बरेली (ब्यूरो)। वन विभाग अब विरासत वृक्षों को रोपेगा। इस अभियान के तहत ऐसे विशेष वृक्षों से पौध तैयार कर प्रदेश के विभिन्न शहरों में उनका रोपण किया जाएगा। शासन ने 11 जिलों में विरासत वृक्ष वाटिका बनाने का निर्देश दिया है। पढि़ए अवनीशा पाण्डेय की रिपोर्ट

28 प्रजातियां शामिल
उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड ने गैर वन क्षेत्र में अवस्थित 100 वर्ष से अधिक आयु की 28 प्रजातियों को विरासत वृक्ष घोषित किया है। इनमें अरु, अर्जुन, आम, इमली, करील, कुसुम, खिरनी, शमी, गंहार, गूलर, छितवन, चिलबिल, जामुन, नीम, एडनसोनिया, पाकड़, पीपल, पीलू, बरगमद, महुआ, महोगनी, मैसूर बरगद, शीशम, साल, सेमल, हल्ूद और तुमाल सम्मिलित हैं। इनमें बरगद प्रजाति के 363 तथा पीपल प्रजाति के 422 वृक्ष हैं।

सहेजेंगे पौराणिक वृक्ष
वन विभाग ने पुराने वृक्षों को सहेजने के उद्देश्य से 100 से 250 वर्ष आयु के वृक्षों को चिह्नित किया था। जिले से जीरो विरासत वृक्ष घोषित कर सूची शासन को भेजी गई थी। पूरे प्रदेश में 948 विरासत वृक्ष घोषित किए गए हैं। इन वृक्षों का पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व है। इन्हें सहेजने के लिए विशेष अभियान चलाया गया है। वृक्षों के परिवार को पूरे प्रदेश में बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। 11 जिलों में विरासत वृक्षों की पौध तैयार करने के लिए हर प्रभाग को कम से कम 10 विरासत वृक्षों के बीज, पौध या कलम उपलब्ध कराई जाएगी। 948 विरासत वृक्षों का एक पौधा वाटिका में अनिवार्य रूप से रोपित किया जाएगा। वन विभाग के अफसरों का कहना है कि विरासत वृक्ष वाटिका 11 जिलों में बनेंगी। अलग-अलग जिलों के विरासत वृक्षों के बीज या पौध भेजी जाएगी। वाटिका में पौध तैयार कर प्रदेश भर में रोपने के लिए वितरित की जाएंगी।

विभिन्न मानदंड हैं आधार
मानव जीवन के संदर्भ में पेड़ों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए हरे-भरे जीवित पेड़ों को भी सांस्कृतिक अथवा ऐतिहासिक विरासतों का दर्जा दिया जा रहा है। यह जीवित विरासत विभिन्न स्थानों जैसे सडक़ों के किनारे, पार्कों में, जल निकायों के पास, जंगली पेड़ों के बीच, धार्मिक स्थानों में और यहां तक कि निजी संपत्ति में भी पाए जा सकते है। विभिन्न मानदंडों के आधार पर पेड़ों को विरासत का दर्जा दिया जाता हैं। यह भौतिक और अभौतिक मानदंड या गुण, वृक्ष को विशिष्ट बनाते हैं। भौतिक गुणों में वृक्ष की आयु, रूप या आकार हो सकते हैं। इसके अलावा भौतिक कारणों में यह हो सकता है कि पेड़ एक दुर्लभ प्रजाति का हो या उस पेड़ की प्रजाति के विल्पुत होने का खतरा हों। वहीं गैर-भौतिक मानदंड सांस्कृतिक और सौंदर्य संबंधी पहलुओं से संबंधित होते हैं।

पर्यावरण संरक्षण में होंगे मददगार
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि पर्यावरण विशेषज्ञों और प्रदेश सरकार इस तथ्य से सहमत हैं कि विरासत वृक्षों में लंबे समय तक बने रहने का गुण मौजूद है। प्रदेश सरकार चाहती है कि इन पौधों की विरासत बढ़ाने से पर्यावरण संरक्षण में लंबे समय तक सहायता मिलेगी। इसलिए 11 जिलों में तैयार विरासत वृक्ष की पौध पूरे प्रदेश में रोपी जाएगी।

यहां तैयार होंगे पौधे
गोरखपुर, बरेली, अयोध्या, मथुरा, लखनऊ, सीतापुर, प्रयागराज, चित्रकूट, मीरजापुर, वाराणसी व मेरठ जिलों का नाम विरासत वृक्ष की पौधे तैयार करने के लिए चयनित किया गया है। फरवरी 2024 से पहले विरासत वृक्षों के बीज एकत्रित कर 11 प्रभागों को उपलब्ध कराए जाएंगे।

मान्यता वाले होंगे पौधे
दूसरे स्थान से बीज लाकर या कलम लगा कर जो पौध तैयार की जाएगी, वे किसी न किसी मान्यता से संबंधित होंगे। जैसे पीपल की पूजा पाठ में अलग तरह की मान्यता होती है। इसका धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी महत्व है। भगवान बुद्ध ने भी पीपल के वृक्ष के नीचे समाधि लगाई थी।

जिले में विरासत वृक्षों को रोपा जाएगा, इसके लिए तैयारी शुरू कर दी गई है। पहले इसके लिए कलम और बीज एकत्र किया जाएंगे। उसके बाद पौधे रोपे जाएंगे। इस बारे में संबंधितों को जानकारी दे दी गई है।
समीर कुमार, डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर