- यूपीएससी पैटर्न को फॉलो करने का भी दिख रहा है हिंदी बेल्ट के कम सलेक्शन का कारण

- हिंदी बेल्ट के फेवरेट सब्जेक्ट को मेंस से हटाने और नए सब्जेक्ट शामिल होने से भी हो रही मुसीबत

प्रयागराज

संगम नगरी साहित्य की नगरी होने के साथ ही कभी आईएएस,पीसीएस की फैक्ट्री के रूप में भी देखी जाती थी। यूपी के अलग-अलग जिलों से आंखों में अधिकारी बनने का सपना लिए हजारों की संख्या में हर साल स्टूडेंट्स आते थे। यहां कड़ी मेहनत करके सफलता भी हासिल करते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से अचानक पहले आईएएस और अब पीसीएस परीक्षाओं में भी हिंदी बेल्ट के प्रतियोगियों के सलेक्शन का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है। पीसीएस 2020 परिणाम में भी रिजल्ट पर नजर डाले तो एक्सप‌र्ट्स के अनुसार रिजल्ट में 40 और 60 का रेसियो दिखता है। जहां 60 प्रतिशत इंग्लिश मीडियम से तैयारी करने वाले सफल हो रहे हैं। वहीं हिंदी माध्यम से तैयारी करने वालों में सफल होने वालों की संख्या 40 प्रतिशत के ही आस-पास है। इसके पीछे कारणों को समझने के लिए सालों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले प्रतियोगियों से बात की गई। जिसमें कई कारण निकल कर सामने आए।

यूपीएससी पैटर्न बन रहा बड़ा कारण

सालों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले प्रतियोगियों की माने तो पहले यूपीपीएससी का पैटर्न यहां के हिसाब से रहता था। लेकिन कुछ सालों में अचानक से लोक सेवा आयोग ने यूपीएससी यानी यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के पैटर्न को अपना लिया। ऐसे में सालों से तैयारी करने वाले प्रतियोगियों को तैयारी नए सिरे और नए ढंग से करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है। इसके साथ ही सबसे बड़ा कारण है कि हिंदी बेल्ट के प्रतियोगी शुरु से ही मेंस के लिए सोशल वर्क व डिफेंस जैसे सब्जेक्ट को दिमाग में रखकर तैयारी करते है। 2019 में इस यूपी पीसीएस मेंस से हटा दिया गया। साथ ही हिंदी बेल्ट का छात्र यूपी बोर्ड से पढ़ाई करके तैयारी करने पहुंचता है। जबकि यूपीएससी पैटर्न लागू होने के बाद सीबीएसई या आईसीएसई में पढ़ाए जाने वाले टापिक को पीसीएस के सिलेबस में शामिल कर दिया गया। ऐसे में यूपी बोर्ड से पढ़ाई करके तैयारी करने पहुंचे प्रतियोगी की असफलता यहीं से शुरू हो जाती है।

नए विषयों की नहीं है पर्याप्त जानकारी

पीसीएस में पैटर्न बदलने के बाद मेंस में दो नए सब्जेक्ट एथिक्स और इंटरनेशनल रिलेशनशिप को शामिल किया गया। हिंदी बेल्ट के प्रतियोगी के लिए ये दोनों ही विषय बिलकुल नए है। क्योकि शुरू से लेकर यूजी और पीजी तक इन विषयों की पढ़ाई पर्याप्त ढंग से नहीं रहती है। जबकि इंग्लिश मीडियम के स्टूडेंट्स इन विषयों को शुरु से पढ़ते और समझते आ रहे है। इसका असर भी पीसीएस के सलेक्शन पर पड़ रहा है। साथ ही इंटरनेशनल न्यूज पेपर के आर्टिकल हिंदी में उपलब्ध नहीं होते है। जिससे इंटरनेशनल विषयों की पूरी जानकारी हो सके।

राइटिंग स्किल की कमी भी दे रहा मात

यूपीपीसीएस में अभी तक मेंस में जीएस के पेपर भी वैकल्पिक होते थे। प्रतियोगी उसी हिसाब से तैयारी करते थे। जबकि अब जीएस के चार पेपर सब्जेक्टिव हो गए है। जिसमें लिखने की स्किल को डवलेप करने की जरूरत होती है। यहां भी हिंदी बेल्ट के स्टूडेंट्स मात खाते है। क्योकि उनके अंदर भी राइटिंग स्किल लगभग खत्म हो चुकी रहती है। जबकि इंग्लिश मीडियम के स्टूडेंट्स की राइटिंग स्किल लगातार डवलेप होती रहती है। साथ ही जहां प्री में 18 गुना क्वालीफाई करने व्यवस्था पर अच्छा रिजल्ट आता था। उसे घटा कर 12 गुना करने का असर भी अब रिजल्ट पर दिखने लगा है।

ये है मुख्य कारण

- 2019 से पीसीएस मेंस में सोशल वर्क व डिफेंस समेत पांच परम्परागत विषयों का हटाया जाना

- पीसीएस मेंस में दो नए विषय एथिक्स यानी नीतिशास्त्र व आईआर यानी इंटरनेशनल रिलेशनशिप को शामिल किया जाना

- पीसीएस के मेंस में जीएस में नेशनल व इंटरनेशन इंग्लिश न्यूज पेपर के आर्टिकल्स को शामिल किया जाना

- पीसीएस प्री में पहले 18 गुना क्वालीफाई करने की व्यवस्था थी, अब 12 गुना हो जाना

- पीसीएस मेंस में जीएस के चार पेपर सब्जेक्टिव का होना, पहले वैकल्पिक होता था

- इंग्लिश मीडियम से तैयारी के लिए पर्याप्त मैटेरियल सिटी में उपलब्ध नहीं होना

- दिल्ली के मुकाबले प्रयागराज या अन्य शहरों में तैयारी को वो माहौल नहीं मिलना, जिससे कांफिडेंस बनता हो