शिद्दत की गर्मी में भी छोटे बच्चे रख रहे हैं रोजा

बच्चे कहते हैं गर्मी है तो क्या, इबादत करने से नहीं हटेंगे पीछे

BAREILLY: रमजान का पाक महीना चल रहा है। इस बार रमजान गर्मी के सीजन में है। गर्मी ऐसी है कि रोजे रखना बड़े-बड़ों के लिए आसान नहीं। दिन गुजरते-गुजरते हलक सूख जा रही है। प्यास की वजह से लोग परेशान हो जाते हैं, लेकिन अल्लाह का हुक्म मानने के लिए लोग रमजान के पाक महीने में रोजा जरूर रखते हैं। बड़े तो रोजा इसलिए रखते हैं कि उन पर रोजा रखना वाजिब (जरूरी) है। जबकि बच्चे रोजा वाजिब न होने के बावजूद बड़ों की तरह ही रोजा रख रहें हैं और उनके जोश के आगे गर्मी का असर फीका पड़ जा रहा है।

जरूरी नहीं कि बच्चे रखें रोजा

शरीयत के मुताबिक लड़कों पर रोजा और नमाज़15 वर्ष की उम्र और लड़कियों पर नौ वर्ष की उम्र से होने पर ही वाजिब (जरूरी) होता है। जबकि, इससे कम उम्र वाले यदि रोजा न भी रखें तो कोई हर्ज नहीं है, लेकिन बड़ों के ही नक्शे कदम पर चलते हुए तमाम बच्चे रमजान में पूरी शिद्दत के साथ इबादत कर रहे हैं।

नहीं डिगा पा रही गर्मी

इन दिनों जबरदस्त गर्मी पड़ रही है। पारा 40 के आसपास है। जबकि, ठंड के दिनों के मुकाबले गर्मी में रोजा ज्यादा देर का होता है। बरेली में इस वक्त रोजा करीब 15 घंटे से ज्यादा का है। ऊपर से चिलचिलाती धूप भी, लेकिन बच्चे इस भीषण गर्मी में भी रोजा रख रहे हैं। उनके इस हौसले को गर्मी भी डिगा नहीं पा रही है।

इबादत में बड़ों से कम नहीं

रमजान इबादतों का महीना है। हर कोई इस महीने में ज्यादा से ज्यादा इबादत करना चाहता है। बात बच्चों की करें तो वह भी बड़ों से इबादत करने में कहीं से कम नहीं है। सुबह उठकर सहरी करना। इसके बाद पांच वक्त की फज्र की नमाज फिर जोहर, अस्र और मगरिब, इशा की नमाज अदा करते हैं। इतना ही नहीं वह कुरान की तिलावत रमजान के इस पाक महीने में जरूर कर रहे हैं। इसके साथ ही वह अल्लाह से खुद को नेक रास्ते पर चलाने की दुआ कर रहे हैं।

क्या कहना है बच्चों का

10 वर्ष के हसन जैदी और 9 वर्ष के मोहम्मद जमा भी अपने पूरे परिवार के साथ रोजा रख रहे हैं। दोनों बच्चों ने पिछले वर्ष से रोजा रखना शुरू किया था। हसन कहते हैं कि उन्होंने रोजा अपने पेरेंट्स को देखकर रखना शुरू किया। गर्मी के बावजूद पेरेंट्स ने कभी भी रोजा रखने से मना नहीं किया। बल्कि, हौसला ही बढ़ाया। वहीं जमा का कहना है कि इबादतों का महीना है। उनके घर वाले इबादत करते हैं तो वह क्यों पीछे रहें। दोनों ही बच्चे सुबह से शाम तक इबादत में मसरूफ (व्यस्त) रहते हैं। कुरान की तिलावत, नमाज पढ़ते हैं।

मिलती है खुशी

अंजुमन शमशीरे हैदरी के सदस्य अदील जाफरी का कहना है कि बच्चों पर रोजा रखना वाजिब (जरूरी) भी नहीं है। बावजूद वह रोजा रखने में बड़ों से कम नहीं हैं। ऐसे बच्चे एहतराम के लायक हैं। उनके हौंसले को देखकर खुशी मिलती है।