बरेली (ब्यूरो)। शहर में पानी की कालाबाजारी के साथ ही पर डे लाखों रुपए का बिजनेस हो रहा है। धड़ल्ले से आरओ प्लांट के नाम पर फिल्टर पानी बेचा जा रहा है। वहीं जिम्मेदार विभागों का कहना है कि उन्हें नहीं पता है कि आरओ प्लांट संचालित करने का लाइसेंस किस विभाग द्वारा दिया जाता है। हर विभाग अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काट रहा है, जिसका परिणाम ये है कि मानकों को पूरा किए बगैर आरओ प्लांट का बिजनेस शहर में खूब चल रहा है।

करनी है जांच
आरओ प्लांट के लिए कई विभागों से एनओसी जरूरी होती है। इसके बाद ही प्लांट को शुरू किया जा सकता है। नगर निगम, खाद्य संरक्षा आयुक्त, उद्योग विभाग, पर्यावरण विभाग, जलकल विभाग व केंद्रीय उत्पाद विभाग से एनओसी लेनी जरूरी है। इसके बाद ही लाइसेंस जारी किया जाता है।

प्लांट लगाने के ये हैं मानक
- आरओ प्लांट लगाने के लिए ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड लखनऊ (बीओआईएस) से अनुमति लेनी पड़ती है।
- बीओआईएस से अनुमति मिलने के बाद खाद्य सुरक्षा अधिकारी लाइसेंस देते हैं।
- आरओ-प्लांट की फर्म को सेल्स टैक्स देना पड़ता है।
- श्रम विभाग में प्लांट में काम करने वाले कर्मचारियों का रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है।
- आरओ प्लांट के पानी की हर माह जांच रिपोर्ट भेजनी पड़ती है।
-आरओ प्लांट चलाने के लिए कामर्शियल विद्युत कनेक्शन होना चाहिए।
- खाद्य उत्पाद में भारतीय मानक ब्यूरो से रजिस्टर्ड होना आवश्यक है।
- आरओ प्लांट को रजिस्टर्ड कराने के लिए 27 तरह की जांच होती है।
- प्राविधान के अनुसार हर आरओ प्लांट में प्रयोगशाला के साथ दो केमिस्ट होने आवश्यक हैं, जो प्रतिदिन पानी की जांच करेंगे।
- लेकिन केमिस्ट व प्रयोगशाला तो दूर आरओ प्लांट के द्वारा पानी के खाली जारों की भी अच्छे से धुलाई नहीं की जाती।
- शहर में चल रहे एक भी आरओ प्लांट के पास भारतीय मानक ब्यूरो का एनओसी नहीं है।

खर्च होते हैैं रुपए
बरेली को अनमोल पानी का मोल चुकाना पड़ रहा है। ओल्ड सिटी निवासी अंजली बताती हैैं कि उनके घर पर पाइपलाइन से पानी की सप्लाई तो आती है। लेकिन उस पानी को पी नहीं सकते। इस कारण पीने के लिए 20 रुपए का पानी का कैंपर खरीदना पड़ता है। रोजाना घर में दो कैंपर का खर्च है। इस तरह से महीने में 60 कैंपर की खपत हो जाती है। पानी का हर महीने का खर्च ही 1200 रुपए हैैं। यह गैस से भी अधिक पड़ता है। लेकिन मजबूरी है, पानी तो पीना ही पड़ेगा।

हर एरिया में आरओ प्लांट
शहर में आरओ प्लांट कारोबारियों ने जल संकट की आपदा को अवसर में बदला है। शहर में जगह-जगह पर आरओ प्लांट खुल गए हैैं। यहां से घर-घर में पानी की सप्लाई होती है। पानी का कारोबार भी खूब फला-फूला है। शहर में 400 सौ से अधिक पानी के प्लांट हैैं। अनुमान के मुताबिक एक लाख से अधिक पानी की बोतल शहर में सप्लाई हो जाती हैैं।

पानी का खूब दोहन
जिले में आधा दर्जन एरिया डार्क जोन में हैं। शहरी क्षेत्र में भी भूगर्भ जल विभाग की रिपोर्ट के अनुसार वाटर लेबल गिर रहा है। लेकिन इसके बाद भी जिम्मेदारों की अनदेखी और लोगों की लापरवाही के कारण पानी के प्लांट खूब संचालित हो रहे हैं।

खाद्य विभाग द्वारा आरओ प्लांट लगाने के लिए लाइसेंस नहीं दिया जाता है, न ही इनकी कोई जांच होती है। पैक्ड ड्रिंकिंग वाटर की जांच खाद्य विभाग द्वारा की जाती है। आरओ प्लांट का रजिस्ट्रेशन हमारे विभाग में नहीं होता है।
अपूर्व श्रीवास्तव, जिला अभिहित अधिकारी

कलकल विभाग सिर्फ पाइप द्वारा जो पेयजल आपूर्ति की जाती है, उसके लिए कनेक्शन देता है। आरओ प्लांट के लिए जलकल में कोई रजिस्ट्रेशन नहीं होता है। क्योंकि इसके लिए कॉमर्शियल कनेक्शन अलग से होता है।
सिद्धार्थ कुमार, एक्सईएन, जलकल विभाग नगर निगम

आरओ प्लांट चलाने के लिए अनुमति जरूरी है। इसके लिए भूगर्भ जल का दोहन करते पकड़े जाने पर कार्रवाई करेगा। अगर कोई भी आरओ प्लांट लगा रहा है या फिर चला रहा है तो वह अनुमति और मानक जरूर पूरे करे। भूगर्भ जल का दोहन करने से बचें।
गणेश नेगी, सीनियर हाईड्रोजियोलॉजिस्ट, भूगर्भ जल विभाग