हर माह होती है जांच

बीसीबी के पीजी डिप्लोमा एनवायरमेंट मैनेजमेंट डिपार्टमेंट की ओर से तकरीबन हर माह ही ड्रिंकिंग वाटर की जांच की जाती है। इसमें स्टूडेंट्स जिले के डिफरेंट हिस्सों से ड्रिंकिंग वाटर का सेंपल लेकर आते हैं और फिर की जाती है इस पर रिसर्च। रिसर्च की रिपोर्ट इस बात को साबित करती है कि बरेली के कई हिस्सों में ड्रिंकिंग वाटर पूरी तरह से प्योर नहीं होता है और मजबूरन लोगों को ऐसा पानी पीना पड़ रहा है। हालांकि की यह अलार्मिंग सिचुएशन नहीं मानी जा रही है फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ऐसे पानी को लगातार पीया जाए तो लोगों को आंत और लीवर से रिलेटेड प्रॉब्लम फेस करनी पड़ सकती है।

होता है उतार चढ़ाव

बीसीबी के पीजी डिप्लोमा एनवायरमेंट मैनेजमेंट डिपार्टमेंट के इंचार्ज डॉ। डीके सक्सेना ने बताया कि रिसर्च के दौरान कई स्थानों के ड्रिंकिंग वाटर में हार्डनेस, आयरन, मैग्नेशियम, क्लोरिन की स्मैल, टोटल डिसॉल्व सोलिड (टीडीएस) की मात्रा ज्यादा पाई गई है। साथ ही पानी में वैक्टेरियल भी काउंट किये गए हैं।

डोजर से होता है purification

रावत के एकॉर्डिंग सिटी में टोटल 22 ओवर हेड वाटर टैंक है। भूमिगत जल को इन्ही टैंकों में स्टोर किया जाता है। स्टोर्ड वाटर की सप्लाई जरूरतन सिटी के हर पार्ट में की जाती है। हर ओवर हेड टैंक में इलेक्ट्रीकल और मैन्यूल वाटर प्योरीफिकेशन सिस्टम रखा गया है. 

न काफी साबित होते इंतजाम

कुतुबखाना निवासी सुधीर ने बताया कि उनके घर में लम्बे समय से मटमैला पानी आ रहा है। पानी को बिना ब्वॉयल किए नहीं यूज किया जा सकता है इसलिए सप्लाई के पानी को पहले फिलटर किया जाता है फिर ब्वॉयल करके ही पीते है। ऐसा ही कुछ रामपुर गार्डन निवासी निधि का भी कहना है।

क्या है standard

- हार्डनेस-300 मिलीग्राम पर लिटर

- टीडीएस-200 मिलीग्राम पर लिटर

- कलर-10 एचएजेड

- पीएच-6.5 से 8

- कैलशियम-75 मिलीग्राम पर लिटर

- कॉपर- 0.05 मिलीग्राम पर लिटर

- आयरन- .3 मिलीग्राम पर लिटर

- मैग्नेशियम-.1 मिलीग्राम पर लिटर

- क्लोराइड- .250 मिलीग्राम पर लिटर

- सल्फेट-150 मिलीग्राम पर लिटर

- नाइट्रेट-45 मिलीग्राम पर लिटर

- फ्लोराइड-.6 से 1 मिलीग्राम पर लिटर

नोट:-ड्रिंकिंग वाटर में अगर ये सभी अपने तय पैमाने से ज्यादा पाये जाते हैं तो फिर वो पानी पीने लायक नहीं माना जाता है.

City में 56 हजार water connections

बीएमसी वाटर डिपार्टमेंट के आकड़ों के एकॉर्डिंग सिटी में 56 हजार वाटर कनेक्शन है। वाटर डिपार्टमेंट के असिसटेंट इंजीनियर आरबी रावत ने बताया कि डिपार्टमेंट सिटी में वाटर सप्लाई के लिए भूमिगत जल को ही यूटीलाइज करता है। इसलिए प्योरीफिकेशन की रिक्वायरमेंट कम होती है लेकिन एहतियातन हर चार मंथ पर ओवर हेड टैंक को साफ किया जाता है। लास्ट टाइम वाटर डिपार्टमेंट ने सिटी के सभी ओवर हेड वाटर टैंक को दिसंबर में साफ किया गया था।

Infected water से घेरती हैं बीमारियां 

फिजिशियन सुदीप सरन ने बताया कि इलाज के लिए आने वाले मैक्सिमम केसेज पेट के इंफेक्शन के होते है। पेट से रिलेटेड मैक्सिमम इंफेक्शन इन्फेक्टेड वाटर को यूज करने से होते है। इंफेक्टेड वाटर से आंत और लीवर से रिलेटेड बीमारियां हो जाती है। बदलते मौसम में ऐसे मामले बढ़ गए है। वोमिटिंग, एसीडिटी, पेट में दर्द, एठन-मरोड़ और लूज मोशन की प्रॉब्लम बढ़ जाती है। इसके अलावा लीवर से रिलेटेड डिसिजेज में ज्वाइंडिस, लीवर की कमजोरी, भूख न लगना और हेल्थ डाउन हो जाती है। इसके अलावा संक्रमित जल से हैजा और टाइफाइड जैसी बीमारियां की पॉसिबिलिटी भी कम नहीं रहती है।

लीकेज और पुराना पाइप मुख्य वजह

डॉ। डीके सक्सेना ने बताया कि ड्रिंकिंग वाटर में ऐसी प्रॉब्लम आने की यहां मुख्य कारण पाइप में लिकेज और उसका काफी पुराना हो जाना है। उन्होंने बताया कि लिकेज होने की स्थिति में पाइप के आसपास मौजूद वैक्टेरिया पाइप के अंदर आ जाते हैं जो पानी को प्रदूषित करते हैं वहीं पाइप के काफी पुराने होने से पाइप में मौजूद मेटल पार्टिकल पानी में घुल रहे हैं। वाटर डिपार्टमेंट द्वारा बिछाई गई पाइप लाइन तकरीबन 50 साल से भी ज्यादा पुराने हो चुके हैं जबकि पाइप लाइन को 20 साल बाद चेंज कर देनी चाहिए।

कैसे करें अपना बचाव

-फिजिशियन सुदीप सरन ने बताया कि सप्लाई के पानी को डायरेक्ट नहीं पीना चाहिए। इसके लिए इन मेथेड को एडॉप्ट करना चाहिए।

-सप्लाई से आने वाले पानी को उबालकर ही पीना चाहिए।

-पानी को प्योरीफिकेशन के लिए फिल्टर का यूज किया जा सकता है।

-बाहर का पानी पीने से परहेज करना चाहिए।

-घर में आरओ और प्योरीफिकेशन सिस्टम के थू्र आये पानी को ही यूज करें।

Report by: Gupteshwar Kumar/Abhishek Mishra