बरेली (ब्यूरो)। भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जो पल भर में ही तहस-नहस करने की क्षमता रखती है। इतनी बड़ी आफत का कोई न तो कोई को पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही इसके कोई संकेत मिलते हैं। बीते एक महीने के भीतर ही भूकंप के तीन झटकों से देशभर में हलचल है। बरेलियंस ने भी यह झटके महसूस किए और इसको लेकर सोसायटी से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक में खूब बातें चल रही हैं। कोई इसे आगामी बड़े खतरे की चेतावनी बता रहा है तो कोई कर रहा है कि जो होना है वह तो होगा ही। कोई सोशल मीडिया में एक्सपट्र्स की तरह कमेंट कर रहा है तो कोई तरह-तरह की आशंकाओं को व्यक्त कर रहा। भूकंप को लेकर बरेलियंस का चिंतित होना इसलिए भी लाजमी है कि बरेली इसके फोर्थ जोन में आता है। भूकंप के खतरे के हिसाब से यह रिस्की जोन की कैटेगिरी में आता है। भूकंप को लेकर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की यह स्टोरी रिडर्स के लिए कई मायने में नॉलेजबल हो सकती है।


क्यों आते हैैं भूकंप
अर्थ की चार मेन लेयर होती हैं। इसे इनर कोर, आउटर कोर, मेंटल और क्रस्ट कोर कहते हैं। क्रस्ट और ऊपरी मेंटल कोर को लिथोस्फेयर कहते हैं। यह 50 किलोमीटर की एक मोटी परत होती है जो कई पाट्र्स में बंटी होती है। इसे टैकटोलिक प्लेट्स कहा जाता है। जब कभी भी धरती के नीचे टेक्टॉनिक प्लेट्स में कुछ फ्रिकशन क्रिएट होता है तो धरती के ऊपर भूकंप के झटके महसूस होते हैैं। भूकंप की तीव्रता जितनी ज्यादा होती है उसके झटके उतनी ही दूर तक महसूस होते हैं।

भूकंप की तीव्रता
रिक्टर स्केल असर
0 से 1.9 - मामूली हलचल, इसका पता सीस्मोग्राफ से ही चल सकता है।
2 से 2.9- हल्के भूकंप के झटके
3 से 3.9 -स्पीड होने पर जोर का झटका
4 से 4.9 -स्पीड हाई होने से तेज झटका
5 से 5.9 -स्पीड तेज होने पर घर का सामान हिलना शुरू हो जाता है
6 से 6.9 -इस तीव्रता पर घर की नीव हिल जाती है। इसके अलावा ऊपरी मंजिल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
7 से 7.9- यह अत्यधिक तीव्रता का भूकंप है, जिससे इमारत ढह जाती है
8 से 8.9- तीव्रता में तो सुनामी आने का खतरा ज्यादा होता है

कैसे मेजर करें भूकंप
भूकंप की तीव्रता मापनेे के लिए सिस्मोग्राफ का यूज किया जाता है। इस डिवाइस के जरिए धरती के अंदर होने वाली हलचल का पता लगाया जाता है। जैसे की भूकंप की वेेवलेंथ, भूकंप का सेंटर और फ्रीक्वैैंसी आदि इससे नापा जा सकता है। भूकंप आने से सिस्मोग्राफ के कुछ हिस्से हिलने लगते है, जो की सिस्मोमीटर में रिकॉर्ड हो जाते हैैं। इसके बाद भूकंप की रीडिंग ली जाती हैैं।

क्या होता है सिस्मिक जोन

सिस्मिक जोन का मतलब है कि उस एरिया को डिफाइन करना जहां पर भूकंप का फोकस या सेंटर हो। भारत में इसकी तीव्रता को देखते हुए इसे दो से पांच जोन में डिवाइड किया गया है। सबसे ज्यादा खतरा जोन 5 में होता है। इसमें आठ से नौ तीव्रता वाले भूकंप की आशंका ज्यादा होती है। इंडिया का 11 प्रतिशत हिस्सा फिफ्थ जोन में आता है, 18 प्रतिशत हिस्सा फोर्थ जोन में, 30 प्रतिशत हिस्सा थर्ड जोन में आता है। वहीं बाकी बचा हुआ हिस्सा फस्र्ट और सेकंड जोन में आता है।


फोर्थ जोन में है बरेली
भूकंप के झटके बरेलियंस के लिए भी खतरा बन सकते हैं। यह इसलिए कि अपना शहर भूकंप के फोर्थ जोन में आता है। इसके अलावा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, कुशीनगर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, खीरी, बहराइच, गोण्डा, मथुरा, अलीगढ़, बदायूं, बरेली, बस्ती, संत, कबीरनगर, देवरिया और बलिया के कुछ हिस्से आते हैैं।

भूकंप आने पर क्या करें
यूं तो भूकंप का पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है, पर इसको लेकर कुछ प्रिकॉशन जरूर लेने चाहिए। जैसे की घर को भूकंप रोधी बनाना, भूकंप आने पर फर्नीचर के नीचे जाकर बैठना, घर की बिजली स्विच ऑफ कर लें, भूकंप संभावित जगहों में घर खरीदने से बचें, कोई वाहन न चलाएं, हाई बिल्डिंग वाली जगहों पर न खड़े हों, अगर घर के आस-पास खुली जगह है तभी बाहर निकलें आदि।

छोटे के बाद बड़े झटके की आशंका
बर्कले की भूकंप विज्ञान प्रयोगशाला की ओर से कहा गया है की इस तरह के छोटे-छोटे झटकों के आधार पर यह पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि कोई बड़ा झटका आने वाला है। वहीं सिस्मोलॉजिस्ट का कहना है कि छोटे झटके फॉल्ट लाइन के प्रेशर की वजह से आ सकते हैं। यह भूकंप प्लेट्स के आगे-पीछे, ऊपर-नीचे होने की वजह से आते हैं।

नहीं बनाए जा रहे भूकंपरोधी मकान
आजकल लोग खुद के घर की ब्यूटी को बढ़ाने के लिए स्टाइलिश मकान बनाने लगे हैं, पर इस बात का ध्यान नहीं दे रहे हैं कि घर को भूकंप से कैसे बचाएं। भूकंपरोधी मकान बनाने के लिए मकान को या बिल्डिंग को कॉलम, क्रॉस स्ट्रक्चर और शीयर वॉल के तौर पर खड़ा करें। शीयर वॉल कई पैैनल में बने होनी की वजह से भूकंप के झटकों को रोक लेता है। बिल्डिंग को मजबूती देने के लिए मोमेंट-रेसिस्टेंट फ्रेम और डायाफ्रॉम का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।


जिले में आपदा प्रबंधन विभाग पूरी तरह अलर्ट है। इसको लेकर समय-समय पर वॉलंटियर्स को ट्रेनिंग भी दी जाती है और तैयारियों को परखने के लिए मॉकड्रिल भी की जाती है। इसके बाद भी सभी को प्राकृतिक आपदाओं को लेकर सतर्क रहना चाहिए।
एडीएम एफआर