-हर साल सैकड़ों लोग मिलते हैं लावारिस
-पुलिस शिनाख्त न होने पर लावारिस में करती है अंतिम संस्कार
-नहीं होता ऐसे लोगों का कभी श्राद्ध
ALLAHABAD: इनका कोई नहीं है। न बेटा और ना ही बेटी। जीवनसंगिनी का भी पता नहीं है। हर साल ऐसे लोग बेमौत मारे जाते हैं। कोई बीमारी की चपेट में आकर तो किसी की हत्या कर दी जाती है। कोई हादसे का शिकार हो जाता है तो कोई रोड एक्सीडेंट में मौत की नींद सो जाता है। पहचान न होने के कारण इन्हें लावारिस घोषित कर अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। ऐसे में कौन करे उनका श्रद्धा, कैसे मिलेगी कि ऐसे पूर्वज को शान्ति।
हर साल सैकड़ों पार
इलाहाबाद में हर साल ब्00-भ्00 लावारिस बॉडी मिलती है। शहर हो या देहात हर जगह यही हाल है। कई बार पुलिस इन लोगों को भिखारी बता कर मामला ठंडे बस्ते में डाल देती है। यह भी बता देती है कि मोहल्ले में लावारिस घूमता रहता था, इस दुनिया में उसका कोई नहीं है। अकेले होने के कारण ऐसे लोगों की पहचान नहीं हो पाती। इस हर साल सैकड़ों लोगों की पहचान पुलिस की फाइलों में दफन हो जाती है।
बमुश्किल हो पाता है अंतिम संस्कार
हमारे संस्कार और मान्यताएं कहते हैं कि पूर्वजों की आत्मा की शान्ति और उनके मोक्ष के लिए श्राद्ध कर्म किया जाना चाहिए। लेकिन यहां पर इनका श्राद्ध करने वाला कोई नहीं है। गनीमत है कि कुछ स्वयंसेवी संगठन और स्वरूपरानी हॉस्पिटल के मेडिकल स्टोर के मालिक राजू अपने पैसों पर लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करा देते हैं, नहीं तो ऐसी लावारिस बॉडी को नदियों में मछलियों और जानवरों को खाने के लिए फेंक दिया जाता है।
अननोन बॉडी
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