प्रयागराज ब्यूरो । निरंजन डॉट पुल का रास्ता बंद हो जाने से लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है। इसी में शामिल हैं वह कामगार जो जानसेनगंज से चौक तक दुकानों व कारखानों में नौकरी कर अपना पेट पालते हैं। अब इनके लिए पुल बंद होने से रोजाना काम पर पहुंचना मुश्किल साबित हो रहा है। ई रिक्शा का किराया चार गुना तक महंगा हो जाने से यह भरी धूप में पैदल चलने पर मजबूर हैं। अगर किराया दिया तो भोजन के लाले पड़ जाएंगे।
तीस से चालीस रुपए तक हुआ किराया
पहले यह लोग सिविल लाइंस से जानसेनगंज या चौक दस रुपए में पहुंच जाते थे। लेकिन डॉट पुल बंद हो जाने से ई रिक्शा वालों ने किराया तीस से चालीस रुपए तक बढ़ा दिया है। इस तरह से रोजाना अपडाउन करना इन लोगों के लिए काफी महंगा पड़ रहा है। इनकी सैलरी प्रतिमाह आठ से दस हजार रुपए है। अगर यह तीन माह तक रोजाना साठ से अस्सी रुपए ई रिक्शा में खर्च करेंगे तो घर चलाना मुश्किल हो जाएगा। किराना की दुकान पर काम करने वाले राजू कहते हैं कि साइकिल भी चार से पांच हजार रुपए में आ रही है। ऐसे में समझ नही आ रहा कि क्या किया जाए।
महिलाओं को भी हुई है समस्या
इनमें महिलाएं भी शामिल हैं। जानसेनगंज और चौक की तमाम शोरूम और दुकानों में शहर के उत्तरी भाग में रहने वाली हजारों महिलाएं भी काम करती हैं। इनके लिए भी भारी भरकम समस्या खड़ी हो गई है। एक मोबाइल शोरूम में काम करने वाली ममफोर्डगंज निवासी दीपिका कहती हैं कि यहां से महज बारह हजार रुपए मिलते हैं और रोजाना किराए में सौ रुपए खर्च हो रहे हैं। एक कास्मेटिक की दुकान पर काम करने वाली शहनाज भी राजापुर में रहती हैं। उन्हे चौक जाना अब पहाड़ चढऩे जैसा लग रहा है। कहती हैं कि जिस तरह से चल रहा है, लगता है नौकरी हाथ से चली जाएगी।
इनकी तो हो गई चांदी
सबसे ज्यादा मौज इस रूट पर चलने वाले ई रिक्शा चालकों की हो गई है। उन्हें घूमकर जाने का बहाना मिल गया है। कहते हैं कि हम क्या करें? सीधा जाने में दस रुपए लगता था। अब अधिक बैटरी लग रही है इसलिए तीन से चालीस रुपए ले रहे हैं। फिर भी लोग जा रहे हैं। भरी धूप में कोई पैदल नही चलना चाहता है। बता दें कि निरंजन डॉट पुल पर रेलवे का अतिरिक्त टै्रक निर्मित करने के लिए नीचे के रास्ते को सौ दिनों केलिए बंद किया गया है। जिसकी वजह से नए और पुराने शहर के बीच संपर्क बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। लोगों को इधर से उधर आने जाने में कई गुना अधिक सफर तय करना पड़ रहा है। ऐसे में वह रोजाना जाम का शिकार भी हो रहे हैं।

दुकान पर काम करके घर का गुजारा चल रहा है। पहले कम पैसे में आ जाते थे लेकिन अब किराया बढ़ गया है। इसे कहां से चुकाया जाए यह समझ नही आ रहा है।
सोनू

उन लोगों के लिए सौ दिन मुसीबत भरे हो गए हैं। कभी कभी पैदल भी चलना पड़ता है। कम पैसे में इतना किराया कहां से दिया जाएगा। कोई विकल्प भी नही है।
मो। बिलाल

अब चौक आने में समय भी अधिक लगता है। घर से जल्दी निकलना पड़ता है। हजारों लोग इस बदलाव से परेशान हो गए हैं। दिन कटना मुश्किल है।
सुधीर साहू