बरेली (ब्यूरो)। एमजेअपीआरयू में लॉ डिपार्टमेंट की फैकल्टी मेंबर अनु शर्मा ने भारत में मनी लांड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण और वित्तीय अपराधों की रोकथाम के लिए कानूनी ढांचे का एक आलोचनात्मक अध्ययन विषय पर शोध किया है। उनकी रिसर्च के अनुसार अपने देश में मनी लांड्रिंग के केसेज में 10 वर्षों के अंदर पांच गुना बढ़ोतरी हुई है। अनु ने अपनी यह रिसर्च एचओडी डॉ। अमित सिंह के निर्देशन में पांच वर्षों की अवधि में पूर्ण की है। उनकी इस रिसर्च के अनुसार मनी लांड्रिंग का बड़ा हिस्सा आतंकवाद को बढ़ावा देनेके लिए यूज हो रहा है। वर्तमान में जो कानून है, उसमें बदलाव जरूरी है। इसके लिए उन्होंने रिसर्च में कई सुझाव भी दिए हैं।

वल्र्ड की है समस्या
रिसर्चर ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) तथा ईसीआईआर आईएनडी के आंकड़ों का तथा हाई कोर्ट द्वारा निर्णित एवं प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज किए गए विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों का अध्ययन कर विश्लेषण किया। इन सब के आधार पर यह पाया गया कि मनी लांर्डिग की समस्या एवं आतंकवादी वित्त पोषण एक विश्व व्यापी समस्या बन गई है। जिसका बहुत बड़ा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है तथा सामान्य जनता अप्रत्यक्ष रूप से इससे प्रभावित होती है।

दोष सिद्धि का अनुपात कम
रिसर्च में सामने आया कि 2012-13 से 2022-23 तक मनी लांड्रिंग के मामलों में लगभग 5 गुना बढ़ोतरी हुई है। 2012-13 में ईडी द्वारा धन शोधन के लगभग 221 मामले दर्ज किए, वहीं 2022-23 में लगभग 1180 मामले दर्ज किए गए। मनी लांड्रिंग की राशि का एक बहुत बड़ा हिस्सा आतंकवादी वित्त पोषण में प्रयोग किया जाता है यदि धन शोधन को रोक दिया जाए तो बहुत हद तक आतंकवादी वित्त पोषण को रोका जा सकेगा। रिसर्च में यह भी पाया गया कि मनी लांड्रिंग के मामलों में गिरफ्तारी की तुलना में दोष सिद्धि का अनुपात काफी कम है।

4.62 करोड़ का जुर्माना
रिसर्चर द्वारा एक हजार लोगों से आंकड़े कलेक्ट किए गए हैं, जिसमें पाया गया कि ईडी द्वारा अब तक (2023) कुल 5906 शिकायतों को दर्ज किया गया है। इनमें से लगभग 2.98 परसेंट यानी 176 मामले मौजूदा और पूर्व सांसदों, विधायकों और एमएलसी के खिलाफ दर्ज हैं। ऐसे मामलों में दोष सिद्धि दर लगभग 96 परसेंट है। आंकड़ों के अनुसार पीएमएलए के तहत अब तक कुल 1142 ईसीआईआर दर्ज हुई। इन शिकायतों के अंतर्गत 513 लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा दोषसिद्धि के कारण लगभग 36 करोड़ की संपत्ति जप्त की गई, जबकि दोषियों के खिलाफ 4.62 करोड़ का जुर्माना लगाया गया।

ये दिये सुझाव
-मनी लांड्रिंग एवं आतंकवादी वित्त पोषण एक विश्व व्यापी समस्या है, इसलिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे रोकने के लिए एक विश्व स्तरीय संधि की जानी चाहिए।

- पीएमएलए अधिनियम की धारा 4 को संशोधित किया जाना चाहिए, जिसमें मनी लांड्रिंग के लिए प्रावधानित दंड को सात वर्ष से बढ़ाकर अधिकतम 20 वर्ष किया जाना चाहिए। जुर्माने की राशि को भी बढ़ाकर मनी लांड्रिंग की राशि का कम से कम 20 परसेंट किया जाना चाहिए। अभी जुर्माने की राशि अधिकतम 5 लाख है, जबकि धन शोधन की राशि कई मामलों में करोड़ों में होती है। ऐसी स्थिति में यह राशि काफी कम है।

-समय-समय पर मुद्रा का डिमॉनेटाइजेशन किए जाने का सुझाव दिया गया। इसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम 1934 की धारा 26(2) को संशोधित करने की बात की गई। यह भी सुझाव रिजर्व बैंक को प्राप्त होनी चाहिए तथा वर्तमान सरकारों की इसमें कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।

-रिसर्चर ने पीएमएलए अधिनियम 2002 की धारा 48 में भी संशोधन का सुझाव दिया। धारा 48 में संशोधन करके या पीएमएलए में कोई नई धारा जोडक़र ईसीआईआर के बारे में प्रावधान किया जाए। वर्तमान समय में पीएमएलए अधिनियम में कहीं भी ईसीआईआर के बारे में कोई प्रावधान नहीं है।

-ईसीआईआर एनफोर्समेंट केस इनफॉरमेशन रिपोर्ट एक औपचारिक एंट्री होती है जो ईडी के द्वारा दर्ज की जाती है। ईडी की प्रथा के अनुसार पीएमएलए अधिनियम के अंतर्गत कोई भी कार्यवाही करने से पहले ईसीआईआर दर्ज किया जाना आवश्यक है।

-पीएमएलए अधिनियम की धारा 35 को संशोधित करके अपीलीय न्यायाधिकरण की शक्तियों का विस्तार किए जाने का सुझाव दिया गया

-ईडी के द्वारा एक फंड निर्मित किए जाने की सुझाव दिया गया। जिसके लिए मनी लांड्रिंग के मामलों में जब्त की गई संपत्ति के कुछ प्रतिशत राशि को इस फंड में जमा किया जा सके तथा उसका प्रयोग मनी लांर्डिंग विरोधी प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता कार्यक्रमों में किया जा सके।

-जन सामान्य को मनी लांड्रिंग से देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान तथा जन सामान्य पर अप्रत्यक्ष रूप से पडऩे वाले प्रभाव के बारे में बताया जाना चाहिए तथा लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए।
-संघीय सरकार के साथ-साथ राज्य को भी अपनी भूमिका इस मामले में निभानी चाहिए
-सरकार को ग्राहकों के वित्त रिकॉर्ड की गोपनीयता की सुरक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए
-जितनी जल्दी संभव हो सके उतनी जल्दी पीएमएलए अधिनियम तथा धन शोधन से संबंधित अन्य अधिनियमों में संशोधन करके कठोरता के साथ उसका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए

रोकने में मिलेगी मदद
रिसर्च एक बुक्स के रूप में प्रकाशित होने जा रही है, जिसकी प्रति केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं प्रवर्तन निदेशालय आदि को प्रेषित की जाएगी। यदि सरकार इनका उपयोग कानून बनाने में करती है तो निसंदेह मनी लांड्रिंग, आतंकवादी वित्त पोषण तथा वित्तीय अपराधों को रोकने में मदद मिलेगी। पीएमएलए अधिनियम 1 जुलाई 2005 को लागू हो गया था, लेकिन बहुत कम लोग इस अधिनियम के प्रावधानों से परिचित हैं। इसके बावजूद इसका कार्यान्वन ठीक ढंग से न होना एक बहुत बड़ी समस्या है। रिसर्चर का कहना है कि इस संबंध में अगर शोध में दिए सुझाव स्वीकार किए जाएं तो वह मनी लांड्रिंग, आतंकवादी वित्त पोषण और अन्य वित्तीय अपराधों को रोकने के लिए अत्यंत सहायक होंगे।