। हमारी सड़कें खाली करो

- 400 से ज्यादा ठेले रोजाना घेरते हैं नॉवल्टी चौराहे से घंटाघर तक की आधी से ज्यादा सड़क

- कार्रवाई के नाम पर निगम करता है खानापूर्ति, पुलिस पर भी लग रहे उगाही के आरोप

- जिला अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों व एंबुलेंस को भी झेलनी पड़ती हैं परेशानियां

बरेली। शहर की तमाम मुख्य सड़कों व चौराहों पर अतिक्रमण का बेहद दवाब है। हालात यूं हैं कि दिन और रात में शहर के दो चेहरे देखने को मिलते हैं। एक तरफ जहां दिन में सड़कों पर ठेले, टेंपो-रिक्शा व दुकानों के बाहर निकले रखे सामान के चलते सड़कें गायब हो जाती हैं, वहीं दूसरी तरफ रात की खामोशी में सड़कों का एक-एक इंच नापा जा सकता है। ऐसी ही हालत जिला अस्पताल रोड की है। नॉवल्टी चौराहे से लेकर घंटा घर तक यह सड़क दिन में देखने को ही नहीं मिलती। सिर्फ जाम, अतिक्रमण और प्रदूषण से घिरी होती है। ऐसे में खरीदारी करने बाजार पहुंचने वाले लोगों के साथ ही जिला अस्पताल जाने वाले मरीजों व एंबुलेंस को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वहीं सड़क से अतिक्रमण हटाने के नाम पर नगर निगम व पुलिस महकमा भी महज खानापूर्ति करके खामोश हो जाता है। सड़क के दोनों तरफ अतिक्रमण होने के कारण 40 से 60 फिट चौड़ी सड़क सिमटकर आधी ही रह जाती है।

डेढ़ किमी में 400 से ज्यादा ठेले

जिला अस्पताल रोड पर रोजाना 400 से भी ज्यादा ठेले लगते हैं। कुछ ठेले स्थायी रहते हैं, तो बाकी एक से दूसरे किनारे तक चक्कर लगाते हैं। वहीं व्यापारियों ने आरोप भी लगाया कि पुलिस वाले ठेलों से उगाही भी करते हैं। बताते हैं कि सड़क पर अलग-अलग जगहों पर दिन के हिसाब से उगाही होती है। इंद्रा मार्केट चौराहे पर एक ठेला लगभग 150 रुपये प्रति दिन देता है, वहीं कुछ ठेले 100 रुपये तो कुछ 50 रुपये तक रोजाना देते हैं। वहीं दोनों तरफ बैरियर लगे होने के बावजूद बड़े वाहन व टेंपो सड़क पर फर्राटा भरते हैं। कुछ व्यापारी भी रुपये लेकर अपनी दुकानों के बाहर ठेले लगवा लेते हैं।

खानापुर्ति को चलते हैं अतिक्रमण अभियान

जिला अस्पताल रोड पर दुकानों व रिक्शे-ठेलों से होने वाले अतिक्रमण को लेकर कई बार नगर निगम व अन्य कई सरकारी महकमों में शिकायतें की जा चुकी हैं। कई अभियान भी चल चुके हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है। अभियान चलने से पहले ही व्यापारियों तक खबर पहुंच जाती है, जिससे वह सतर्क हो जाते हैं। कुछ देर को सड़क साफ होती है, लेकिन फिर हालात वैसे ही हो जाते हैं। लोग और मरीज जाम से जूझते हैं, वहीं अधिकारी अपने ऑफिसों में आराम फरमाते रहते हैं।

लॉकडाउन में हुए बेरोजगार भी लगा रहे ठेला

बीते साल कोरोना काल में लगे लॉकडाउन ने कई लोगों की नौकरियां छीनकर उन्हें सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। ऐसे में यह लोग भी अब रिक्शा-ठेला चलाने पर मजबूर हो गए। व्यापारियों का कहना है कि इस बार ठेलों की संख्या भी ज्यादा है। कुछ नए ठेले भी नजर आने लगे हैं। जिला अस्पताल रोड पर शहर का मुख्य रिटेल मार्केट होने के चलते वह भी मुख्य केंद्र बनाता है। बेरोजगारी और परिवार पालने की मजबूरी के चलते भी सड़क पर अतिक्रमण का दवाब बढ़ गया है।

क्या कहते हैं व्यापारी।

सड़क पर ज्यादातर अतिक्रमण ठेले व रिक्शा-टेंपो वालों का है। दोनों तरफ लगने के कारण जगह नहीं बचती और जाम लगता है। निगम को बाजार के लिए नियम निर्धारित करने चाहिए और पुलिस को भी यातायात व्यवस्था सुधारनी चाहिए। - दर्शन लाल भाटिया, कपड़ा व्यापारी

निगम की सख्ती के बाद अब दुकानदारों ने अपना सामान अंदर ही रखना शुरू कर दिया है। सड़क के दोनों तरफ लगने वाले फड़ों और ठेले के चलते समस्या होती है। दुकान के आगे से ठेलों को हटाने के लिए कुछ सामान बाहर रख दिया जाता है। - मदन लाल, कपड़ा व्यापारी

सर्दी के मौसम में ऊनी कपड़ों की बिक्री बढ़ने से ठेले बढ़ जाते हैं। इस बार समस्या कम है। शहर की मुख्य सड़क होने के चलते यातायात का दवाब बना रहता है। निगम व पुलिस को व्यवस्था सुधारने के लिए नियम बनाने चाहिए। - पप्पू भसीन, फुटवियर व्यापारी

सड़क करीब 60 फिट चौड़ी है, लेकिन दोनों तरफ दुकानों, रिक्शे-ठेलों व फड़ों का अतिक्रमण होने के चलते चौड़ाई घटकर आधी रह जाती है। पुलिस भी इस पर ध्यान नहीं देती। अक्सर सड़क पर जाम जैसी स्थिति बनती है। व्यवस्था सुधरनी चाहिए। - राजीव धींगरा, दवा कारोबारी