पर्यावरण की खूबसूरती के लिये आगे आये लोग

बच्चे व युवाओं में दिखा उत्साह, सबने मिलकर किया जागरूक

ALLAHABAD: मौका था पर्यावरण की सुरक्षा और उसे खूबसूरत बनाये रखने को लेकर की जा रही एक्टिविटी का, चांस मिला तो कोई नहीं चूका। सबने अपने तरीके से हरे भरे वातावरण को बचाने की कसम खाई। किसी ने पौधा लगाकर पर्यावरण की रक्षा की सौगंध ली तो किसी ने साइकिल से चलकर इसे सहेजकर रखने की कसम खायी। इसमें स्कूल के बच्चे, बड़े और युवा वर्ग आदि से जुड़े लोग शामिल हुये।

सबने कहा घर से ही करें शुरूआत

ट्री ब्रेक : ए ग्रीन इनिशियेटिव थीम पर लोग आगे आये। सबने क्लीन सिटी ग्रीन सिटी के लिये मैसेज दिया। युवाओं ने कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प लेना ही होगा। क्योंकि यह हम सब के जीवन को बचाये रखने का सवाल बन चुका है। लोगों ने कहा कि अगर धरा को बचाये रखना है तो जल, जंगल और जमीन के लिये आगे आना होगा। स्कूल के बच्चों से अपील की गई कि वे अभी से पर्यावरण को लेकर जागरूक रहें और इसकी शुरूआत अपने घर से करें।

बंजर जमीन का भी करें उपयोग

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो। नरसिंह बहादुर ने कहा कि जल और वायु दो अहम चीजें हैं। इन्हीं से मिलकर जलवायु बना है। कहा कि लोग अपने अपने घरों में छोटे से बगीचे के लिये जमीन जरूर छोड़ें। उन्होंने कहा कि बंजर जमीन का भी उपयोग किया जा सकता है। इसमें ढाख, बबूल, आंवला, जामुन, नीम इत्यादि के पेड़ लगाने चाहिये। प्रो। नरसिंह बहादुर ने कहा कि पेड़ छोटी प्रजाति के हों या बड़े दोनो ही महत्वपूर्ण हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर यूजीसी ने 07 अगस्त 2014 को सभी विश्वद्यालयों को स्नातक स्तर पर छहमाह का अनिवार्य पर्यावरण विज्ञान शिक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया था। विवि स्वयं तो पर्यावरण विज्ञान मे बीएससी और एमएससी की उपाधियां प्रदान कर रहे हैं पर उक्त निर्देश का अनुपालन नही कर रहे हैं। जिसके परिणाम स्वरूप पर्यावरण शिक्षा की उपाधि प्राप्त युवा आज सड़क पर बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।

शादाब जमील, लाजपत राय रोड न्यू कटरा

आज हमारा ज्ञान सिर्फ किताब तक सीमित रह गया है। विद्यालय हो या विश्वविद्यालय सभी जगह पर एयर कंडीशन रूम में ग्लोबल वार्मिग पर चर्चा होती है। पर्यावरण दिवस पर 05 जून को पौधारोपण करके उन्हें साल भर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। आज सड़कों को चौड़ा करके पेड़ लगाने की कोई जगह नही छोड़ी जा रही। सरकार को फैक्ट्रीयों पर कचरा नदी में न फेंकने के लिये दबाव बनाना होगा।

विवेक रंजन सिंह, एमए अंग्रेजी विभाग इलाहाबाद यूनिवर्सिटी