प्रयागराज (ब्‍यूरो)। धुंध से चेहरा निकलता दिख रहा है्र। कौन क्षितिजों पर सवेरा लिख रहा है। चुप्पियां हैं जुबां बनकर फूटने को। दिलों में गुस्सा उबाला जा रहा है। दबे पैरों से उजाला आ रहा है। फिर कथाओं को खंगाला जा रहा है। जब यह गीत गांधी मंडपम में गंूजा तो फिर तालियों की गडग़ड़ाहट ने बताया कि पंक्तियां वहां बैठे हर शख्स के दिल को छू गईं। यह गीत सुनाया सुपरचित गीतकार यश मालवीय ने। अवसर था गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान में राजभाषा अनुभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा विस का। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गीतकार यश मालवीय ने अपने कई गीतों के माध्यम से श्रोताओं का मनमोह लिया। इसके पूर्व राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयोजक और गांधी भवन के निदेशक प्रोफेसर संतोष भदौरिया ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो.नरेंद्र कुमार शुक्ला और अध्यक्षता कर रहे यश मालवीय का स्वागत पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया। इस अवसर पर राजभाषा कार्यालय को गति देने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजभाषा अनुभाग की डायरी 2024 का विमोचन किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत बरगद कला मंच द्वारा कबीर गायन से हुई। कार्यक्रम में डा.अमृता, डा.देवाशीष पति, डा.युवराज निंबाजी हिराडे, डा.लेखराम दन्नाना, डा.गाजुला राजू, डा.जर्नादन, डा.तोषी आनंद, केतन यादव, जगदीश गुप्ता ने रचना पाठ किया। संचालन हरिओम कुमार ने किया। कार्यक्रम में हिंदी अधिकारी प्रवीण श्रीवास्तव, डा.सुरेंद्र कुमार, डा.विजय लक्ष्मी, ओपी गुप्ता, शीलेंद्र कुमार, सृष्टि, धर्मवीर सरोज, दरक्शा, ज्योति, शिखा आदि शामिल रहे।