बरेली (ब्यूरो)। शादी समारोह सिर्फ एक सामाजिक आयोजन भर नहीं है। यह समारोह खुशी के हर पल को पूरा एंज्वाय करने का मौका है। यह ही वजह है कि शादी समारोह में कई रस्में और रिवाज निभाए जाते हैं। इनको निभाने की परंपरा समय के साथ भले ही थोड़ी बदलती गई हो, पुरातन काल से अब तक किसी न किसी रूप में निभाई जा रही हैं। शादी समारोह का एक रिवाज गारी गीत भी रहा।

पुरातन काल से थी परंपरा
यह रिवाज पुरातन काल से ही चला आया। इसमें जब बारात दुल्हन के दरवाजे पर पहुंचती है तो महिलाएं गारी गीत से ही उनका स्वागत करती हैं। इन गीतों में दूल्हे के परिजनों पर चुटीले अंदाज में वार किया जाता है। इस अंदाज-ए-गारी का कोई बुरा नहीं मानता है, बल्कि इसमें खूब हंसी ठिठोली होती है। हर कोई इस गारी गीत का खूब लुत्फ उठाते हैं। समय के साथ शादी समारोह कई चीजें मॉडर्न हुई तो गारी गीत का रिवाज भी गुम सा हो गया। अब नई पीढ़ी इस गारी गीत से पूरी तरह अंजान है।

लोकजीवन का हिस्सा थी गारी
जब किसी के घर शादी होती है तो घर खुशियों से भर जाता है। हर ओर उल्लास छा जाता है। लोग जुटते हैं तो हंसी-मजाक भी खूब होती है। महिलाएं घरों में लोक गीत गाने लगती थी। गारी गीत भी इन्हीं लोक गीतों का हिस्सा थीं। यह लोक गीत दूल्हा और दूल्हन पक्ष के यहां समान तरीके से निभाए जाते थे। इस दौरान जब बारात आती थी। तो दरवाजे पर घर की सभी महिलाएं और लड़कियां दूल्हा पक्ष के सभी लोगों को गारी देकर उनका स्वागत करती थी। यह माहौल अपने आप में ही अद्भुत हुआ करता था।

गारी का स्वरूप
इन गारी गीतों का स्वरूप बड़ा ही चुटीली तथ मनोहारी होता था। इन्हें सुन कर लोग नाराज नहीं, बल्कि आनंदित होते थे। इन गीतों को गाने के पीछे किसी का अपमान करना या नीचा दिखाना उद्देश्य नहीं हुआ करता था। इन गीतों की अपनी अलग ही महिमा थी, लेकिन समय के साथ विवाह समारोहों की यह खूबसूरती भी धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है।

धरि ध्यान सुनो धनुधारी
गारी मिथिला की
धरि ध्यान सुनो धनुधारी
गारी मिथिला की
श्री रघुवर अवध बिहारी
गारी मिथिला की
धनुष यज्ञ सुनि ब्याह उमंग में
धनुष यज्ञ सुनि ब्याह उमंग में
बिनु चि_ी कौशिक मुनि संग में
बनि आये कमंडल धारी
गारी मिथिला की
धरि ध्यान सुनो धनुधारी
गारी मिथिला की

रामायण में आता है प्रसंग
रामचरितमानस में भी गारी गीत का प्रसंग दिया गया है। जब माता जानकी और प्रभु राम का विवाह शुरू हुआ तो जानकी की सखियां राम के पक्ष वालों के स्वागत में गारी गीत गाने लगीं। इसके बाद दूल्हा पक्ष के लोग भी उनसे हंसी ठिठोली करने लगे। रामचरितमानस के इस प्रसंग से भी यह स्पष्ट होता है कि शादी में गारी गीत का रिवाज पुरातन काल से ही चला आ रहा था।

अब डीजे पर डांस का जमाना
आज के टाइम जब किसी के घर में शादी होती है तो घर के सभी लोग अपनी-अपनी तैयारियों में लग जाते है। पहले वाली रस्मों और रिवाजों को न तो कोई जानता है और न ही जानकर निभाने की कोशिश करता है। अब घर की महिलाएं हों या पुरुष, सभी अपने सजने संवरने और डांस करने की फिक्र करता है। बारात में किस गाने पर डांस करेंगे, डीजे में किस गाने पर धमाल मचाएंगे, यही बात जेहन में होती है।

दोनों समुदायों में थी परंपरा
गारी गाती एक संगीतमय रिवायत थी। ऐसा नहीं था कि यह रिवाज सिर्फ सनातन समाज में ही थी, मुस्लिम समुदाय की शादियों में भी यह रिवायत उसी तरह निभाई जाती थी। दोनों ही धर्मो में गारी गीत की परम्परा थी। इस दौरान मुसलमानों में जहां बारात आती थी तो दुल्हन पक्ष की महिलाएं और लड़कियां लडक़े गारी गीत गाकर ही बारातियों का स्वागत करती थी। इस दौरान खूब हंसी ठिठोली होती थी। हिन्दू धर्म में वर-वधू पक्ष की महिलाएं और लड़कियां एक दूसरे के लिए गारी गीत सुनाती थी।

पहले के समय में शादी में जब बारात आती थी तो गेट पर डांस के साथ स्वागत नहीं होता था। लडक़ी की तरफ की सभी महिलाएं दुल्हे पक्ष के लोगों को गारी गीत सुनाती थी। उस दौरान लडक़े वाले भी हंसी- मजाक करते थे।
मीनाक्षी

पहले और अब की शारी की रस्मों में बहुत ही ज्यादा फर्क हो गया है। पहले टाइम में जब किसी के घर में शादी होती थी तो लडक़े वाले बारात लेकर दो दिन तक रुकते थे। इस दौरान डीजे नहीं हुआ करते थे। दुल्हन पक्ष की महिलाएं बारातियों को गारी गीत से ही चिढ़ाया करती थीं। इसका कोई बुरा भी नहीं मानता था।
मीरा गुप्ता