फ्लैग-टीवी देखने और लगातार ऑनलाइन गेम्स से आंखों की भी बढ़ रही प्रॉब्लम

-डॉक्टर्स बोले घर के बाहर खेलेना जरूरी, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का रखें ध्यान

-जंक फूड खाने वाले बच्चों के पेरेंट्स को भी देना चाहिए ध्यान, बदलें बच्चों की आदत

बरेली: घारों के बाहर मस्ती, पार्को में बच्चों की वो शैतानियां कोरोना काल में मनो खो सी गई हैं। शॉपिंग मॉल में भी बच्चों की वह जिद भरी शैतानी और उनका वह शोर अब नहीं सुनाई देता है। कहा जाए इस कोरोना काल में सब कुछ बदल कर रख दिया है। कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल कॉलेजेज मार्च से ही बंद हैं। इस कारण पेरेंट्स बच्चों का भी घरों से बाहर निकलना एक तरह से बंद सा हो गया है। इससे बच्चों के मानसिक विकास पर भी इफेक्ट पड़ा है। जबकि कोरोना संक्रमण फैलने से पहले पेरेंट्स बच्चों को ऑनलाइन गेम्स खेलने के लिए मोटिवेट करते थे, लेकिन अब बच्चों को घरों में रहकर समय बिताने के लिए कुछ है तो टीवी और मोबाइल आदि। इसके साथ बच्चों को घर पर खाली रहने जंक फूड खाने की आदत बढ़ी है। इससे बच्चे मोटापे का भी शिकार हो रहे हैं।

पार्काे में भी नहीं दिखते बच्चे

कोरोना काल में अब शाम को पार्को में भी बच्चों के लिए लगे झूलों पर सन्नाटा दिखाई देता है। बच्चों का उनके पेरेंट्स ने ही पार्को में खेलना कूदना तक बंद करा दिया है। शॉपिंग मॉल्स में भी अब जंपिंग आदि करते बच्चे नहीं करते दिखेंगे और न ही उनका वह शोर सुनाई देता है। बच्चों की वो मस्ती, वो शैतानियां मानो कहीं खो सी गई है। जिसके चलते वे अवसाद का शिकार भी हो रहे हैं।

ऑनलाइन स्टडी भी मुश्किल

जहां एक तरफ बच्चों का खेलना कूदना बंद हो गया तो वहीं दूसरी तरफ ऑनलाइन स्टडी और खाली समय वीडियो गेम खेलने का प्रतिकूल असर दिखाई दे रहा है। इससे बच्चे अब चिढ़चिढ़े हो रहे हैं। मानोचिकित्सकों का कहना है कि घूमने फिरने सहित बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी स्कूल बंद होने और स्कूल लाइफ पर ब्रेक लगने का सीधा असर बच्चों के मन और मस्तिष्क पर पड़ रहा है। ऐसे में बच्चे भी डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। लगातार घर में रहने से वह अलग-अलग समय में कुछ न कुछ खाने की मांग करते हैं। इसमें भी सबसे अधिक फास्ट फूड खाने की मांग करते हैं जिसमें बर्गर, फ्रेंच फ्राइज, चाउमीन, मोमोज जैसे जंक फूड खाने भी आदत बढ़ रही है। जहां जंक फूड खाने की आदत बच्चों में दिन व दिन बढ़ रही तो वहीं खेलकूद का भी समय नहीं मिल पा रहा है। इसका सीधा इफेक्ट बच्चों की बॉडी पर पड़ रहा है और वह मोटापे का शिकार हो रहे हैं। एक्सपर्ट की माने तो बच्चों को अधिक जंक फूड खाने से जहां मोटापा बढ़ता है तो वहीं मेमोरी भी वीक होने का खतरा रहता है।

ऑनलाइन क्लासेस के दौरान बच्चे क्लास के बीच में ही गेम खेलना शुरू कर देते हैं। इससे मोबाइल में जो ब्लू इनविजिबल लाइट्स निकलती है जो आंखों को नुकसान करती है। बच्चे लगातार पलक बिना झपकाए स्क्रीन को देखते हैं इसकी वजह से आंखों में रूखापन आ रहा है। इससे आंखों की मासपेशियों पर भी इफेक्ट पड़ रहा है। कई बच्चों को इस कारण चश्मा तक लगाना पड़ गया है।

डॉ। एके गौतम, एमएस, आई स्पेशलिस्ट

लॉकडाउन के बाद से बच्चे घरों में ही रह रहे हैं। इससे कहीं न कहीं मौका लगते ही बच्चे जंक फूड खाने की आदत से बना लिए हैं। ध्यान देना होगा कि बच्चे की च्वॉइस भी पूरी करें और डायट भी पूरी हो। पिज्जा बर्गर की जगह स्टफ पराठा, पनीर पराठा दे। इससे वह टेस्टी भी होगा। फैमिली मेंबर्स के साथ बैठकर खाना खाएंगे तो बच्चों को भी साथ में खाने की आदत हो जाएगी।

डॉ। रोजी जैदी, डायटिशियन

बच्चों को घर पर लव प्वाइंटिंग होता है जबकि स्कूल में लर्निग प्वाइंट होता है। स्कूल में स्टडी करने की क्वालिटी होती है। लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन टेक्निकल एजुकेशन है। स्कूल में पढ़ने के दौरान बच्चा मानसिक रूप से तैयार होता है लेकिन घर में बच्चा सिर्फ पढ़ता है मानसिक रूप से तैयार नहीं होता है। दूसरी तरफ बच्चों में चिड़चिड़ापन तो लॉकडाउन के दौरान बढृ़ा है। बच्चों में फिजिकली और साइकोलॉजिकली एनर्जी अधिक रहती है। इस एनर्जी को अगर सही चैनल नहीं मिले तो इमोशनल सिमटम्स आ जाते हैं। ऐसे में पेरेंट्स को चाहिए वह बच्चों से बात करें, उन्हें किसी काम में इन्वॉल्व करके रखें।

डॉ। सुविधा शर्मा, साइकोलॉजिस्ट