my father is real hero

आठ साल के बेटे के हाथ से मां का आंचल छूटा तो पिता से उसक ा अकेलापन देखा नहीं गया। बेटे के लिए उन्होंने अपनी इंडियन आर्मी की नौकरी छोड़ दी। वह भी उस समय जब वह हवलदार से नायब सूबेदार बनने वाले थे। बेटे की चिंता में नौकरी तो छोड़ दी पर उसकी परवरिश के लिए कहीं न कहीं नौकरी तो करनी ही थी। कुछ दिन जाट रेजीमेंट सेंटर में एक सिविलियन के तौर पर नौकरी की। फिर भी जब बेटे की परवरिश के लिए यह नौकरी ठीक नहीं लगी तो पिता ने दिन-रात मेहनत की और बैंक की जॉब ज्वॉइन की। उसके बाद भी जहां उनकी पोस्टिंग हुई, वहां से टेंपरेरी ट्रांसफर ले लिया। पर बेटे की पढ़ाई पर कोई प्रभाव नहीं पडऩे दिया। वही बेटा बड़ा होकर इंजीनियर बना और विदेश में रहने लगा तो उसे भी पिता की चिंता सताने लगी, तब बेटे ने पापा की शादी कराने का निर्णय लिया और जमाने से लड़कर उसने अपने पिता को वह अनमोल तोहफा दे ही दिया। यह क हानी है मृंगाक भद्रा और उनके बेटे अभिजीत भद्रा की। आई नेक्स्ट के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने अपने संघर्षशील जीवन की दास्तान बयां की।

परवरिश के लिए छोड़ दी जॉब

मृगांक भद्रा अपनी पत्नी के साथ पवन विहार में रहते हैं। उन्होंने 1965 में आर्मी ज्वाइन। उन्होंने 65 और 71 की वार में भी पार्टिसिपेट किया। 1983 में जब उनका बेटा अभिजीत आठ साल का था, तब एक एक्सीडेंंट के दौरान उसकी पत्नी का देहांत हो गया। उस समय वह आर्मी में हवलदार थे। मां की मौत के बाद अभिजीत खोया-खोया सा रहने लगा। बकौल मृगांक मैंने महसूस किया कि उसे किसी साथी की जरूरत है। वह एक अच्छा स्टूडेंट भी था। तो मैंने आर्मी से वॉलंट्री रिटायरमेंट ले लिया और अपने नेटिव टाउन बरेली आ गए। बेटे का एडमिशन भी यहीं के सेंट्रल स्कूल में करवा दिया।

 

शहर भी नहीं छोड़ा

बरेली में आने के बाद उन्होंने जेआरसी में नौकरी की। साथ ही कॉम्पिटिशन में क्वालीफाई करने के  लिए जी-तोड़ मेहनत भी की। मृगांक ने बताया इससे उनकी जॉब बैंक ऑफ इंडिया में लग गई, पर उनकी पोस्टिंग मुरादाबाद डिस्ट्रिक्ट में हुई। इसके  बाद उन्होंने टेंपरेरी ट्रांसफर कराने की तमाम कोशिशें कीं। इसके बाद 1987 से 1991 तक वह टेंप्रेरी रूप से बरेली में ही पोस्टेड रहे पर 1992 में बेटे के इंजीनियरिंग में सेलेक्ट होने के बाद वह फिर से मुरादाबाद वापस चले गए।

बेटे ने भी दिया अनमोल तोहफा

अभिजीत के दोस्त आशुतोष को अपने मां की चिंता सताती थी। वे दोनों जब यूएएस में थे तो दोनों ने ही मां-पापा के सेटेलमेंट के बारे में सोचा। उनकी शादी की प्लानिंग की। इस बात को सबसे पहले अभिजीत ने मृगांक से कहा। तब मृगांक को

यह बहुत ही हास्यास्पद लगा। जब बेटे ने कहा कि वह सभी रिश्तेदारों से बात भी कर चुका है, तो फिर उन्होंने इसे गंभीरता से लिया। अब वह बेटे के इस अनमोल तोहफे से बहुत ही खुश हैं। अभिजीत कहते हैं कि अब हमें पापा के अकेलेपन की चिंता नहीं होती।

पापा ने बहुत संघर्ष किया है

अभिजीत ने बताया जब मां हमारे बीच नहीं रही तो हमारा परिवार कुछ बिखरा सा रहने लगा। पापा के सामने तमाम  समस्याएं भी खड़ी हुईं। पर उन्होंने कभी भी हौंसला नहीं टूटने दिया। निरंतर संघर्ष जारी रखा। फिर धीरे-धीरे हमारी जिंदगी पटरी पर आने लगी। उसी समय मुझे पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ा। फिर पापा के सामने भी अकेलेपन की समस्या थी, लेकिन वह उससे भी संघर्ष करते रहे। पर इस समय जब मैं उन्हें मां के साथ देखता हूं। तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। वास्तव में, माई फादर इज रियल हीरो।

हेल्थ की थी चिंता

मृगांक ने बताया बेटे की पढ़ाई पूरी होने के बाद जब उसकी जॉब लग गई तो उन्होंने जॉब छोड़ दी और घर पर ही रहने लगे। इसके बाद तो उनकी हेल्थ भी कुछ खराब हुई। इससे बेटे को भी पिता की चिंता रहने लगी। उस समय वह यूएस में था और वे बरेली में। ऐसे में बेटे की चिंता बढ़ती ही चली गई। अभिजीत के मुताबिक पापा की हेल्थ की हमें काफी चिंता रहती थी। इसके बाद मेरी मुलाकात यूएस में आशुतोष से हुई, जो कि शिखा (मृगांक की वर्तमान पत्नी) का बेटा था। वह पापा से ही मेरा एड्रेस लेकर मेरे पास आया था। शिखा भी बैंक ऑफ इंडिया में ही जॉब करती हैं, पर ब्रांच अलग होने की वजह से दोनों की मुलाकात नहीं थी।

Report by: Nidhi Gupta