प्रयागराज (ब्यूरो)। प्रयागराज पुलिस लाइंस में शुक्रवार से जोन स्तरीय प्रतियोगिता शुरू हुई। इसमें 11 जोन वाराणसी, आगरा, गोरखपुर, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, पीएसी पूर्वी, पीएसी मध्य, पीएसी पश्चिमी व मेजबान प्रयागराज जोन की टीमें शामिल हैं। करीब 480 जवान प्रतियोगिता में किस्मत आजमा रहे हैं। शामिल तो कुल 14 जोन के पुलिस खिलाडिय़ों को होना था। किन्हीं कारणों से जीआरपी, रेडियो की तीन टीमें यहां नहीं पहुंची सकीं। प्रयागराज पुलिस लाइंस में पहुंचे 480 खिलाडिय़ों में 86 प्लेयर महिला पुलिस हैं।
यहां जीते तो खेलेंगे नेशनल
यहां जीतने वाले जवान ही इंटरनेशनल विभागीय गेम की प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर सकेंगे। शायद यही वजह है कि सभी खिलाड़ी जीत के लिए पहले दिन से ही जूझते हुए नजर आए। बताते हैं कि हर वर्ष होने वाली यह प्रतियोगिता दो साल बाद हो रही है। पिछले दो वर्षों में कोरोना इफेक्ट हावी रहा। इसी कोरोना के चलते आयोजकों द्वारा दो वर्षों तक प्रतियोगिता को पोस्टफोन कर दिया गया था। दैनिक जागरण आई- नेक्स्ट ने आयोजन में शामिल कई खिलाडिय़ों से बात की। इस बीच उनसे उनकी तैयारी और सख्त ड्यूटी के बावजूद इतने टफ गेम की प्रैक्टिस पर बातें की गईं।

जूडो में मेरी रुचि पहले से रही है। भर्ती होने के पहले हम जूडो की कई साल तक ट्रेनिंग लिए थे। इसीलिए इच्छा थी इस खेल में आगे बढ़ें। विभाग में आया तो कुछ चुनौतियां व समयाभाव दिखा। मगर, पीएसी कोच से कहा तो वह हौसला बढ़ाए और आज विभागीय स्टेट प्रतियोगिता तक पहुंच गया।
बब्बन सागर, पीएसी मध्य जोन

मैं पहले कबड्डी खेला करता था। यह खेल मुझे आज भी बहुत अच्छा लगता है। इसके लिए एक पूरी टीम होनी चाहिए। विभाग में आने के बाद समय का भी अभाव हो गया। पीएसी में कोच जूडो की ट्रेनिंग कई जवानों को दे रहे थे सो मैं भी सीखने लगा। यह विधा हम विभाग में आने के बाद सीखे। ड्यूटी तो करते ही हैं, जब समय मिलता है जब प्रशिक्षण में जाते हैं।
जीतेंद्र यादव, पीएसी पूर्वी जोन

ड्यूटी से समय बचने के बाद मैं बोर हुआ करता था। इसलिए एक दो घंटे की पीएसी लाइन में ही प्रशिक्षण शुरू किया। हमारे यहां करीब सभी गेम के कोच हैं। जो ट्रेनिंग देते हैं। यह मेरा प्रोफेशन तो नहीं मगर शौक जरूर है। शौकिया जूडो सीख रहा था। आज स्टेट लेवल गेम में सिलेक्ट हुआ। यह मेरे लिए बड़ी बात है।
हेमंत कुमार यादव, पीएसी पूर्वी जोन

मेरे यहां पुलिस लाइंस में जूड़ो की कुछ जवान ट्रेनिंग विभागीय कोच से लेते थे। जिन्हें देखकर मेरा भी हौसला बढ़ा और ज्वाइन कर लिया। सुबह शाम प्रैक्टिस वहां कराई जाती है। जब भी हमें इस वक्त समय मिला जाने लगा और रूटीन बन गया। वहां जनपद और जोन लेवल पर प्रतियोगिता हुई थी। जिसमें सिलेक्ट होकर यहां तक पहुंच गया। इसके पहले भी गोल्ड ला चुका हूं।
राजेंद्र कुमार, बरेली जोन

मुझे स्पोट्र्स कोटे में ही नौकरी मिली है। ज्वाइनिंग के कुछ दिनों तक थाने और चौकियों पर रहा। फिर हमें खिलाडिय़ों को ट्रेंड करने की जिम्मेदारी सौंपी गई और खेल प्रभारी बना दिया गया। अब नए इच्छुक पुलिस के जवानों को ट्रेनिंग देता हूं। इसका एक लाभ हमें यह है कि प्रैक्टिस बनी हुई है। इस गेम में मैं ब्लैक बेल्ट हूं।
सुनील धामा, मेरठ जोन