बरेली (ब्यूरो)। बेटी पर अभिमान करो, जन्म होने पर सम्मान करो। जीने का सबको है अधिकार, बेटी को जो दे शिक्षा और पहचान, वे माता-पिता हैैं महान इंटरनेट पर बेटियों से संबंधित तमाम स्लोगन्स छाए रहते हैं। इन्हें देख कर लगता है कि बेटियों को लेकर लोगो की सोच बदल रही है। एक टाइम था, जब यह कहा जाता था कि बेटियां बोझ होती है। बहुत से परिवारों में बेटी का जन्म होने पर दुख जताया जाता था, लेकिन आज टाइम के साथ इन चीजों में कुछ फर्क पड़ा है। धीरे-धीरे बेटा-बेटी में फर्क करना कम हुआ है। नेशनल गर्ल चाइल्ड डे ट्विटर पर सोशल साइट एक्स पर लोगों के बेटियों पर आधारित पोस्ट्स को पढ़ कर लोगों की बदलती सोच का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

कुछ इस तरह व्यक्त किए व्यूज
पुंडरीक गोस्वामी ने पोस्ट किया है कि बेटी होना सबसे सौभाग्य की बात है, घर की रौनक बेटियां। मैैं भी सौभाग्यशाली हूं, जो मुझे दो-दो बेटियां हुई हैैं। मेरे आंगन की हर चहक-महक, हर्ष आनंद मेरी पुत्रियों की रुनझुन पायल से है। उनकी मीठी वाणी से है, उनके हंसने से है। सभी को पुत्रियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए। मां पराम्बा का स्वरूप हैैं बेटियां।

डॉ। आरएच लता ने लिखा कि इस दुनिया की असली दौलत उसी ने पाई है, जिसके घर में लक्ष्मी रूप में बेटी आई है। आज नेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर, आइए अपनी बेटियों को सशक्त बनाने, उनका पालन-पोषण करने और उनके सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करने के लिए खुद को फिर से समर्पित करें।

सीमा ने लिखा कि मेरी बेटी वास्तव में मेरी लाइफ में एक आशीर्वाद है। वह मेरी दोस्त है, जिसके साथ में अपनी हर सिली टॉक शेयर करती हूं, हंसती हूं। जब मैैं उदास महसूस करती हूं, वह मेरे आंसू पोंछती है। वह मेरी बात सुनती है। इसके अलावा वह मेरी शॉपिंग पार्टनर है। वह मेरी कैमरामेन भी है।

खालिद चौधरी ने लिखा कि नेशनल गर्ल चाइल्ड डे के अवसर पर यह संकल्प लें कि हर लडक़ी की ताकत, प्रतिभा का जश्न मनाएं। इसको एन्श्योर करें कि वे अपना जीवन खुल कर जिएं और अपना सपना पूरा कर सकें। आइए सांस्कृतिक और भावनात्मक रूढि़वादिता से परे, विविध क्षमताओं और योग्यताओं को स्वीकार करने के लिए सीमाओं को आगे बढ़ाते हुए, अपने कल्चरल और इमोशनल स्टीरियोटाइप पर विचार करें।

नेशनल गर्ल चाइल्ड डे का मकसद
नेशनल गर्ल चाइल्ड डे एक मोटो के साथ मनाया जाता है कि कहीं न कहीं बेटियों के साथ हो रहे भेदभाव को दूर किया जा सके और उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाया जा सकें। ये दिन बेटियों को उनकी पॉवर, एंकरेजमेंट, लॉ और सामथ्र्य के लिए अवेयर कराने के लिए मनाया जाता है। भारत सरकार भी बेटियों को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए खूब प्रयास कर रही है। इसके लिए बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ जैसी कई नारे दिए है और लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है।

क्या है इसका इतिहास
24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी ने महिला प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी, जो कि पहली बार था। हर साल 24 जनवरी को भारत में नेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाया जाता है। इस दिन को वर्ष 2008 में नेशनल अॅथोरिटी मिली। भारत में नेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाने की शुरुआत साल 2008 में हुई। इसको मनाने की शुरुआत महिला कल्याण एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से की गई।

मूवीज में एम्पॉवरमेंट
कर्ई मूवीज में भी वेमेन एम्पॉवरमेंट की झलक दिखाई गई है। ऐसी कई फिल्म्स बॉलीवुड बना चुका है, जिसमें इस टॉपिक को प्रमुखता से उठाया गया। कुछ समय पहले गई दंगल मूवी में भी यह टॉपिक उठाया गया। इसका एक संवाद, &म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के काफी फेमस हुआ। इसके अलावा पिंक, अंग्रेजी मीडियम, राजी, निल बटे सन्नाटा, नीरजा, क्वीन में भी इस टॉपिक को वेरी ब्यूटीफुली डेस्क्राइब किया गया।

बेटियों के लिए जारी स्कीम्स
-बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओ
-सुकन्या समृद्धि योजना
-बालिका समृद्धि योजना
-सीबीएसई उड़ान योजना
-नेशनल स्कीम ऑफ इंसेंटिव टू गल्र्स फॉर सेकंड्री एजुकेशन
-मुख्यमंत्री कन्या सुरक्षा योजना
-लाडली लक्ष्मी योजना
-मजी कन्या भाग्यश्री योजना
-नंदा देवी कन्या योजना