बरेली (ब्यूरो)। फेस्टिव सीजन में एफएसडीए की टीम भले ही एक्टिव हो गई हो, लेकिन मिलावटखोर भी मिलावट करने से चूकते नहीं हैं। एफएसडीए की तरफ से जो नमूने फेस्टिव सीजन में चेकिंग के दौरान कलेक्ट किए जाते हैं वह जांच को भेजे जाते हैं। लैब रिपोर्ट औसतन तीन से चार माह बाद ही आ पाती है तब तक मिलावट के आइटम लोग खा चुके होते हैं। ऐसे में साफ है कि मिलावटखोरों के खिलाफ अभियान तो एफएसडीए हर बार की तरह चला रहा है, लेकिन उसे सिर्फ खानापूर्ति ही कहा जा सकता है, क्योंकि जब तक एफएसडीए के लिए रिपोर्ट मिलती है तब तक तो मिलावट का माल मार्केट में व्यापारी खपा देते हैं।

ताकि न पड़े प्रभाव
ऐसे में चिकित्सकों ने लोगों से बाजार से जांच-परखकर ही खाद्य सामग्री घर लाने को कहा है ताकि सेहत पर दुष्प्रभाव न हो। विभागीय रिपोर्ट पर गौर करें तो बीते सप्ताह भर में टीम ने विभिन्न इलाकों से करीब 60 प्रतिष्ठानों से खाद्य सामग्री के नमूने भरे हैं। महज चार खाद्य सामग्री रिफाइंड, सरसों का तेल, मटर फ्लोर, कचरी जो मौके पर घटिया प्रतीत हुई, उन्हें सीज किया और कुछ नष्ट कराए हैं। जो नमूने जांच को भेजे जा रहे हैं, उनका लेकर अधिकारियों ने प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की बात कही है। बता दें कि बीते साल भरे नमूनों की रिपोर्ट अब मिल रही है।

लिक्विड ग्लोकोज की मिठाई
मिलवाटखोरों और घटतौली करने में शातिर कई कारोबारियों ने अधिक मुनाफाखोरी के लिए चीनी की जगह लिक्विड ग्लूकोज से बनी मिठाइयां मार्केट में उतार दी है, जो हेल्थ के लिए बेहद घातक हैं। बताते हैं कि लिक्विड ग्लूकोज से मिठाई बनाने पर लागत कम आती है। यह चीनी और गुड़ से बनी मिठाई से अधिक चमकदार होती है। सोहन पापड़ी में परत अच्छी पड़ती है और मिल्क केक चमकदार होता है।

मिलावटी मावा की भरमार
होली पर गुजिया के लिए मावा की अधिक मांग होती है इसलिए मार्केट में भी मावा की डिमांड अधिक हो गई है। मांग बढऩे से मिलावटखोर भी सक्रिय हो गए है। एफएसडीए की टीम ने मावा के नमूने तो भरे हैं, पर अभी तक कहीं नष्ट किए जाने की सूचना नहीं है, जबकि दुग्ध संघ का कहना है कि रोजाना मांग के सापेक्ष शहर में 30 हजार लीटर दूध की कमी है तो फिर मावा कौन बना रहा है, यह भी लोग अच्छे से जानते हैं।

रसायनिक कलर खतरनाक
मार्केट में दुकानों पर बिक रही कचरी और अन्य आइटम पर दाल, चावल, मैदा, आलू बनते हैं। पर कारोबारी इमसें भी कई तरह के कलर मिलाते हैं। जिसे वह खाने वाला रंग मिलाने की बात कहते हैं। एफएसडीए के अफसरों ने मंडे को करीब 300 किलो कचरी रासायनिक कलर मिलाने की आशंका जताते हुए जब्त की है। उन्हेंाने अधिक कलर कचरी, पापड़ को न खरीदने का सुझाव दिया। बताया कि सस्ते के फेर में न पड़े और अधिक चमकदार कलर दिखाई देने वाले कलर रासायनिक कलर हो सकते हैं ये हेल्थ के लिए सबसे अधिक खतरनाक हो सकते हैं।

45 फीसदी नमूने फेल
लास्ट ईयर दिवाली पर भरे गए नमूनों की रिपोर्ट जनवरी में प्राप्त हुई थी। 236 नमूनों में 102 नमूने असुरक्षित, अधोमानक या मिस ब्रांड मिले थे। जिनके वाद दायर कोर्ट में दायर हैं। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन के जिला अभिहीत अधिकारी अपूर्व श्रीवास्तव के अनुसार खाद्य पदार्थों के नमूने भरने के लिए चार टीम्स बनाई गई है। संदिग्ध जगहों पर छापामारी की जा रही है। किसी भी मिलावटखोर को बख्शा नहीं जाएगा।

ऐसे करें पहचान
- दूध को हथेली पर रगडऩे से उसमें केमिकल की दुर्गंध आने लगती है
-सूघंने पर असली मावे में दूध की महक होती है पर नकली मावा महकता नहीं
-पीले आयोडिन टिंचर मिलाने पर रंग पीला हो जाए तो असली है, काला हो जाए तो नकली
-दूध गिरते ही बहने लगे या आयोडीन मिलाने पर रंग नीला हो तो नकली है


होली पर खाने-पीने के आइटम में मिलावट करने वालों के खिलाफ चार टीम्स चेकिंग कर कार्रवाई कर रही हैं। सैंपल लेकर नमूने जांच को भेजे जा रहे हैं। चारों टीम्स में 12 लोग हैं। ये टीम्स अलग-अलग एरियाज में जाकर कार्रवाई कर रही हैं। मिलावटखोरों पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है।
-अपूर्व श्रीवास्तव, जिला अभिहीत अधिकारी, बरेली