- फिटनेस पर ध्यान नहीं देने से बढ़ रहीं बीमारियां

- तीस फीसदी बढ़ गए मरीज, एक्सरसाइज और योगा से दूर हैं लोग

ALLAHABAD: परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए पापा दिनरात दौड़भाग करते हैं। सुबह से शाम तक काम, देर रात घर लौटना, वर्किंग पीरियड में भूख लगने पर बाजारू चीजों का खानपान। ये सभी चीजें कहीं न कहीं आज के पापाओं की सेहत पर भारी पड़ रही हैं। उनके पास खुद की सेहत का ख्याल रखने का समय नहीं है। शहर के पापाओं का यही हाल है। शहरी जिंदगी की बिगड़ी लाइफ स्टाइल में वह अनगिनत बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।

इन बीमारियों की चपेट में हैं पापा

आपको शायद पता नहीं होगा लेकिन आजकल के शादीशुदा मेल एक के बाद एक खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। कामकाज में तनाव के चलते मेल्स की एक बड़ी संख्या हाईब्लड प्रेशर और डायबिटीज की चपेट में आ चुकी है। सिविल लाइंस के रहने वाले ब्ख् वर्षीय रोहित सक्सेना को जांच के बाद डॉक्टर ने ब्लड शुगर का मरीज बताया तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। इसी तरह प्राइवेट कंपनी के इम्प्लाई ब्ब् साल के प्रकाश गौतम बैकपेन की समस्या से जूझ रहे हैं। दोनों को ये बीमारियां उनकी लाइफ स्टाइल के चलते हुई। डॉक्टर्स ने उन्हें योग और एक्सरसाइज करने की सलाह दी है।

बढ़ गए फ्0 फीसदी मरीज

दिन में क्ख् घंटे काम करना और छह घंटे से कम सोना। सिगरेट, तंबाकू और शराब की लत का शिकार होना। इन सभी चीजों ने पिछले दस सालों में डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम्स, थायरायड, बैकपेन, हेडेक, माइग्रेन, आर्थराइटिस, ओबेसिटी जैसी लाइफ स्टाइल रिलेटेड बीमारियों के लगभग तीस फीसदी मरीज बढ़े हैं। डॉ। मनीषराज चौरसिया कहते हैं कि लोगों ने अपनी सेहत के बारे में सोचना छोड़ दिया है। तली-भुनी चीजों का अधिक सेवन करने के साथ वह योग और एक्सरसाइज से बिल्कुल दूर हो गए हैं, अगर यही हाल रहा तो अगले कुछ सालों में मरीजों की संख्या कई गुना अधिक बढ़ सकती है।

सैलरी का एक बड़ा हिस्सा इलाज में खर्च

अपनी लाइफ स्टाइल पर ध्यान नहीं देने वालों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। बेली हॉस्पिटल के सीएमएस डॉ। बीके सिंह कहते हैं कि एक बार बीमारियों की चपेट में आने के बाद लांग टर्म मेडिसिन का उपयोग करना पड़ता है। जिस पर सैलरी का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है। तीन से छह महीनों में रूटीन चेकअप कराना होता है। कुल मिलाकर एक बार लाइफ स्टाइल बेस्ड बीमारियों की चपेट में आने के बाद हर महीने दवाओं पर तीन से पांच हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं। जो किसी भी फैमिली का मंथली बजट बिगाड़ने के लिए काफी है।

मजबूरी में पहुंच रहे योगा क्लासेज

आईआईआईटी के जनसंपर्क अधिकारी व श्रीश्री रविशंकर हैप्पीनेस प्रोग्राम से जुड़े सीनियर योग टीचर पंकज मिश्रा कहते हैं कि हमारी क्लासेज में लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। घर से लेकर ऑफिस तक तनाव में जीने वाले अवसाद के शिकार हो रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनके जीवन में कुछ नहीं बचा है। ऐसे लोगों को योग, प्राणायाम और नॉलेज के जरिए जीने का तरीका सिखाया जाता है। उनकी अध्यात्मिक शक्तियों को जागरुक किया जाता है। जिससे डायबिटीज, बीपी, थायरायड जैसी घातक बीमारियों के डर से उन्हें मुक्ति भी मिलती है।