प्रयागराज (ब्यूरो)। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट रिपोर्टर ने सिटी के सभी उपकेंद्रों पर पहुंच कर शिकायत रजिस्टर में दर्ज कराई गई शिकायतों की पड़ताल की तो तेलियरगंज उपकेंद्र में सौ से अधिक शिकायतें दर्ज कराई गई थी। रजिस्टर पर डेट तक मेंटेन नहीं था। उनमें से कुछ नंबर को लेकर रिपोर्टर ने उपभोक्ताओं से बातचीत की। ज्यादातर उपभोक्ताओं का ये ही कहना था कि मीटर रीडर घर नहीं आ रहे हैं। इससे अनाप-शनाप बिल पहुंच रहा है। एक व्यक्ति ने बताया कि कई महीनों से कमरा बंद पड़ा है। फिर भी हजार से ऊपर का बिल आ रहा है। इस चार-पांच सौ रुपये कम कराने के चक्कर में उपकेंद्र पर पूरा दिन चला जाता है।
रामबाग उपकेन्द्र पर 72 शिकायतें
रामबाग उपकेंद्र पर भी 72 के आसपास शिकायत दर्ज कराई गई थी। डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों का मीटर रीडर द्वारा घर जाकर बिल न बनाने की शिकायत थी। म्योहॉल पर 118 लोग मीटर रीडर द्वारा घर आकर बिल न बनाने की शिकायत थी। जिसपर रजिस्टर मेंटेन कर रहे एक कर्मचारी ने बताया कि घर भेजकर बिल बनाया गया है।

एक कनेक्शन ले रखा था। जिसका बिल बिना रीडिंग नोट किये ही बनाकर भेज दे रहे थे। पैसा इतना ज्यादा हो गया कि उस कनेक्शन को कटवाना पड़ा। अब रीडिंग नोट करके बिल चेक किया गया तो अधिक मिला। उसको ठीक कराने के कब उपकेंद्र का चक्कर कई महीनों से लगाकर रहा हूं, लेकिन कोई सुनने वाला नही है।
खुर्शीद अहमद
उपभोक्ता म्योहॉल उपकेंद्र उपभोक्ता

दो किलोवाट का कनेक्शन ले रखा हूं, मात्र दो पंखा दो बल्ब चलता है। इस समय तो पंखा भी ठंड के कारण रात में यूज नहीं होता है। बिल आठ सौ पार आ रहा है। मीटर रीडर घर आता नहीं है। सिर्फ बिल का मैसेज मोबाइल आ जाता है। रीडिंग नोट करके लेकर आया तो बोल रहे हमारा कर्मचारी जाकर देखेगा। दो दिन हो गया कोई नही आया। राजस्व की वसूली कम न हो इसलिए विभाग कर रहा है।
आशुतोष वर्मा
उपभोक्ता, तेलियरगंज उपकेंद्र

जिस महीने मीटर रीडर घर आकर रीडिंग देखकर बिल बनाते हैं उस महीने बिल एक हजार के अंदर रहता है। जिस महीने अपने आप बिल बन जाता है, उस महीने बिल पंद्रह सौ पार हो जाता है। एक मध्यम वर्ग के लिए किसी महीने पांच सौ या फिर उससे अधिक का बिल आ जाता है तो बजट गड़बड़ हो जाता है। ये अधिकारी नहीं समझते है।
विजय कुमार
उपभोक्ता तेलियरगंज उपकेंद्र

फोन से शिकायत नोट कराने पर अफसर या फिर कर्मचारी ऐसे नोट करते हैं, जैसे दो दिन के अंदर सब ठीक हो जाएगा। उपकेंद्र आकर सही कराने पर पूरा-पूरा दिन चला जाता है। जेई कहता है साहब करेंगे। साहब कहते हैं क्षेत्र के जेई से मिलें। आदमी दो-चार रुपये अधिक मुंह न देख जमा कर देता है। समय की कीमत है। हर व्यक्ति खुद से तो इंटरनेट या विभाग की बेवसाइट तो जनरेट नहीं कर पाता है।
प्रवीण
रामबाग उपकेंद्र, उपभोक्ता