पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता और ग्रामीण एरिया में शराब घरेलू हिंसा का बड़ा कारण है। इसके साथ ही महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होने पर वो अपनी समस्या की कंप्लेंट कहां करें, यह भी समस्या है। कहा जाए तो संरक्षण अधिकारी भी अपने गतिशील रोल में नहीं हैं। सर्वे में एक्ट के तहत 90 परसेंट कंप्लेंट करने वाली पत्नी ही हैं, जबकि घरेलू ंिहंसा का शिकार पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग भी हैं। 51 परसेंट महिलाओं ने माना है कि पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं। वो मानसिक और आर्थिक रूप से शिकार होते हैं, लेकिन वे अपनी समस्या बताने से कतराते हैं। यह हिंसा किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति होती है, जिससे हम किसी करीबी रिश्ते में बंधे होते हैं। चाहे वह पत्नी, माता बहन, पति, पुत्र, दादा, दादी अथवा कोई भी पारिवारिक सदस्य हो। इनमें से कोई भी व्यक्ति पीडि़त एवं पीडि़त करने वाला हो सकता है।

हिंसा के कारण अनेक
घरों में महिलाएं, बूढ़े एवं बच्चे मुख्य रूप से घरेलू हिंसा का शिकार होते रहे हैं। इसके कई कारण हैं। इनमें संपत्ति हड़पना, जीवनसाथी से छुटकारा पाना, पुत्री पर जरूर से ज्यादा दबाव डालना आदि कारणों से घरेलू हिंसा होती हैं। घरेलू हिंसा पर किया गया शोध इसके कारणों का जानने का प्रयास है। इस शोध में चार जिले बरेली, रामपुर, पीलीभीत एवं बदायूं जिलों से डाटा कलेक्शन किया गया है। सर्वे को वर्ष 2021 से 2022 के बीच दो चरणों में डॉ। शहनाज अख्तर ने एलएलएम के एचओडी डॉ। अमित सिंह के निर्देशन में पूरा किया गया। पहले चरण में अधिकारी, वकील, मजिस्ट्रेट, जज एवं अन्य अधिकारी वर्ग के लोगों से साक्षात्कार और ग्रुप डिस्कशन से पूरा किया गया। द्वितीय चरण में प्रश्नावली के माध्यम से समाज के विभिन्न आयु वर्ग, लिंग, शिक्षित, अशिक्षित, गृहणी, वर्किंग महिलाएं आदि वर्गों से प्रश्न किए गए। 1000 लोगों द्वारा प्रश्नावली के माध्यम से इन प्रश्नों के उत्तर दिए।

सर्वे में पूछे गए प्रश्न
1-क्या घरेलू हिंसा प्रत्येक परिवार में होती है?
2-घरेलू हिंसा के कारण क्या हैं?
3-घरेलू हिंसा से पीडि़त व्यक्ति कौन है?
4-घरेलू हिंसा के कितने प्रकार हैं?
5-घरेलू हिंसा के प्रभाव क्या हैं?
6-घरेलू हिंसा अधिनियम की जानकारी समाज के किन-किन लोगों को है?
7-संरक्षण अधिकारी, सर्विस प्रोवाइडर व घरेलू हिंसा के निवारण के उपचार आदि क्या हैं?
8-घरेलू हिंसा के बारे में लोगों की जानकारी का स्तर क्या है?
9-क्या पुरुष भी घरेलू हिंसा से पीडि़त हैं?

यह निकला परिणाम
शोध में इस ही तरह के 30 क्वेश्चन्स को शामिल किया गया। इनमें वैकल्पिक रूप से प्रश्नों के उत्तर उत्तरार्थियों द्वारा दिए गए। इन सब के अधार पर ही शोध का निष्कर्ष निकाला गया। शोध के परिणाम में यह पाया गया कि कोई भी एक कारण या परिस्थिति में घरेलू हिंसा को व्याख्या करना मुश्किल है। इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं, जिनमें 33 परसेंट लोग मानते हैं कि फाइनेंशियल निर्भरता एवं 32 परसेंट लोग शराब को मुख्य कारण मानते हैं। घरेलू हिंसा को रोकने का हथियार इस अधिनियम को बताया गया। इस अधिनियम नियम के प्रावधानों का दुरुपयोग हो रहा है तथा महिलाएं भी घरेलू हिंसा के उपचारों को लेकर भ्रमित हो रही हैं।

नहीं दिखाई गंभीरता
शोध में सामने आया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के लागू होने के 17 साल बाद भी इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। सामान्यत: जब तक घरेलू हिंसा मानसिक, शारीरिक उत्पीडऩ परिवारों में अपनी सीमा पार नहीं कर लेता है तब तक पीडि़त शिकायत नहीं करता है। महिलाओं पर अपनी शादी बचाने का सामाजिक दबाव इतना अधिक होता है कि वो जल्दी घरेलू हिंसा की शिकायत नहीं करती हैं। बच्चे व बूढ़ों की स्थिति कुछ इस तरह की ही है। आज भी घरेलू हिंसा एक सिविल अपकार है, जिसका उपचार सरकार द्वारा विधि बनाकर किया गया है। आज की परिस्थितियों को देखते हुए घरेलू हिंसा को एक अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए।

ये दिए गए सुझाव
-बच्चों को स्कूल स्तर पर विधिक शिक्षा एवं विधिक जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से अनिवार्य रूप से शिक्षित किया जाए।
-जिला स्तर पर एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जानी चाहिए।
-ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति की जाए।
-पुलिस स्टेशन में पृथक घरेलू हिंसा डेस्क की स्थापना हो।
-संरक्षण अधिकारियों के बोर्ड एवं फोरम में ग्राम प्रधान, नगर निगम पार्षद, नगर पालिका सभासद को शामिल किया जाए।
-पुलिस मजिस्ट्रेट सर्विस प्रोवाइडर एवं संरक्षण अधिकारी के बीच समन्वय बनाने के लिए एक समिति की स्थापना हो।
-पीडि़त के लिए आश्रय एवं चिकित्सा की व्यवस्था हो।
-सुपरवाइजरी कमेटी का गठन प्रोटेक्शन ऑर्डर एवं अंतरिम आदेश के पालन एवं उल्लंघन को रोकने हेतु दंड की व्यवस्था हो।
-व्यथित व्यक्ति की परिभाषा में अवयस्क बालक को शामिल किया जाना चाहिए।
-संरक्षण आदेश के अलावा धारा 19, 20, 21 व 22 क्रमश: निवास आदेश, धनीय अनुतोष, अभिरक्षित आदेश एवं प्रतिकार आदेश के उल्लंघन को दंडनीय बनाए जाना चाहिए।
-सरकारी अधिकारी की कार्य अवधि व योग्यता में विधिक शिक्षा को शामिल किया जाने का सुझाव भी दिया गया है।
-थर्ड जेंडर को फैमिली में शामिल किया जाना चाहिए, जिसके लिए अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए।
-पुरुषों को भी घरेलू हिंसा से संरक्षण के संबंध में प्रावधानों में संशोधन का सुझाव दिया गया है।