फैक्ट फाइल

- 5 जुलाई 2005 को सुबह नौ बजे रामलला बैरिकेटिंग के पास हुई थी घटना

- पांच आतंकवादियों ने रामन्मभूमि बैरिकेटिंग जैन मंदिर के पास आतंकवादियों ने किया था हमला

- डीएल 11वीं वाहिंनी पीएसी सीतापुर के दलनायक कृष्ण चन्द्र सिंह ने दर्ज कराया मुकदमा

- आतंकावादी हमले और जवाबी कार्रवाई में आतंकवादियों समेत सात की मौत, सात जवान हुए थे घायल

- 14 सालों तक चली थी मुकदमें की सुनवाई

- 357 तारीखों पर हुई थी कुल सुनवाई

- 6058 पेज की संलग्नों सहित तैयार हुई थी अपील

- मुकदमे की सुनवाई के दौरान 65 गवाह हुए थे पेश

- इनमें 14 गवाह पुलिस विभाग के थे अधिकारी व जवान

- 6 विवेचकों ने घटना की जांच की थी

- 187 पेज की हस्त लिखित जजमेंट हुआ था तैयार

- तत्कालीन स्पेशल जज एससी/एसटी दिनेश चन्द्र ने सुनाया था फैसला

- नैनी सेंट्रल जेल में कोर्ट तैयार करके हुई थी सुनवाई

- सात जजों ने पूरी की थी मुकदमे की सुनवाई

- 18 जून 2019 को आया था फैसला

- एक आरोपी मो। अजीज निवासी महेंडर, जिला पुंछ जम्मु कश्मीर सिद्ध हुआ था दोषमुक्त

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- ग्रेनेड, राकेट लांचर और एके 47 से पांच आतंकवादियों ने रामलला मंदिर परिसर पर किया था हमला

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PRAYAGRAJ: अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना का बदला लेने के लिए वर्ष 2005 में पांच आतंकवादियों ने मंदिर परिसर के पास बैरकेडिंग पर तैनात सुरक्षा बलों पर हमला किया था। जवाबी हमले में पांचो आतंकवादी मारे गए थे। इस घटना में दो नागरिक भी मारे गए थे। वहीं आतंकवादियों की मदद करने के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया था। पकड़े गए आतंकवादियों को नैनी सेंट्रल जेल भेज दिया गया। हालांकि 18 जून 2019 में आए फैसले में मो। अजीज को दोष मुक्त करार दिया गया। जबकि अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा हुई थी।

पांच लोगों को किया था गिरफ्तार

आतंकवादी हमले के मामले में सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों की मदद करने के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया था। इसमें पांच लोग आसिफ इकबाल उर्फ फारूख, मो। नसीम, मो। अजीज और शकील अहमद कश्मीर के पुंछ जिले के मेंडर के रहने वाले थे। जबकि एक शख्स डॉ। इरफान डिस्ट्रिक्ट सहारनपुर के पीतरो थाने का रहने वाला था। पकड़े गए आतंकवादियों को नैनी सेंट्रल जेल भेज दिया गया। जिसके बाद यहां पर जेल में भी सुरक्षा को देखते हुए पूरे मामले की सुनवाई शुरू हुई। हालांकि 18 जून 2019 में आए फैसले में मो। अजीज को दोष मुक्त करार दिया गया। जबकि अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा हुई थी।

14 साल तक चला था मुकदमा

आतंकवादी हमले में सरकार की ओर से पैरवी करने वाले जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी गुलाब चन्द्र अग्रहरि बताते है कि पूरे मामले में 14 सालों तक मुकदमा चलने के बाद फैसला आया था। मुकदमा में बाबरी मस्जिद का बदला लेने, रामलला मंदिर को ध्वस्त करने के उद्देश्य से हमला करना, दो संप्रदायों के बीच शत्रुता बढ़ाकर साम्प्रदायिक सौहार्द नष्ट करने, व एक सम्प्रदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना उद्देश्य सामने आया था।

14 साल मुकदमा चलने के बाद आए फैसले के बाद दोषियों को आजीवन कारावास के स्थान पर फांसी देने के लिए भी अपील किया गया था।

गुलाब चन्द्र अग्रहरि

जिला शासकीय अधिवक्ता, फौजदारी