इस्लाम में अनिवार्य है सालभर की संपूर्ण बचत में से ढाई फीसदी जकात अदा करना

गरीबों को जकात के रूप में नकद, खाद्यान्न, रोजमर्रा की सामग्री देने का है दस्तूर

ALLAHABAD: इस्लाम धर्म में जकात अदा करना अनिवार्य माना गया है। जकात हर उस व्यक्ति को देना चाहिए जो अपने परिवार का पूरे वर्ष खर्चा चलाने के बाद कुछ बचत कर लेता है। जकात संपूर्ण आमदनी पर नहीं देना होता है बल्कि उस वर्ष की गई बचत पर दिया जाता है। यही वजह है कि अलविदा की नमाज के बाद अल्लाह की रहमत पाने के लिए वर्ष भर में हुई बचत का ढ़ाई फीसदी जकात देने का फर्ज ज्यादा से ज्यादा निभाया जाएगा।

पहले गरीब रिश्तेदार

ईद की नमाज के पहले तक मस्जिदों से लेकर घरों में गरीबों को जकात का सिलसिला चलता रहेगा। कुरान के मुताबिक जकात हर उस गरीब को देना जरुरी है जो अल्लाह और पैगम्बर साहब को मानता है। अलविदा की नमाज के बाद जकात देने का सिलसिला ईद की नमाज से पहले तक खूब दिया जाएगा। इसके लिए सबसे पहले परिवार या रिश्तेदारी में गरीब व्यक्ति को उसके बाद समाज के गरीब तबके को अदा किया जाएगा। जकात के रूप में ढ़ाई फीसदी नकद या खाद्यान्न या फिर कपड़ा दिया जाएगा।

अरब के देशों में खजूर का प्रचलन

रमजान के महीने में पहले अशरे से ही जकात दिया जाता है लेकिन अलविदा की नमाज के बाद सबसे ज्यादा घरों और मस्जिदों में जकात अदा किया जाता है। जहां अरब के देशों में जकात में सिर्फ खजूर देने का प्रचलन है वहीं भारत में साल भर की कमाई की बचत में से ढ़ाई फीसदी रकम, कपड़ा या खाद्यान्न ही दिया जाता है।

ईद गरीबों को अपने समान समझने और मानने का त्योहार है। जकात अदा करने वालों पर अल्लाह की रहमत बरसती है। इसलिए अपनी कमाई का ढ़ाई फीसदी या अन्य वस्तुएं अदा किया जाना अनिवार्य है।

मुफ्ती शफीक अहमद शरीफी,

काजी-ए-शहर