Example one-

एसओजी ने शाहगंज के रहने वाले बच्चे बाबू की टीम को अरेस्ट कर कीडगंज पुलिस स्टेशन से चालान किया। पुलिस ने उनके पास से करीब 50 लाख के फर्जी स्टैंप पेपर बरामद किया था। जिस दिन पुलिस ने आरोपियों को घर से पकड़ा, उसी समय मुख्य आरोपी की वाइफ ने तार (टेलीग्राम)की मदद से पुलिस ऑफिसर और न्यायालय को इस घटना से रूबरू करा दिया। फिर क्या था। कोर्ट में पुलिस की कहानी उल्टी पड़ गई और सभी बड़ी आसानी से जमानत पर रिहा हो गए. 

Example two-

कुछ समय पहले कर्नलगंज पुलिस ने गुलाम अली और उसके दोस्तों को पकड़ कर बाइक चोरी के आरोप में जेल भेजा था। जिस दिन पुलिस ने गुलाम को पकड़ा था, उसी दिन उसकी वाइफ ने टेलीग्राम भेज कर सबको जानकारी दे दी। पुलिस ने तीन दिन बाद आरोपियों का चालान किया, जिसका फायदा उन्हें कोर्ट में मिला और टेलीग्राम ने एक महत्वपूर्ण एविडेंस का काम किया.

Example three-

शाहगंज पुलिस ने बबलू उर्फ नसीर को 4000 नशीली गोलियों के साथ अरेस्ट कर उसे जेल भेजा था। यहां भी तार ने पुलिस के लिए विलेन का काम किया। नसीर के पुलिस कस्टडी में जाते ही उसकी वाइफ ने पुलिस और कोर्ट में टेलीग्राम भेज कर पुलिस के ऑपरेशन की जानकारी दे दी थी। कोर्ट में नासिर को इसका फायदा मिला और वह आसानी से छूट गया.

Example four-

लास्ट इयर इलेक्शन के दौरान ही कैंट पुलिस ने अटाला के रहने वाले सलमान को गौ वध के आरोप में पकड़ा था और उसे तीन दिन बाद जेल भेजा। इस मामले में उसकी वाइफ ने तार की मदद से जजों को भी सूचना दे दी। नतीजा एक हफ्ता भी नहीं लगा और तार के आधार पर सलमान को जमानत मिल गई.

Allahabad: ये एग्जाम्पल तो बानगी भर हैं। हकीकत यह है कि टेलीग्राम आम लोगों के लिए सिर्फ तार नहीं था बल्कि रामबाण था जिसे वह कोर्ट में सच साबित करने के लिए यूज करते थे। कम्युनिकेशन के लिए भले ही लोग टेलीग्राम का यूज न करते रहे हों लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए, पुख्ता प्रमाण के रूप में टेलीग्राम का यूज हमेशा होता रहा है.

अचूक हथियार था तार  
एडवोकेट नसीम उर्फ गुड्डू ने बताया कि कोर्ट में टेलीग्राम एक एविडेंस के रूप में यूज होता रहा है। इसको हाइकोर्ट में भी एविडेंस माना जाता रहा है। तार वह एविडेंस है जो सच्चाई को बयां करता है। वह आमजन जिनकी पहुंच बड़े ऑफिसर्स, एसएसपी, डीएम तक नहीं थी, वह आसानी से अपनी बात तार के थ्रू कह देते थे. 

उत्पीडऩ मामले में था मददगार
एडवोकेट की मानें तो टेलीग्राम का सबसे बड़ा फायदा अपने हक की लड़ाई लडऩे में मिलती थी। पुलिस जब भी किसी को किसी आरोप में अरेस्ट करती है तो उसके बाद वह अपनी कहानी बताती है। नियम भले ही है कि 24 घंटे से ज्यादा कस्टडी में नहीं रख सकते, लेकिन पुलिस स्टेशन में इसका फॉलो नहीं होता। दो-चार दिन बाद पुलिस आरोपी का चालान करती है.उसके खिलाफ एविडेंस कलेक्ट करती है। ऐसे में आमजन पुलिस की मनमानी के खिलाफ टेलीग्राम का यूज करते थे जो कोर्ट में रामबाण का काम करती थी। जब भी कोई पुलिस की कस्टडी में जाता था तो घर वाले तत्काल उसकी सूचना पुलिस ऑफिसर और कोर्ट को टेलीग्राम के माध्यम से दे देते थे। फिर जब कोर्ट में मामला पहुंचता था टेलीग्राम की असलियत और पुलिस की कहानी में तालमेल न होने पर भुक्तभोगी को कोर्ट से मदद मिल जाती थी। कई केसेज में तो आरोपी बाइज्जत बरी हो चुके हैं.

टेलीग्राम बंद होने से इसका सबसे बड़ा नुकसान आमजन को होगा, खासकर जो रसूक वाले नहीं हैं। पुलिस केस में सबसे ज्यादा फायदा निर्दोष को मिलता था। कोर्ट में पुलिस की कहानी और टेलीग्राम भेजने की डेट में डिफरेंस होने पर एडवोकेट को भी जिरह करने में मदद मिलती थी.
नसीम 
सीनियर एडवोकेट

आज भले ही कम्युनिकेशन के लिए ढेरों साधन हो गए हैं। लेकिन रिटेन प्रूफ के तौर पर टेलीग्राम सबसे ज्यादा ऑथेंटिक था। एडवोकेट के नजरिए से कोर्ट में टेलीग्राम से काफी मदद मिलती रही है.
अजय श्रीवास्तव 
एडवोकेट, सिविल कोर्ट 

Example one-

एसओजी ने शाहगंज के रहने वाले बच्चे बाबू की टीम को अरेस्ट कर कीडगंज पुलिस स्टेशन से चालान किया। पुलिस ने उनके पास से करीब 50 लाख के फर्जी स्टैंप पेपर बरामद किया था। जिस दिन पुलिस ने आरोपियों को घर से पकड़ा, उसी समय मुख्य आरोपी की वाइफ ने तार (टेलीग्राम)की मदद से पुलिस ऑफिसर और न्यायालय को इस घटना से रूबरू करा दिया। फिर क्या था। कोर्ट में पुलिस की कहानी उल्टी पड़ गई और सभी बड़ी आसानी से जमानत पर रिहा हो गए. 

Example two-

कुछ समय पहले कर्नलगंज पुलिस ने गुलाम अली और उसके दोस्तों को पकड़ कर बाइक चोरी के आरोप में जेल भेजा था। जिस दिन पुलिस ने गुलाम को पकड़ा था, उसी दिन उसकी वाइफ ने टेलीग्राम भेज कर सबको जानकारी दे दी। पुलिस ने तीन दिन बाद आरोपियों का चालान किया, जिसका फायदा उन्हें कोर्ट में मिला और टेलीग्राम ने एक महत्वपूर्ण एविडेंस का काम किया।

Example three-

शाहगंज पुलिस ने बबलू उर्फ नसीर को 4000 नशीली गोलियों के साथ अरेस्ट कर उसे जेल भेजा था। यहां भी तार ने पुलिस के लिए विलेन का काम किया। नसीर के पुलिस कस्टडी में जाते ही उसकी वाइफ ने पुलिस और कोर्ट में टेलीग्राम भेज कर पुलिस के ऑपरेशन की जानकारी दे दी थी। कोर्ट में नासिर को इसका फायदा मिला और वह आसानी से छूट गया।

Example four-

लास्ट इयर इलेक्शन के दौरान ही कैंट पुलिस ने अटाला के रहने वाले सलमान को गौ वध के आरोप में पकड़ा था और उसे तीन दिन बाद जेल भेजा। इस मामले में उसकी वाइफ ने तार की मदद से जजों को भी सूचना दे दी। नतीजा एक हफ्ता भी नहीं लगा और तार के आधार पर सलमान को जमानत मिल गई।

अचूक हथियार था तार  

एडवोकेट नसीम उर्फ गुड्डू ने बताया कि कोर्ट में टेलीग्राम एक एविडेंस के रूप में यूज होता रहा है। इसको हाइकोर्ट में भी एविडेंस माना जाता रहा है। तार वह एविडेंस है जो सच्चाई को बयां करता है। वह आमजन जिनकी पहुंच बड़े ऑफिसर्स, एसएसपी, डीएम तक नहीं थी, वह आसानी से अपनी बात तार के थ्रू कह देते थे. 

उत्पीडऩ मामले में था मददगार

एडवोकेट की मानें तो टेलीग्राम का सबसे बड़ा फायदा अपने हक की लड़ाई लडऩे में मिलती थी। पुलिस जब भी किसी को किसी आरोप में अरेस्ट करती है तो उसके बाद वह अपनी कहानी बताती है। नियम भले ही है कि 24 घंटे से ज्यादा कस्टडी में नहीं रख सकते, लेकिन पुलिस स्टेशन में इसका फॉलो नहीं होता। दो-चार दिन बाद पुलिस आरोपी का चालान करती है.उसके खिलाफ एविडेंस कलेक्ट करती है। ऐसे में आमजन पुलिस की मनमानी के खिलाफ टेलीग्राम का यूज करते थे जो कोर्ट में रामबाण का काम करती थी। जब भी कोई पुलिस की कस्टडी में जाता था तो घर वाले तत्काल उसकी सूचना पुलिस ऑफिसर और कोर्ट को टेलीग्राम के माध्यम से दे देते थे। फिर जब कोर्ट में मामला पहुंचता था टेलीग्राम की असलियत और पुलिस की कहानी में तालमेल न होने पर भुक्तभोगी को कोर्ट से मदद मिल जाती थी। कई केसेज में तो आरोपी बाइज्जत बरी हो चुके हैं।

टेलीग्राम बंद होने से इसका सबसे बड़ा नुकसान आमजन को होगा, खासकर जो रसूक वाले नहीं हैं। पुलिस केस में सबसे ज्यादा फायदा निर्दोष को मिलता था। कोर्ट में पुलिस की कहानी और टेलीग्राम भेजने की डेट में डिफरेंस होने पर एडवोकेट को भी जिरह करने में मदद मिलती थी।

नसीम 

सीनियर एडवोकेट

आज भले ही कम्युनिकेशन के लिए ढेरों साधन हो गए हैं। लेकिन रिटेन प्रूफ के तौर पर टेलीग्राम सबसे ज्यादा ऑथेंटिक था। एडवोकेट के नजरिए से कोर्ट में टेलीग्राम से काफी मदद मिलती रही है।

अजय श्रीवास्तव 

एडवोकेट, सिविल कोर्ट