- आय से अधिक सम्पत्ति रखने का मामला

पूर्व शिक्षा मंत्री राकेशधर त्रिपाठी के विरूद्ध चल रहे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के मुकदमे में विशेष कोर्ट एमपी-एमएलए में अभियुक्त राकेश धर त्रिपाठी के द्वारा दिये गए डिस्चार्ज प्रार्थनापत्र सिरे से खारिज करते हुए आरोप तय करने के बिन्दु पर सुनवाई किये जाने की तिथि 28 अगस्त मुकर्रर करते हुए अभियुक्त को आदेशित किया है कि सुनवाई तिथि पर अभियुक्त अपने अधिवक्ता के साथ कोर्ट में उपस्थित हो।

18 जून 2013 को हुआ था मामला दर्ज

मामला यह है कि अभियुक्त राकेशधर त्रिपाठी के विरूद्ध थाना मुट्ठीगंज में 18 जून 2013 को निरीक्षक उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान इलाहाबाद की ओर से आय से अधिक सम्पत्ति रखने का प्रकरण भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज कराया। सम्यक जांच पर अभियुक्त को दोषी पाया गया। अभियुक्त की ओर से आरोप से उन्मुक्त किये जाने का प्रार्थना पत्र दिया गया था, जिसमे यह तर्क रखा गया कि विवेचना के संकलित साक्ष्य को ग्राहण करने के उपरान्त भी भ्रष्टाचार का कोई आरोप सिद्ध नहीं होगा। विवेचक द्वारा उधार में ली गई धनराशि को गलत ढंग से आय में जोड़ा गया। आरोपी की पत्‍‌नी श्रीमती प्रमिला त्रिपाठी की आय की गणना गलत की गई। जो विवेचक की कारस्तानी की परिचायक है। बचाव पक्ष के अधिवक्ता दिलीप कुमार ने विवेचक हवलदार सिंह यादव ओर अग्रेतर विवेचना के निष्कर्ष को पेश करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का अपराध होना नहीं पाया जाता। ऐसी स्थिति में आरोपित अभियुक्त को डिस्चार्ज किया जाय।

अभियोजन की ओर से बचाव पक्ष के तर्को का प्रबल विरोध करते हुए वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी हरि ओंकार सिंह, राधाकृष्ण मिश्रा व सहायक शासकीय अधिवक्ता राजेश गुप्ता ने तर्क में कहा कि प्रकरण में महामहिम राज्यपाल से अभियोजन स्वीकृति प्राप्त की गई। अभियुक्त द्वारा कुल व्यय-आय की तुलना में 295 प्रतिशत अधिक पाया गया। आय से अधिक सम्पत्ति के साक्ष्य पत्रावली में उपलब्ध है। आरोपपत्र प्रेषित है। न्यायालय की ओर से संज्ञान भी लिया जा चुका है। इसी बीच आरोप पत्र पर संज्ञान होने के दौरान सुनवाई विवेचनाधिकारी उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान के रिपोर्ट प्रेषित किया कि अभियुक्त ने अग्रिम विवेचना का आदेश प्राप्त किया कि अभियुक्त ने अग्रिम विवेचना का आदेश प्राप्त किया। उक्त आदेश के आधार पर अग्रिम विवेचना में पाया गया कि अभियुक्त की चेक अवधि मई 2007 से 31 दिसम्बर 2011 के मध्य कुल अर्जित सम्पत्ति 11194402 रुपए तथा चेक अवधि के मध्य व्यय 6276174 रुपया तथा चेक अवधि के मध्य आय 16823615 रुपया पायी गई आय के सापेक्ष 646961 रुपया अधिक पाया गया, जो आय की तुलना में अनानुपातिक परिसम्पत्ति 3.845 अर्थात 4 प्रतिशत अधिक पायी गई जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदत्त दस प्रतिशत से कम है। अत:भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का अपराध होना नहीं पाया जाता।

उभय पक्ष की बहस एवं तर्क तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन करने के पश्चात न्यायालय ने अपने निष्कर्ष में पाया कि अभियुक्त के विरूद्ध आरोप पत्र पेश हुआ। विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम वाराणसी ने मुकदमे में संज्ञान लिया। अभियुक्त ने कोर्ट में सरेंडर किया। हाईकोर्ट से जमानत सशर्त मंजूर की गई। कोर्ट ने उभयपक्ष की ओर से पेश की गई विधि व्यवस्था का अवलोकन करने के पश्चात अपने निष्कर्ष में पाया कि अभियुक्त के विरूद्ध आरोप तय करने के लिए साक्ष्य का विस्तृत मूल्यांकन करने की आवश्यकता नहीं होती केवल प्रथम दृष्टया पत्रावली पर साक्ष्य का आरोप तय करने के लिए पाया जाना ही पर्याप्त होता है। कोर्ट ने अभियुक्त की अर्जी खारिज करते हुए आरोप तय करने के लिए 28 अगस्त की तिथि मुकर्रर किया।