प्रयागराज ब्यूरो । देश के विभाजन से जुड़ी संवेदनाओं से रूबरू कराती डा धनंजय चोपड़ा की कहानी 'हाय रब्बा बिन्द्रो मर गयीÓ का मंचन शैलेश श्रीवास्तव के निर्देशन में हुआ। इसी तरह कथाकार आशुतोष सुन्दरम की कहानी 'पैसठ बरस की दुल्हनÓ का मंचन सुबोध सिंह के निर्देशन में हुआ। दोनों ही कहानियों का नाट्य रूपान्तरण शैलेश श्रीवास्तव ने किया था। तीसरी कहानी श्रीमती वंदना राठौर की 'एक नई इबारतÓ थी जिसका नाट्य रूपान्तरण स्वयं श्रीमती राठौर ने ही किया था। कथा निर्देशन सुबोध सिंह का था। इन तीनों प्रस्तुतियों में जिन कलाकारों ने भाग लिया उनमें प्रमोद पाण्डे, जगजीत कौर बाजवा, प्रतिमा श्रीवास्तवा, डॉ रेखा खरे, वंदना राठौर, प्रीति यादव, सुबोध सिंह, तेजेन्द्र सिंह तेजू, रमेश कश्यप, अंकिता जायसवाल, अभिषेक कुमार सिंह, रतिभान सिंह, प्रज्ञा केसरवानी, नेहा यादव, शरद कुशवाहा, हर्षल राज, रजत श्रीवास्तव, आदित्य सिंह, मीनाक्षी तथा आदित्य सिंह शामिल थे। त्रिकथा सूत्रबंध श्रीमती कंचन पांडेय का था। चीफ गेस्ट जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने कथा व्योम कार्यक्रम की सराहना की और कहा कि एैसे कार्यक्रम हमें बहुत कुछ सिखाने का काम करते हैं। प्रस्तुत हुई तोनों कहानियों के सार्थ मंचन ने हमें संवेदनाओं से भर दिया और यही कथ्य और रंगमंच के सानिध्य की सफलता है। इस अवसर पर कई रंगकर्मियों को सम्मानित भी किया गया।