दादी ताऊ को महीने में पहले रविवार को बच्चे से मिलने की छूट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नैसíगक अभिभावक होने के नाते नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा मां को सौंपने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि बच्चा अपनी मां की अभिरक्षा में सर्वाधिक सुरक्षित माना जाएगा। अदालत को बच्चे की अभिरक्षा में सौंपने पर विचार करते समय यह देखना होता है कि बच्चे का हित किसके साथ सबसे ज्यादा सुरक्षित है। यदि मां विशेष परिस्थिति के बावजूद बच्चे की देखभाल कर सकती है तो उसे ही सबसे उपयुक्त अभिभावक माना जाएगा।

दादी-ताऊ की अभिरक्षा अवैध नहीं

कोर्ट ने तीन वर्षीय बच्चे को उसकी दादी और ताऊ की अभिरक्षा से मुक्त कराकर मां की सुपुर्दगी में देने का निर्देश दिया है। यह आदेश जस्टिस जेजे मुनीर ने एटा की रीतू की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है। कोर्ट ने दादी और ताऊ की ओर से उठाई गई आपत्ति का भी जवाब दिया कि वह दोनों बच्चे के लिए अजनबी नहीं है। इसलिए उनकी अभिरक्षा को अवैध निरुद्धि नहीं कहा जा सकता और न ही उनके विरुद्ध बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जारी की जा सकती है। कोर्ट का कहना था कि मां के होते हुए यदि बच्चा अपने नजदीकी रिश्तेदारों की अभिरक्षा में है तो इसे अवैध निरुद्धि ही माना जाएगा। कोर्ट ने दादी और ताऊ की बच्चे के भविष्य के प्रति चिंता को स्वाभाविक करार देते हुए कहा कि माह के पहले रविवार को सुबह 10 बजे से दो बजे तक दादी व ताऊ बच्चे से मिल सकते हैं।

पति ने कर ली थी खुदकशी

मामले के अनुसार रीतू के दो बच्चे मोहन उर्फ भोले और झलक हुए। पति श्यामू बेरोजगार था और उसने खुदकुशी कर ली। रीतू का कहना था जब वह श्यामू की तेहरवीं में ससुराल गई तो उससे बुरा बर्ताव किया गया और भोले को उसकी सास और जेठ ने जबरन अपने पास रख लिया। भोले की अभिरक्षा लेने के लिए उसने पुलिस अधिकारियों को प्रार्थनापत्र दिए। कोई कदम नहीं उठाया, तब उसने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की।

कोर्ट ने सभी पक्षों को हाजिर होने का आदेश दिया। शनिवार को कोर्ट के आदेश पर भोले की दादी और ताऊ उसे लेकर अदालत में हाजिर हुए। कोर्ट ने भोले को एक सप्ताह में उसकी मां की सुपुर्दगी में देने का आदेश दिया है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो सीजेएम एटा से कहा है कि वह पुलिस की मदद से भोले की सुपुर्दगी सुनिश्चित कराएं।