प्रयागराज (ब्‍यूरो)। हर में गिरते भू-गर्भ जलस्तर पर चिंता, पानी की शुद्धता और बचत पर कवायद की जा रही है। तो इससे इतर वेस्टेज वाटर की स्थिति भी जान लेना जरूरी है। यह वेस्ट वाटर घरों व प्रतिष्ठानों से बहकर नालों से होते हुए गंगा और यमुना नदी में गिरते हैं। इससे इन नदियों का पानी भी इन नालों से दूषित हो रहा है। जबकि घटते भू-गर्भ जल स्तर को देखते हुए जलकल विभाग यमुना के जल को ट्रीट करके पीने योग्य बनाकर सप्लाई कर रहा है। ऐसी स्थिति में वेस्ट वाटर के बारे में जानना आप के लिए और भी जरूरी हो जाता है। हम आप को शहर में यूज हो चुके वेस्ट वाटर के बारे में पूरी रिपोर्ट बताएंगे। इसके पहले आप यह जान लीजिए कि शहरी एरिया में कुल नालों की संख्या क्या है और हर नाले का पानी आखिर जा कहां रहा है।

10 एसटीपी ट्रीट कर रहे शहर का वेस्ट पानी
81 नालों का पानी गिरता था गंगा व यमुना में
37 नाले एसटीपी से किए जा चुके हैं कनेक्ट
44 नालों का पानी अब भी गिर रहा नदियों में
340 एमएलडी पानी ट्रीट करने की है क्षमता
379 एमएलडी वेस्ट जल ट्रीट करने का है दावा
475 एमएलडी वेस्ट पानी रोज होता है उत्सर्जित

जानिए कहां जाता है नालों का पानी
नगर निगम की एक रिपोर्ट के मुताबिक शहर के अंदर मौजूदा समय में 600 के करीब नाले हैं। इनमें करीब 52 नाले विस्तारित एरिया के बीस वार्डों में बहते हैं। शेष जो करीब 546 नाले हैं वह शहर के पुराने 80 वार्डों में पहले से ही थे। इनमें छोटे और बड़े दोनों किस्म के नाले शामिल हैं। शहर के 81 ऐसे बड़े नाले हैं जिनमें बहने वाला वेस्ट यानी गंदा पानी सीधे गंगा और यमुना नदी में गिरता था। इससे इन नदियों के पानी की सुरक्षा और शुद्धता पर सवाल खड़ा हो गया था। क्योंकि हर रोज लोगों के घरों व कंपनियों के अंदर विभिन्न माध्यमों से यूज के बाद करीब 475 एमएलडी पानी वेस्ट हो जाता है। यह वेस्टेज वाटर नालियों के रास्ते नालों में पहुंच जाता था। इन्हीं नालों के जरिए वह सारा पानी नदियों में ही जाता था। ऐसी स्थिति में जब गंगा और यमुना के पानी की शुद्धता पर सवाल खड़े हुए तो सरकार थोड़ा सा गंभीर हुई। नालों का गंदा पानी सीधे नदियों में गिरने से रोकने का मास्टर प्लान तैयार किया गया। प्लान और प्रयास के जरिए शहर नालों में सीधे गिर रहे गंदे पानी को रोकने के एसटीपी बनाने की स्वीकृति मिला। इसके बाद धीरे-धीरे एसटीपी का निर्माण शुरू हुआ। आज मौजूदा समय में शहर के अंदर करीब दस एसटीपी हैं।

अब भी नदियों में जा रहा नालों का पानी
तमाम प्रयासों व उपायों के बावजूद आज भी करीब 96 एमएलडी नालों का गंदा पानी यूं ही नदियों में गिर रहा है। क्योंकि गंगा प्रदूषण के आंकड़ों पर गौर करें तो सभी दस एसटीपी के पास 340 एमएलडी नालों के पानी को ट्रीट करने की क्षमता है। जिम्मेदारों का दावा है कि बावजूद इसके क्षमता से अधिक 379 एमएलडी पानी एसटीपी से ट्रीट किया जा रहा है। जबकि शहर से हर रोज निकलने वाला गंदे पानी का रेसियो करीब 475 एमएलडी है, और एसटीपी में महज 379 एमएलडी ही पानी ट्रीट हो पा रहा है। मतलब यह कि करीब 96 एमएलडी गंदा पानी अब भी नालों से होकर नदियों में पहुंच रहा है। लोगों की माने बगैर ट्रीट हुए नदियों में गिरने वाले पानी की मात्रा बताए जा रहे आंकड़ों से कहीं ज्यादा हैं। क्योंकि नदियों में 81 नालों का पानी सीधे गिरता है। इनमें से महज 37 नालों को ही अब तक एसटीपी से कनेक्ट किया जा सका है। मतलब यह कि 44 नाले अब भी ऐसे हैं जो एसटीपी से कनेक्ट
नहीं है।

पानी अनमोल है इसके संरक्षण के लिए हम सभी को प्रयास करने की जरूरत है।
हम सभी को ईधन से ज्यादा पानी को संरक्षित करने की जरूरत है। प्रकृति प्रदत्त ग्राउंड वाटर को बर्बाद करने से सभी को बचना चाहिए।
शशांक वत्स, अध्यक्ष हिन्दुस्तान पेट्रोलियम डीलर एसोसिएशन

पानी प्रकृति द्वारा दिया गया एक वरदान है, और किसी वरदान का दुरुपयोग करने की इजाज न तो कानून देता है और न ही किसी का कोई धर्म। पानी बचाने के लिए वाटर रिचार्जिंग की आवश्यकता है।
पंकज त्रिपाठी, अधिवक्ता हाईकोर्ट

हमारा एरिया ददरी अब नगर निगम एरिया में आ गया है। जब गांव था उस वक्त मैं अपने कार्यकाल में तालाबों और कूपों के जीर्णोद्धार पर काफी काम किया था। मंशा यही थी कि वर्षा जल को रोक कर वाटर रिचार्जिंग को बढ़ाया जाय।
कृष्ण गोविंद, पूर्व प्रधान

गंगा और यमुना में गिर रहे ज्यादातर नालों के पानी को एसटीपी में ट्रीट करके छोड़ा जा रहा है। क्षमता से अधिक पानी मशीन में ट्रीट किया जा रहा है। महाकुंभ के पहले नदियों में गिरने वाले सारे नाले एसटीपी से कनेक्ट कर दिए जाएंगे। इस दिशा में काम चल रहा है।
सुरेंद्र सिंह परमार, प्रोग्राम मैनेजर गंगा प्रदूषण