रियलिटी चेक
- डिस्ट्रिक्ट में खोजे नहीं मिलती हेल्पडेस्क, ओपीडी में है पर नजर ही नहीं आती
- प्रतिदिन पहुंचते हैं करीब दो हजार से ज्यादा पेशेंट, नए पेशेंट्स को होती है परेशानी
BAREILLY:
मरीजों और उनके तीमारदारों की मदद के लिए डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में खोली गई 'हेल्प डेस्क' लापता है। गांव-गिरांव से आए मरीज और उनके तीमारदार जानकारी के अभाव में वह पर्चा बनवाने से लेकर इलाज के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं, लेकिन उन्हें सही जानकारी देने के लिए हेल्प डेस्क नहीं मिलती। किसी मरीज को हेल्प डेस्क मिल भी जाती है, तो वहां ताला लटका रहता है। मरीजों की समस्या का हल ढूंढने के लिए दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में 'लापता हेल्पडेस्क' को खोजने का 'रियलिटी चेक' किया तो एक व्यक्ति भी पता नहीं बता सका। कहां और कैसे मिली हेल्पडेस्क पढि़ए
स्टाफ ही बता पाया हेल्प डेस्क का पता
करीब साढ़े 11 बजे दैनिक जागरण आईनेक्स्ट टीम डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंची। सीएमएस ऑफिस के सामने खड़े कुछ लोगों से पूछा गया कि हेल्प डेस्क कहां है, तो वह कुछ बता नहीं सके। पर्चा कहां बनता है, इसके बारे में उन्होंने जरूर बता दिया। पर्चा बनने वाले स्थान पर कई मरीजों से पूछा गया कि हेल्प डेस्क कहां है, तो मौजूद लोगों ने पता होने से इनकार कर दिया। हेल्प डेस्क के बारे में पर्चा बना रहे स्टाफ से पूछा गया, तो उसने इमरजेंसी वार्ड में हेल्पडेस्क होने की जानकारी दी। 20 मिनट की पूछताछ के बाद टीम इमरजेंसी स्थित हेल्पडेस्क पहुंची, तो वहां बड़ा सा ताला लटका मिला। पूछने पर पता चला कि शाम तीन बजे ओपन होती है।
हेल्प डेस्क का नया पता मिला ओपीडी
इमरजेंसी के पास मौजूद हेल्पडेस्क कार्यालय के बारे में जब डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की मैनेजर पूजा चौहान से बात की गई तो उन्होंने कहा कि सुबह से दोपहर 2 बजे तक ओपीडी में ही हेल्पडेस्क चलती है। वहां दो बजे बंद होने के बाद लंच होता है। लंच के बाद दोपहर 3 बजे से इमरजेंसी के पास मौजूद हेल्पडेस्क संचालित होती है। पूछा कि ओपीडी में तो कहीं कोई हेल्पडेस्क नजर नहीं आई? तो बताया कि हेल्पडेस्क के लिए वहां कोई अलग रूम नहीं था। ऐसे में मानसिक रोगी दवा वितरण केंद्र में उसे खोला गया है। पूछा कि ऐसी जगह जहां वह दिखे ही नहीं और जिसके बारे में किसी को पता न हो ऐसी जगह हेल्पडेस्क होने का क्या अर्थ? जवाब पर वह खामोश रहीं।
ताकि पेशेंट को मिल सके राहत
पेशेंट की सुविधा के लिए डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में तीन वर्ष पहले वर्ष 2016 में हेल्पडेस्क बनाई गई। ताकि पेशेंट को दौड़भाग न करनी पड़े। यहां पहुंचकर पेशेंट इलाज संबंधी जानकारियां हासिल कर सके। मसलन, पर्चा कहां बनेगा, ओपीडी, इमरजेंसी, महिला या जनरल वार्ड, ब्लड यूनिट, चाइल्ड यूनिट, एनआरसी सेंटर समेत अन्य डिपार्टमेंट की लोकेशन लेकर वहां पहुंच सकें, लेकिन ओपीडी में बने हेल्पडेस्क के बारे में हॉस्पिटल स्टाफ को तो जानकारी है, लेकिन तीमारदारों को नहीं। जब सैक ड़ों की तादाद में हर दिन यहां पेशेंट पहुंच रहे हैं और उन्हें इसका पता ही नहीं तो आखिर ऐसी 'लापता हेल्पडेस्क' होने का क्या मतलब?
एक नजर में
- 2016 अप्रैल में बनी हेल्पडेस्क
- 1400 परडे पहुंचते हैं पुराने पेशेंट
- 600 परडे पहुंचते हैं नए पेशेंट
- 40 डिपार्टमेंट हैं हॉस्पिटल में
- 350 टोटल बेड हैं हॉस्पिटल में
- 18 डिपार्टमेंट हैं महिला हॉस्पिटल में
हेल्पडेस्क तो मिली नहीं। पर्ची बनाने की जगह और डॉक्टर कहां मिलेंगे यह सब किसी तरह लोगों से पूछकर पता चला। घंटे भर तो यहीं लग गए। अपराह्नन करी साढ़े 11 बजे पहुंचे थे।
मनोज कुमार, निवासी बदायूं
हेल्पडेस्क यहां है नहीं तो लोगों से ही पूछकर सारा काम करना पड़ा। पहली बार आए थे, सोचा था जल्दी निपट जाएंगे लेकिन सटीक जानकारी न मिलने से दौड़भाग करनी पड़ी।
नीरज, निवासी पुराना शहर
खुद को और नाती को दिखाना था। सुबह 8 बजे आए थे। कहां पर्ची बनेगी और किसे दिखाऊं, जल्दी कोई बताता ही नहीं। किसी तरह पूछकर दोपहर 2 बजे तक सारा काम करवाया।
प्रकाशो, निवासी मुरादाबाद
हेल्पडेस्क छोडि़ए इमरजेंसी ढूंढने में ही यहां करीब आधे घंटे लग गए। यहां कोई सीधे बात करने को तैयार नहीं है। इमरजेंसी में बेटे को दिखाना था।
जगदेवी, निवासी बहेड़ी
ओपीडी में हेल्पडेस्क है। पता चला है कि किनारे पर होने की वजह से नजर ही नहीं आती है। जल्द ही हेल्पडेस्क की लोकेशन चेंज कर दी जाएगी ताकि लोगों को राहत मिले।
डॉ। केएस गुप्ता, सीएमएस
हेल्पडेस्क की लोकेशन चेंज करने के निर्देश मिले हैं। बेहतर लोकेशन के लिए स्टाफ से बातचीत की जाएगी। जो जगह सूटेबल होगी वहां हेल्पडेस्क ओपन की जाएगी।
पूजा चौहान, मैनेजर, डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल