कि आए दिन विजिलेंस टीम ऐसे लोगों को कार्यालयों से रंगे हाथ पकड़ती है। फिर भी सुधार देखने को नही मिल रहा है। एक सर्वे के मुताबिक सरकारी कार्यालयों में तीन दिन में होने वाला काम दस दिन में भी नही होता। इसका कारण फाइलों को टेबल पर अनावश्यक तरीके से रोकना है। सर्वे यह भी कहता है कि 40 फीसदी लोग अपना काम कराने के लिए आगे से घूसखोरी को बढ़ावा देते हैं।

बुराई नंबर नौ-सट्टा बाजार
समाज में लोअर मिडिल क्लास और लोवर क्लास सबसे ज्यादा सट्टे की चपेट में है। यह लोग एक का दो और दो का चार करने के चक्कर में अपनी मेहनत की कमाई सट्टे में गवां बैठते हैं। पिछले कुछ सालों में आईपीएल जैसे 20-20 क्रिकेट टूर्नामेंट युवाओं में सट्टे का आधार बन गए हैं। कैफे, चाय की दुकानें, रेस्टोरेंट और बियर बार में मैच के दौरान युवाओं का हर बाल पर सट्टा लगाना प्रिय शगल बनता जा रहा है। पुलिस के मुताबिक हाईटेक सट्टेबाजी में इंटरनेट पर ओपन क्लोज की जानकारी मिलने के साथ मटका टिप्स भी उपलब्ध है। सट्टा कारोबारी सप्ताह भर का संभावित अंकपत्र जारी करते हैं।

बुराई नंबर दस- पाल्यूशन
कभी कुंभ तो कभी रोड चौड़ीकरण के नाम पर हर साल हजारों हरे भरे पेड़ों को काटा जाता है। बदले में कितने पौध्ेा लगाए जाते हैं यह सच्चाई छिपी नही है। यही कारण है कि शहर का पाल्यूशन लेवल लगातार बढ़ रहा है। तेलियरगंज, सिविल लाइंस में सबसे ज्यादा पाल्यूशन लेवल बढ़ा पाया जाता है। पब्लिक भी पौधरोपण करने में रुचि नही लेती है। इसी तरह हरियाली कम होती रही तो एक दिन लोगों पानी की तरह शुद्ध आक्सीजन भी खरीदनी पड़ सकती है। डॉक्टर्स कहते हैं कि पाल्यूशन लेवल बढऩे की वजह से सांस के रोगियों की संख्या में 20 फीसदी से अधिक का इजाफा देखने को मिला है।

समाज में तमाम बुराईयां व्याप्त हैं। इनको खत्म करने के लिए कई कदम उठाए गए लेकिन सफलता नही मिली। मेरा मानना है कि जब तक आम जन जागरुक नही होंगे, कुछ नही होगा।
हर्ष यादव, समाजसेवी

दशहरा के मौके पर लोगों को शपथ लेनी चाहिए कि वह बुराई का साथ नही देंगे। सभी के मिले जुले प्रयास के जरिए ही समाज को स्वस्थ और सफल बनाया जा सकता है।
अभिषेक चौहान, समाजसेवी

देह व्यापार, नशाखोरी और पाल्यूशन जैसी बीमारियों ने युवाओं की जड़ों को खोखला कर दिया है। इससे पार पाना आसान नही है। इसलिए मिलकर प्रयास करना होगा।
लालू मित्तल, व्यापारी

घूसखोरी पर रोक लगानी चाहिए। इसी तरह कन्या भ्रूण हत्या को भी रोकना होगा। लेकिन इस काम के लिए समाज के हर वर्ग को सोचना होगा। ऐसे ही नही बुराई के रावण का नाश होगा।
अंकित टंडन, व्यापारी

पेड़ों के कटने से तमाम बीमारियां फैल रही हैं। दमा के रोगी बढ़ रहे हैं। मिलावटखोरी और नशे से युवाओं के लिवर, किडनी पर असर पड़ रहा है। इसके लिए समाज में जागरुकता बहुत जरूरी है।
डॉ। डीके मिश्रा, फिजीशियन