बरेली (ब्यूरो)। कैंपस में बुलिंग नई बात नहीं है। कई बार स्टूडेंट्स को पता नहीं होता कि उन्हें शिकायत कहां पर करना है और कई बार कैंपस के जिम्मेदार ही मामले को दबा जाते हैैं। दोनों ही हालात कैंपस के लिए हेल्दी नहीं हैैं। आमतौर पर नए आने वाले स्टूडेंट्स या कमजोर स्टूडेंट्स बुलिंग का शिकार होते हैैं। पिछले महीने बरेली कॉलेज के पिछले गेट पर बुलिंग के दो मामले हुए। कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि मामला कैंपस से बाहर का है। पुलिस ने मौके का मुआयना किया और चलती बनी।

कंप्लेन कहां करें, कोई सिस्टम नहीं

शहर का सबसे बड़ा एजूकेशन सेंटर बरेली कॉलेज है। कैंपस में एक प्रॉक्टोरियल बोर्ड है। रूल्स के मुताबिक कैंपस में जगह-जगह प्राक्टोरियल बोर्ड के मेंबर्स की लिस्ट और उनके फोन नंबर्स लिखे होने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। बुलिंग के मामले होने पर स्टूडेंट्स को शिकायत किस्से करनी है, यह पता ही नहीं होता है। गल्र्स के मामले में तो यह और भी मुश्किल भरा होता है। इस बारे में प्रिंसिपल प्रो। ओपी राय और चीफ प्रॉक्टर प्रो। आलोक खरे का जवाब है कि कॉलेज की वेबसाइट्स पर नंबर पड़े हुए हैैं। यह जवाब अजीब है। अगर कोई घटना होती है तो स्टूडेंट्स पहले कॉलेज के वेबसाइट के बारे में पता करे, उसके बाद वहां से नंबर तलाशने करके अपनी शिकायत दर्ज कराए। बातचीत में स्टूडेंट्स कहते हैैं कि कॉलेज में कहीं फ्लैक्स या बोर्ड नहीं लगे हुए हैं। कोई भी दिक्कत हो तो खुद ही सुलझाना पड़ता है।

कॉलेज गेट पर लगता है जमावड़ा
बरेली कॉलेज में स्टूडेंट्स क्लास में भले न आएं, लेकिन कॉलेज कैंपस और कॉलेज के बाहर चिटचैट करने जरूर पहुंच जाते हैं। इसकी वजह से कई बार बात विवाद में बदल जाती है। पिछले डेढ़ महीने की बात की जाए तो कॉलेज के गेट पर दो बार मारपीट हो चुकी है। इसमें स्टूडेंट्स का सिर तक फट चुका है और पुलिस को बुलाकर मामला शांत कराना पड़ा।

दिल्ली में बुलिंग से मौत
दिल्ली के एक स्कूल में सीनियर स्टूडेंट्स ने एक जूनियर लडक़े की काफी पिटाई कर दी। इसके बाद उसकी मौत हो गई। मामला शास्त्री नगर इलाके का है। जहां 12 साल के छात्र की पिटाई की गई थी। उसका अस्पताल में इलाज चल रहा था। बाद में लडक़े की मौत हो गई। बच्चे की मौत के बाद परिजनों की मांग है कि आरोपी छात्रों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाए।

बरेली कॉलेज गेट पर बुलिंग
बरेली कॉलेज गेट के पास कुछ लडक़ों ने एक छात्र को लाठी-डंडों से दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। बता दें कि दो दिसंबर की यह घटना थी जहां कॉलेज के गेट पर छात्र का किसी बात को लेकर दूसरे कुछ छात्रों से विवाद हो गया। इसके बाद दूसरे छात्रों ने उसे घेर लिया और उस पर खूब लाठी-डंडे बरसाने लगे। इसकी वजह से छात्र अपनी जान बचने के लिए इधर-उधर भगने लगा। उसका सिर भी फूट गया था। इसके दो हफ्ते बाद फिर कॉलेज स्टूडेंट्स ने एक छात्र को घेर कर पीटा।

कॉलेज प्रशासन से मतलब नहीं, पुलिस का रवैया गैरजिम्मेदाराना
बरेली कॉलेज के दोनों ही गेटों स्टूडेंट्स का जमावड़ा रहता है। इनमें कुछ बुली टाइप स्टूडेंट्स भी होते हैैं। जरा सी बात होने पर यह गैैंग बनाकर पीटने लगते हैैं। ऐसी किसी भी घटना के बाद कॉलेज प्रशासन पल्ला झाड़ लेता है। दूसरी तरफ पुलिस कॉलेज का मामला मानते हुए दखल नहीं देती है। कॉलेज के कुछ टीचर्स मौजूदा हालात पर कहते हैैं कि कॉलेज प्रशासन को कैंपस के अंदर कैंटीन की स्थिति बेहतर करनी चाहिए और गेट से असमाजिक तत्वों को हटवाना चाहिए।

निगेटिव इमोशंस कर देते है मेंटली इल
जब किसी बच्चे की बुलिंग होती है। तो उस समय उसमें डर, संकोच, शर्म, चिंता, इन सिक्योरिटी, घबराहट, हीनता जैसेकई सारे नेगेटिव इमोशंस डेवलप होते हैं। हमारे ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर होते हैं, जो हमारे खुश, दुख, चिंता होने के लिए कहीं न कहीं रिस्पांसिबल होते है। इसकी वजह से माइंड में बहुत ज्यादा नेगेटिव थॉट्स डेवलप होने लगते हैैं। नेगेटिविटी हमारे जीवन में चलती रहती है। बॉडी में से हैप्पी हार्मोन जो हमें खुशी देते हैं उनकी कमी होने लगती है। स्पेशली जो सेरोटोनिन है। वह हमारे इमोशनल रिस्पांस को कंट्रोल करता है। जैसे डर इन सिक्योरिटी है, घबराहट है तो यह सारे हमारे इमोशनल रिस्पांस होते हैं। वह इसीलिए जब नेगेटिव थॉट्स डेवलप होते हैं तो सेरोटोनिन की कमी होने लगती है। इमोशनल इंबैलेंस होने लगता है तो उसका जो है सीधा-सीधा इफेक्ट जो है वह हमारे ब्रेन पर बिहेवियर पर दोनों तरह से पड़ता है।
याशिका शर्मा, साइकोलॉजिस्ट

हमारे यहां सालों से कोई भी रैैगिंग या बुलिंग का केस नहीं आया है। इसके अलावा हमारे कॉलेज का प्रॉक्टोरियल बोर्ड भी खुब एक्टिव है। स्ट्रीकनेस के मामले में। इसके अलावा स्टूडेंट्स की शिकायत को सुनने के लिए हमारे यहां एंटी रैगिंग टीम भी बनाई गई है।
प्रो। ओपी राय, प्रिंसिपल, बरेली कॉलेज

हमारे यहां हर जगह चीफ प्रॉक्टर का नाम और नंबर दोनों मेंशन है। जिस भी स्टूडेंट को किसी भी तरह की हेल्प की जरूरत हो तो वह कभी कॉल करके ले सकता है। इसके अलावा हमारे ऑफिस में भी पूरे प्रॉक्टोरियल बोर्ड का नाम मेंशन है। वहा मेरा भी नंबर ऑफिस और साइट दोनों में दिया हुआ है।
डॉ। एके सिंह, चीफ प्रॉक्टर, रुहेलखंड यूनिवर्सिटी

हमारे कैंपस में अगर कोई भी लड़ाई झगड़ा होता है, तो हम जरूर जाते हैैं। वहीं अगर कोई झगड़ा बाहर हो रहा होता है, तो सूचना मिलने पर प्रॉक्टोरियल बोर्ड जाता है, क्योंकि कॉलेज के बाहर कई खुराफाती तत्व भी शमिल होते हैैं। जो कॉलेज के नहीं होते हैैं। हमारे कॉलेज में चीफ प्रॉक्टर के नाम मेंशन हैं।
डॉ। आलोक खरे, चीफ प्रॉक्टर, बरेली कॉलेज

रैगिंग या बुलिंग बहुत ही गलत चीज है। इससे बच्चे का मोरल पूरी तरह से डाउन हो जाता है। वह अपनी बातों को बोलने में धीरे-धीरे हिचकने लगता है। जो आगे चलकर डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसी कई बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में आसपास के लोगों को उनका सहारा बनना चाहिए, जिससे वे अपने लिए लड़ सकें।
प्रो। रविंद्र बंसल, सोशलॉजिस्ट

शिक्षण संस्थानों में अपने जूनियर की रैंिगंग करना या होना बहुत शर्मनाक है। अपने जूनियर को समझाना बड़ों का कर्तव्य है न कि उनको परेशान करना। आजकल शिक्षण संस्थानों में सख्ती के कारण रैगिंग काफी हद तक कम हो गई है। वहीं अब इसे रोकने के लिए सरकार भी काफी सख्त है।
ओशिन अग्रवाल, स्टूडेंट

कॉलेज में किसी छात्र के साथ रैंगिग करनाकानूनी अपराध है। अगर किसी छात्र के साथ ऐसी घटना होती है तो कॉलेज में चीफ प्रॉक्टर या प्राचार्य से शिकायत करें। हमें कभी भी इस तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
रूपेश रस्तोगी, स्टूडेंट