प्रयागराज (ब्‍यूरो)। जीवन के सात महीने किसी नाबालिग बच्चे के लिए कम नहीं होते। इतने दिनों में एक छात्र का जीवन बन भी सकता है और बिगड़ भी सकता है। कुछ ऐसा ही हुआ पूर्व सांसद अतीक अहमद के नाबालिग बेटों संग। इन दोनों पर कोई केस नहीं था। बावजूद इसके उन्हें परिवार के करतूतों की सजा भुगतनी पड़ी। बुआ की दुआ कबूल होने के बाद सोमवार को दोनों बाहर सुधार गृह से आजाद हुए। दरो-दीवार की से बाहर आए दोनों बालकों के चेहरे भावभंगिमा उनकी मन:स्थिति को बयां करने के लिए काफी थी। गुमसुम से दोनों बालकों की आंखें मौजूद हर किसी से मानों सवाल कर रही थीं। ऐसा लग रहा था मानों वह पुलिस से पूछना चाह रहे हों कि 'हमसे का भूल हुई जो ये सजा हमका मिली?

सात महीनों का उन्हें कौन देगा हिसाब
क्राइम एक्सपर्ट अधिवक्ताओं की मानें तो कानून यह कहता है कि किसी बेगुनाह को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी गुनाह में कार्रवाई या सजा जुर्म को करने वाले शख्स को ही दिए जाने का प्राविधान है। बाल या भाई के किए की सजा उसके बेटे या भाइयों को नहीं दी जा सकती। जब तक कि उसके गुनाह में उसके इनवाल्व होने के ठोस साक्ष्य मौजूद न हों। अधिवक्ताओं की इन बातों पर गौर करें तो कहा जा सकता है कि फिर अतीक अहमद के यह दोनों बालिग बेटों को बेवजह सात महीने बाल सुधार गृह में रातें बितानी पड़ीं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अतीक अहमद पर सौ से अधिक आपराधिक मुकदमें विभिन्न थानों में दर्ज है। पुलिस रेकार्ड में अतीक आईएस 227 गैंग का सरगना के नाम से भी जाना जाता था। उसकी कोशिश थी कि बेटों के दामन पर अपराध की कालिख नहीं लगने पाए। मगर, नियति को कुछ और ही मंजूर था। अतीक की लाख कोशिशों के बावजूद उसके तीन बेटों के दामन पर यह कालिख लग ही गई। शेष दो नाबालिग बेटे पढ़ाई लिखाई कर रहे थे।

शुरुआत दौर में उछला था एहजम का नाम
उमेश पाल हत्याकांड के बाद एहजम का नाम भी उछला था। पुलिस ने ऑफिशियली इस पर कभी कुछ नहीं कहा लेकिन अफवाह यहां तक उड़ी की आईफोन के एप पर इस घटना से जुड़े लोगों की जो आईडी क्रिएट की गयी थी, उसे एहजम ने ही तैयार किया था। पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट तक में इन दोनों के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज न होने की बात लिखकर दी तो क्लीयर हो गया कि इन दोनों का इनवाल्वमेंट नहीं था। उमेश पाल हत्याकांड के बाद उठी इस तरह की चर्चा कोरी अफवाह थी।

शाइस्ता की अर्जी के बाद पता चला
उमेश पाल हत्याकांड के बाद शाइस्ता के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज हुआ। इसके बाद भी उसने अपने अधिवक्ता के माध्यम से कोर्ट में अर्जी दाखिल कराई थी। इसमें कहा गया था कि पुलिस ने एहजम और आबाद को उठा लिया है। कोर्ट ने इस पर धूमनगंज पुलिस से जवाब मांगा तो टाल मटोल वाला रुख सामने आया। जवाब देने में धूमनगंज पुलिस ने उलझाया तो कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया। इसके बाद इन दोनों को पुलिस ने लावारिस भटकते मिलना बताया और कोर्ट को रिपोर्ट दी कि दोनो को बाल सुधार गृह में दाखिल करा दिया गया है। किस जिले के बाल सुधार गृह में दोनो को रखा गया है, इसे लेकर भी काफी दिनो तक स्थिति अस्पष्ट रही। बाद में कोर्ट के स्तर पर फिर से जवाब मांगा गया तब जाकर इनकी बाल सुधार गृह में दाखिले की पुष्टि हुई। बताया गया कि दोनों को यहां अकेले रखा गया है।

छूट गयी थी परीक्षा
सोमवार को बुआ के साथ उनके घर पहुंचा एहजम सेंट जोसेफ स्कूल का छात्र था। इस साल उसे बोर्ड परीक्षा में शामिल होना था। उसे दो पेपर भी अटेम्प किये थे। परीक्षा के बीच में ही उमेश पाल हत्याकांड हो गया तो अतीक का पूरा परिवार भूमिगत हो गया। इस चक्कर में एहजम की बोर्ड परीक्षा भी छूट गयी। अगले साल होने वाली बोर्ड परीक्षा में वह शामिल हो पायेगा? इस पर भी संशय की स्थिति है और कोई कुछ बताने वाला नहीं है।