- ईद उल अजहा पर लोगों ने घरों में अता की नमाज, सबकी हिफाजत की मांगी दुआएं

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PRAYAGRAJ:

त्यौहारों, पर्वो की रवायतें इसीलिए बनाई गई हैं। ताकि लोग अपनों से मिल सकें, उनके साथ समय बिता सकें, उनका हाल-चाल जान सकें और अपने साथ ही अपनों के जीवन में खुशियां ला सकें, लेकिन इस महामारी ने सब कुछ बदल दिया। हर त्यौहार की रवायतें बदल गई, रिवाज बदल गए। ईद-बकरीद पर जिन अपनों को गले लगा कर बधाई देते थे, उनके आंखों के सामने होने के बाद भी उन्हें गले न लगा सके। कोरोना वायरस संक्रमण के कारण ईद उल अजहा पर त्यौहार की बदली रवायतों से लोग थोड़ा परेशान रहे। लॉकडाउन और कोरोना महामारी के साए में शनिवार को घरों में ईद उल अजहा की नमाज अता की गई। स्लाटर हाउस बन्द रहे तो घरों में बकरों को जिबहा करने के बाद तीन हिस्सा कर गरीब गुरबा को कुरबानी का गोश्त बांटा गया।

मस्जिदों में मात्र पांच लोगों ने अता की नमाज

माहे लिहिज्जा की दसवीं को ईद उल अजहा का पर्व शनिवार को सादगी और ऐहतेराम के साथ मनाया गया। मस्जिद काजी बख्शी बाजार, दायरा शाह अजमल, शाह वसी उल्ला, मोमिनपुर अटाला, तकिया करीम शाह, मकबरे वाली मस्जिद, बैदन टोला वाली मस्जिद, बख्शी बाजार की लतर वाली मस्जिद, करामत की चौकी मस्जिद अबुल हसन, मस्जिद अबु हुरैरा व मस्जिद अबूबकर करैली, शिया जामा मस्जिद चक जीरो रोड, शिया मस्जिद बीबी खदीजा करैली में सरकारी गाइड लाईन और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ केवल पांच लोगों की मौजूदगी में नमाज अता की। वहीं सरकार की गाइड लाइन का पालन करते हुए ज्यादातर लोगों ने सामूहिक नमाज अता न करते हुए घरों में नमाज ए ईद उल अजहा की खास नमाज अता की।

कोट

ऐसा पर्व ही क्या जिसमें दोस्तों के साथ इंज्वाय न किया जाए। कोरोना ने सारे अरमान पर पानी फेर दिया। सुबह से सहेली काजोल, राधिका, ईमा काजमी, साराह आदि का फोन आता रहा लेकिन लॉकडाउन की वजह से किसी के भी एक-दूसरे के घर न पहुंच पाने का मलाल रहा।

मेना हैदर

पहली बार देख रही हूं ऐसा दौर

उम्र के अब तक के पड़ाव में ऐसा दौर कभी नहीं देखा। जिन अपनों की मौजूदगी से घर भर जाता था, त्यौहार-त्यौहार समझ में आता था। अब उनका भी आना नहीं हो पा रहा है। फोन ही से सबकी खैरियत मिल रही है। क्योंकि संक्रमण का दौर है। पहले जिंदगी बचाना जरूरी है।

सफदरी बेगम

बकरीद पर भी इस कोरोना वायरस संक्रमण से अपनों को महफूज रखने की अल्लाह से दुआएं मांगी। वाकई ये हम सब की जिंदगी का सबसे बुरा दौर है। घरों में सेंवई, दही बड़े,चाट,पकौड़ी के साथ बिरयानी और क़ौरमा का खास एहतेमाम किया गया लेकिन लॉकडाउन के कारण सभी एक दूसरे के घरों में नहीं जा सके।

सामिन अब्बास

हम जिन अपनों से रोज मिलते हैं, उनकी खैरियत तो पूछते हैं। लेकिन त्यौहार पर गले लगाते हैं। लेकिन इस बार त्यौहार पर अपनों को गले न लगा पाने का मलाल रहा। सब कुछ सामने होकर भी बहुत कुछ अधूरा-अधूरा सा रहा। गली और मोहल्लों में सन्नाटा पसरा रहा कोरोना का खौफ और सरकारी गाईड लाईन पर अमल करते हुए लोग घरों में रहे।

अदनान रजा

घर के बड़े बुजुर्ग भी यही बताते हैं कि कई पुश्तों में इस तरह की महामारी नहीं आई है, जब लोग त्यौहार न मना सकें। नमाज न अदा कर सकें। एक दूसरे के घर न जा सकें। लेकिन ये है कि मैं आगे आने वाली पीढ़ी को यह बता सकूंगा कि एक वह भी दौर था।

आबिद नेयाजी