प्रयागराज (ब्यूरो)। दशरथ के संवा पर लक्ष्मण गुस्से से उठ खड़े होते हैं। बोल पड़े, रघुकुल मणि राम के रहते जनक ने यह अनुचित बात कैसे कह दी कि पृथ्वी वीरों से विहीन हो गई है। राम ने उनको शांत किया। गुरु से संकेत मिलने पर वह धनुष की तरफ बढ़े तो दर्शकों में रोमांच भर गया। राम ने एक झटके में धनुष उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाने से पहले ही धनुष दो टुकड़ों में टूट जाता है। इस सीन पर दर्शकों के तालियों की गूंज और राम सिया के जयकारे गूंजने लगे। सीता ने राम के गले में जयमाल डाली। त्रैलोक में हर्ष की लहर दौड़ गयी। इसके बाद हुआ मंच पर क्रोध से तपते परशुराम का आगमन। जनक के लिए अपमानजनक भाषा का उनका प्रयोग लक्ष्मण को अखर गया। परशुराम ने विनाश की बात की तो लक्ष्मण भी बोल पड़े इहां कुम्हण बतिया कोई नाहीं। राम के हस्तक्षेप से परशुराम की आंखें खुल गईं। बार बार राम को प्रणाम कर परशुराम अपने धाम को गए। इसी सीन पर मंगलवार को श्री पथरचट्टी की रामलीला ने विराम लिया।
विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार
उधर, अल्लापुर में लीला की शुरूआत विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गोपार भगवान के चतुर्भुज स्वरूप में प्रकट होने से हुई। माता कौशल्या यह देखकर चकित हो गईं। बोल पड़ीं, प्रभु आपके इस स्वरूप को देखकर मेरी जग हंसाई होगी कि कौशल्या के चार भुजाओं वाला पुत्र पैदा हुआ है। तब भगवान बोले माता पिछले जन्म में आप सतरूपा थीं और आपने श्री हरि से वरदान मांगा था कि आप जैसा पुत्र चाहिये इसी कारण आपको स्मरण कराने के लिये मैं इस रूप में प्रकट हुआ। इसके बाद भगवान बालक रूप धर रुदन करने लगे। इसके बाद मुनि आगमन व ताड़का वध प्रसङ्ग का मंचन हुआ। विश्वामित्र को चिंता हुई कि जब तक भगवान का अवतरण नहीं होगा तब तक मेरे यज्ञ सफल नहीं होंगे। वह योग ध्यान से देखते हैं कि भगवान जन्म ले चुके हैं। वह अयोध्या जाकर महाराज दशरथ से समाज हित में राम लक्ष्मण को मांगते हैं और साथ लेकर चल देते हैं। मार्ग में विशाल राक्षसी ताड़का वध के साथ मंगलवार की लीला का समापन हुआ।