बरेली (ब्यूरो)। हकलाना आम बात है। इसे स्टर्टरिंग भी कहते हैं। आपने अपने आस-पास कई लोगों को देखा होगा बात करते समय अटक-अटक कर बोलते हैं या फिर रुक-रुककर बात करते हैं। हकलाने को कोई बीमारी समझ लेता है तो कोई इसे जन्मजात कमी। इस परेशानी को सुधारने और जागरूकता फैलाने के लिए इंटरनेशनल स्टटरिंग अवरनेस डे मनाया जाता है।

&म&य और &क&य पर होती है हकलाहट
स्ट्रटरिंग एक डिसऑर्डर होता है। इसकी वजह से कुछ शब्दों को बोलने में कुछ दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा कुछ साउंड या शब्द रिपीट होने लगते हैैं। मनोवैज्ञानिक यशिका वर्मा का कहना है कि यह ज्यादातर दो शब्दों में होता है, म और क।

अलग-अलग होती हैैं वजह
हकलाने के लक्षण एक परसन के पूरे दिन में काफी अलग-अलग हो सकते हैं। सामान्य तौर पर किसी समूह के सामने बोलने या कॉल पर बात करने से परसन का हकलाना अधिक गंभीर हो सकता है। वो एक्टिविटी करना जो उन्हें ज्यादा पसंद हो जैसे कि गाना, पढऩा, या एक फ्लो में बोलना टेम्परैरी हकलाना कम कर सकता है।

मेल में ज्यादा होती है हकलाहट
आम तैर पर लोग तभी हकलाते कं जब वे किसी भी चीज के लिए मेंटली प्रिप्रेयर नहीं होते हैं या फिर कोई ऐसे हालात सामने आ जाएं जो परेशान करने वाले हों तो लोग हकलाने लगते हें। हकलाना एक ऐसी समस्या है जिससे वल्र्ड में करोड़ों लोग पीडि़त हैं, स्टडीज में यह बात सामने आई है कि फीमेल की कंपैरिजन मेल ज्यादा हकलाते हैं। मेल में चार गुना ज्यादा हकलाने की समस्या होती है।

कई होती है वजह

जेनेटिक
कई बीमारियां ऐसी होती हैं, जो जेनेटिक होती हैं। हकलाना भी उनमें से एक समस्या है। साइकोलॉजिस्ट रविंद्र कुमार ने बताया कि अगर किसी फैमिली मेंबर में कोई ऐसा है जो हकलाता है या फिर कभी इस प्रॉब्लम को फेस किया है तो हकलाने की समस्या आपको विरासत में मिल सकती है। इसकी पॉसिबेल्टी कई गुना बढ़ जाती है। बॉडी में हकलाने में कई जींस शामिल होते हैं। हालांकि बायोलॉजिकली जीन्स पूरी तरह से हकलाने के जिम्मेदार नहीं हैं।

ब्रेन फंक्शन
ब्रेन इमेजिंग स्टडीज से पता चला है कि हकलाने वाले लोगों के ब्रेन डेवलपमेंट होने के तरीके में मिक्रो डिफ्ररेंस होता है। स्पीच सिग्नल के ब्रेन में प्रोसेस होने की टायमिंग में फर्क होता है, इसके अलावा ब्रेन के कुछ पार्ट के स्ट्रक्चर में भी कुछ फर्क होते हैं। इसकी वजह से परसन को माइंड में लगता है कि वह बोल चुका है पर वह अटक जाता है।

सिचवेशन फैक्टर
जो लोग हकलाते हैं उनमें एक चीज देखी जाती है कि वे जल्द ही नर्वस हो जाते हैं या फिर जल्द ही प्रेशर में आ जाते हैैं। ऐसे टाइम पर वे अपनी बात सामने नहीं रख पाते हैं। एग्जांपल के लिए जब ये लोग उन लोगों के बीच होते हैं, जो इनके साथ अच्छे से बिहेव करते हैं तो इस समस्या का उन्हें कम सामना करना पड़ता है। वहीं इसके विपरीत जब उनमें ज्यादा दबाव होता है और कई लोगों के बीच उन्हें बात करने को कहा जाता है, तब वो घबरा जाते हैं और अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। प्रेशर के चलते ज्यादा हकलाने लगते हैं।

एनवायरमेंटल इंपैक्ट
कई बार लोग स्टैमरिंग की दिक्कत जन्म से नहीं होती है। हमारे आसपास के एनवायरमेंट का असर किसी के स्टैमर करने पर पड़ता है। साइकोलाजिस्ट याशिका ने बताया कि कुछ लोगों के साथ कुछ बैड एक्सपीरियंस होते हैं, जिसकी वजह से वे हकलाने जैसी प्रॉब्लम में फंस जाते हैैं। इसके अलावा उनके माइंड में उस हॉरर एक्सपीरियंस को लेकर कुछ डर बन जाता है जो उन्हें इस परेशानी से बाहर नहीं निकलने देता है।


क्या लें प्रिकॉशन
याशिका ने बताया कि कुछ प्रैक्टिस से इस प्रॉब्लम से छुटकारा पाया जा सकता है, लेकिन रैगुलर्टी जरूरी है।

थोड़ा रूक कर बोलें
हकलाना रोकने के लिए धीरे-धीरे बोलने का ट्राय करें। पहले सोचें कि क्या बोलना है फिर बोलें। जल्दबाजी करने की वजह से लोग हकलाने लगते हैैं।
कुछ गहरी सासें लेने और धीरे-धीरे बोलने से मदद मिल सकती है।

बात को घुमाकर बोलें
जिस शब्द पर लोग हकलाते हैं उसे आखिर में बोलने का प्रयास करें। ज्यादातर लोगों को &म&य और &क&य बोलने में दिक्कत आती है।

प्रैक्टिस करें
कुछ टाइम निकाल कर रोज प्रैक्टिस करनी चाहिए। वहीं किसी ऐसे के साथ रोज प्रैक्टिस करें जो आपको जज न करें। हकलाने वाले अन्य लोगों के साथ स्वयं सहायता समूह में शामिल होना भी फायदेमंद हो सकता है।

अपने आप को करें रिकॉर्ड
अपनी आवाज़ रिकॉर्ड करने से आपको अपनी प्रोग्रेस को बहेतर ढंग से समझने में मदद मिलती है। यह उन शब्दों पर प्रकाश डालने में मदद कर सकता है, जो आपको हकलाने के लिए प्रेरित करते हैं। इससे आपको वे चीजें सुनने में मदद मिल सकती है जिन पर आप अन्यथा ध्यान नहीं देंगे।


तुतलाने और हकलाने में फर्क
तुतलाने और हकलाने के इलाज के लिए आमतौर पर दवाएं नहीं लीजा सकती है। इसे सिर्फ थेरेपी से ठीक किया जा सकता है। वही जरूरत पडऩे पर सर्जरी भी की जाती, अगर जीभ की शेप और साइज गड़बड़ है तो सर्जरी की जाती है, लेकिन ऐसा कम ही होता है।

हकलाना
रुक-रुक कर बोलना, एक ही शब्द को बार-बार बोलना, तेज बोलना, बोलते हुए आंखें भींचना, होठों में कंपकपाहट होना, जबड़े का हिलना आदि की वजह से होता है।

तुतलाना
उच्चारण की समस्या होना और साफ नहीं बोल पाने की वजह से होता है। र को &ड़&य या &ल&य बोलना आदि होता है।

सिम्पटम्स

ø बोलने में हेल्प करने वाली मसल्स और जीभ पर कंट्रोल नहीं होना।
जेनेटिक वजहें, पैरंट्स को है तो बच्चों में होने के चांस होते हैं।
ø न्यूरोलॉजिकल वजहें यानी दिमाग के लेफ्ट साइड में कुछ गड़बड़ी होना।
ø इन्वाइरन्मेंटल वजहें यानी किसी खास सिचुएशन में हकलाना मसलन फोन पर या इंटरव्यू में या फिर किसी का नाम या एड्रेस पर या फिर किसी शख्स को देखकर नर्वस होना।
ø टेंशन, कमजोरी, डर, थकान या सैड होने पर भी हकलाहट बढ़ जाती है


हकलाना हमारी बॉडी में न्यूरोलॉजिकल एक्टिविटीज के चलते होता है इसे बचाने के लिए लोगों को रेगुलर प्रैक्टिव करनी चाहिए कई बार लोगों में आत्मविश्वास की कमी, बायोलॉजिकल ग्रोथ प्रॉपर नहीं होनेजैसी कई वजह से होता है।
रविन्द्र कुमार, साइकोलॉजिस्ट, मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र

हकलाना किसी भी वजह से हो सकता है। चाहे वह किसी चीज का डर हो या नर्वसनेस लड़कियों के कंपैरिजन में लडक़ों में इसकी अधिकता हो सकती है, क्योंकि कई बार वे जल्दी जवाब देने के चक्कर में अटक जाते हैं। ऐसे में हमें उन शब्दों का काम या फिर बाद में इस्तेमाल करना चाहिए, जिसमें अटकाव महसूस होता है।

यशिका वर्मा, मंडलीय मनोवैज्ञानिक केंद्र