इलाहाबाद में महापंचायत में जुटे 40 जिलों के अधिवक्ता, उठाई मांग

जूनियर अधिवक्ताओं को प्रैक्टिस के दौरान मिले कम से कम 5000 मानदेय

ALLAHABAD: सीआरपीसी की धारा 41 में हुए संशोधन ने आम आदमी को परेशान करके रख दिया है। सात साल से कम सजा वाले मामलों में गिरफ्तारी न होने से गुंडे-बदमाशों के हौसले बुलंद हो गए हैं और वे खुलेआम आम जनता पर अत्याचार कर रहे हैं। आम आदमी को इससे मुक्ति दिलाने के लिए जरूरी है कि इस धारा में हुए बदलाव को समाप्त किया जाय। यह मांग उठी बुधवार को डिस्ट्रिक कोर्ट के बाहर आयोजित वकीलों की महा पंचायत में। इसका आयोजन जिला अधिवक्ता संघ की ओर से किया गया था। प्रदेश के करीब 40 जिलों के वकील इसका हिस्सा बने।

आठ मांगों पर किया फोकस

अध्यक्षता जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी और संचालन मंत्री कौशलेष कुमार सिंह ने किया। संघ द्वारा यह आयोजन मांगों पर प्रदेश भर के अधिवक्ताओं की एक राय बनाने को लेकर किया गया था। अध्यक्ष राकेश तिवारी ने कहा कि वर्तमान समय में अधिवक्ता कठिन दौर से गुजर रहे हैं। कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 115 में संशोधन करके दीवानी के वादों में नोटिस जारी की प्रक्रिया के आदेश को निरीक्षणीय बनाया जाय। यह सुविधा न होने से गरीबों को न्याय नहीं मिल पा रहा है। जनता सम्पत्ति के वादों का निबटारा अदालतों के बजाय गुंडों, नेताओं व पुलिस से ही करा लेने पर भरोसा करने लगी है। यह वकीलों व न्यायालयों के साथ समाज के लिए भी चिंता का विषय है। समाज में अराजकता का वातावरण बन गया है।

अधिवक्ताओं की मांग

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 में वर्ष 2011 में किए गए संशोधन को निरस्त किया जाय। इसके तहत सात साल से कम उम्र सजा वाले अपराधों में गिरफ्तारी पर रोक है।

सीपीसी की धारा 115 में संशोधन करके दीवानी वादों में नोटिस जारी करने की प्रक्रिया के आदेश को निरीक्षणीय बनाया जाय

रजिस्ट्री एक्ट में फर्जी रजिस्ट्री किए अथवा कराए जाने की दशा में कोर्ट फीस से मुक्ति प्रदान की जाय

क्रिमिनल कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट में संशोधन करके अधिवक्ताओं के विरुद्ध संदर्भित अवमानना मामलों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार हाई कोर्ट से हटाकर ट्रिब्यूनल को दिया जाय

जूनियर अधिवक्ताओं को प्रैक्टिस आरंभ करने के बाद कम से कम पांच साल तक पांच हजार रुपए स्टाइपेंड दिया जाय

वृद्ध वकीलों के बीमार होने या प्रैक्टिस करने में सक्षम न रहने पर न्यूनतम दस हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन दी जाय। उनका वेलफेयर-बीमा के रूप में दस लाख रुपए दिए जाने का प्रावधान हो

जनपद न्यायालय की कटी हुई छुट्टियों को बहाल किया जाय

विधान परिषद में वकीलों के लिए दस सीटें आरक्षित की जाय। जिस पर सिर्फ अधिवक्ता चुनाव लड़ सकें। राज्य सभा में यह संख्या पूरे देश से 15 रखी जाय

निराश होकर लौटे वादकारी

महापंचायत के चलते अधिवक्ताओं ने न्यायिक कार्य से विरत रहने का फैसला लिया था। इससे अधिवक्ताओं ने न्यायिक कार्य से दूरी बना ली। इसका खामियाजा वादकारियों को उठाना पड़ा। वे खुद संबंधित कोर्ट में गए और डेट लेकर चलते बने। कोर्ट के कर्मचारी भी छुट्टी एंज्वॉय करने में लगे रहे।