बरेली (ब्यूरो)। इनफोसिस के को-फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति के एक बयान ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा रखी है। पूरा सोशल मीडिया दो भागोंं में बंटा हुआ नजर आ रहा है। एक ग्रुप नारायण मूर्ति को स्पोर्ट कर रहा है, वहीं दूसरा उनके विरोध में हैैं। लोगों का कहना है कि 70 घंटे काम करने का फायदा भी उन्हें मिलना चाहिए। वहीं कंपनी में उस तरह की सुविधाएं भी उपलब्ध होनी चाहिए।

क्या था बयान
नारायण मूर्ति ने कहा कि हम डेवलपिंग स्टेज में है। भारत के हर यूथ को हर रोज 12 घंटे काम करना चाहिए। इससे देश तेजी से तरक्की कर सकेगा। भारत की प्रोडक्टिविटी दुनिया की सबसे लोवेस्ट प्रोडक्टिविटी है। वहीं उन्होंने कहा कि जब तक हम अपनी प्रोडक्टिविटी नहीं सुधार सकते तब तक सरकार से भ्रष्टाचार कम नहीं हो सकता है और हम अदर कंट्रीज के ट्रिमेंडस प्रोग्रेस के साथ कम्पीट नहीं कर पाएंगे। इसके अलावा उन्होंने कहा कि युवाओं को एक हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए, जो नेशन बिल्डिंग में मदद करेगा। जरमन और जापान ने इसी प्रॉसेस पर काम करते हुए देश में काम किया है। जब तक हम अपनी प्रोडक्टिविटी को चेंज नहीं करते तब तक कोई डिसिप्लिन नहीं आएगा और फिर गवर्नमेंट भी कुछ नहीं कर सकती।

ये हैैं ट्वीट्स
1: रजनीश दुबे: वैरिफाइड यूजर ने लिखा कि सैलरी पर भी बात कर लो चच्चा। 70 क्या 24 इन टू 7 काम करेंगे। सैलरी कम, काम ज्यादा कराना चाहते है।

2: शैल: इन्होंने लिखा कि वैसे भी कंपनी ओवर टाइम कराती है और सैलरी कम देती है। देश के विकार के लिए अब क्या बंधुवा मजदूर बन जाए। थोडा देेश को भी कुछ देना सीखों। 70 घंटे काम करने से देश का नहीं आपका विकास होगा।

3: स्वप्निल श्रीवास्तव: इन्होंने लिखा कि इंडिया हमेशा से ही ह्यूमन एक्सपलॉयटर रहा है। कम सैलरी देता है, काम ज्यादा करवाता है। क्वांटिटी जरूरी नहीं है, क्वालिटी मैटर करती है।

4: राजीव शर्मा: राजीव ने लिखा कि इनके स्टेटमेंट को इग्नोर कर देना चाहिए। यह इनका पर्सनल व्यू है। हमें अपनी लाइफ और वर्क में बैलेंस बनाए रखना चाहिए। वर्क स्लेवरी पुराने की बात है।


उनका कहना गलत नहीं है। हम लोगों को काम करना चाहिए, लेकिन मुझे लगता है कि क्वांटिटी नहीं, क्वालिटी मैटर करती है। हमें 70 घंटे काम करने की जरूरत नहीं है। काम 40 से 50 घंटे में भी किया जा सकता है।
प्रो। अनिल बिष्ट, सीएसआईटी डिपार्टमेंट, एमजेपीआरयू


काम 70 घंटे करवाना चाहते हैैं तो उस तरह की सुविधाएं भी देनी चाहिए। अगर हम जापान और जर्मन जैसे देशों की बात कर रहे है तो वहां उस तरह की फैसेलिटीज भी प्रोवाइड की जाती है। यह भारत है, यहां काम चाहिए पर इंवेस्टमेंट कोई नहीं करना चाहता है।
केशवेंद्र द्विवेदी, वेब डेवलपर

नारायण मूर्ति ने कहा कि युवाओं को 70 घंटे काम करना चाहिए। वह गलत नहीं है कंपीट करने के लिए जरूर करना चाहिए, लेकिन क्या भारत में उस हिसाब से ही पे मिल पा रही है। इसके अलावा लर्निंग कमिटमेंट भी होना चाहिए। ।
अहसास अली, सीए, जेनपैक्ट इंडिया

मैैं फॉरेन कंपनी मेें काम कर रही हूं। मुझे सिर्फ छह घंटे ही काम करना पड़ता है। सप्ताह में दो दिन मेरी लीव रहती है। जब मैं मेरे दोस्तों से अपनी लाइफ कंपेयर करती हूं तब लगता है कि मैं सही जगह काम कर रही हूं। यहां न ही कोई वर्क प्रेशर है, न ही भारतीय कंपनीज की तरह ज्यादा वर्क लोड।
प्रिया, वेब डेवलपर टेक सिस्टम