प्रयागराज ब्यूरो ।थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों की उचित जांच वह इलाज विषय पर एक सेमिनार का आयोजन बुधवार को चिल्ड्रेन अस्पताल में किया गया। उदघाटन अवसर पर एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल प्रो। वत्सला मिश्रा ने ब्लड बैंक के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए उपस्थित लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान करने की सलाह दी। पैथोलॉजी विभाग की प्रो। कचनार वर्मा ने इन बच्चों में थैलेसीमिया का कारण बताते हुए बताया कि हीमोग्लोबिन बनाने वाले जीन्स में पैदाइशी समस्या के कारण सदैव रक्त की कमी बनी रहती है एवं इन बच्चों को हर तीन से चार सप्ताह में रक्त की आवश्यकता होती है।

बीमारी के लक्षणों से कराया रूबरू
बाल रोग विभाग की अध्यक्ष प्रो। अनुभा श्रीवास्तव ने थैलेसीमिया के लक्षण बताते हुए बताया कि बार-बार रक्त का कम हो जाना, बच्चे का सफेद पड़ जाना एवं बच्चे की तिल्ली का बढ़ जाना प्रमुख हैं। प्रोफेसर मनीषा मौर्य ने थैलेसीमिया की जांच एवं इलाज के विषय में बोलते हुए बताया कि थैलेसीमिया की जांच के लिए हाई परफार्मेंस लिक्विड क्रोमेटोग्राफी टेस्ट किया जाता है और यदि हीमोग्लोबिन की मात्रा वयस्क हीमोग्लोबिन से ज्यादा है तो थैलेसीमिया की बीमारी मानी जाती है।
इसका इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता है जो 15 वर्ष की आयु से पूर्व होना चाहिए। नोडल अधिकारी थैलेसीमिया डॉ संतोष शुक्ला ने इन बच्चों में अत्यधिक आयरन के जमा होने से होने वाली परेशानियों एवं उसके इलाज के विषय में बताया। साथ ही यह भी बताया कि भारत सरकार इन बच्चों को सुचारू रूप से आयरन चिलेटर प्रदान करती है। मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ अनुराग वर्मा ने इन बच्चों में होने वाले मानसिक विकारों के विषय में विस्तृत जानकारी दी