- जुलाई महीने में आ चुके हैं अब तक 20 केस

- बच्चों में मोबाइल से जुड़ी समस्याएं ज्यादा

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मोबाइल फोन का उपयोग आज कल बहुत ही आम है। बच्चे हमारे पास अक्सर आते हैं, जो अपने सिर में दर्द, पढ़ाई में मन नहीं लगने और मा‌र्क्स कम होते जाने की समस्या बताते हैं। लेकिन जब उनकी काउंसलिंग की जाती है तो उसमें अधिकतर केसेस मोबाइल फोन के निकल रहे हैं।

खुश अदा, नैदानिक मनोवैज्ञानिक

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मोबाइल का नशा ड्रग्स और शराब वाले नशे से बढ़कर है। इसकी वजह से बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है। जिस तरह ड्रग्स लेने से किसी में चेंजेज आते हैं ठीक उसी तरह मोबाइल यूज अधिक करने वालों में भी चेंजेज आ रहे हैं। इसका सबसे अधिक असर बच्चो में देखने को मिल रहा है। परिजनों को चाहिए कि वह बच्चों की पहुंच से मोबाइल दूर रखें

डॉ। आशीष कुमार, मनोचिकित्सक

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केस:1

पढ़ाई में नहीं लग रहा बच्चे का मन

शहर के पुराना शहर निवासी एक किशोर कक्षा 8 में निजी स्कूल में पढ़ता है। पेरेंट्स जॉब करते हैं। घर पर अकेला रहकर किशोर पढ़ाई करता था। लेकिन उसे मोबाइल की लत लग गई और उसकी क्लास में लगातार परफार्मेंस गिरने लगी। जिस पर पेरेंट्स उसे मन कक्ष ले गए। तो डॉक्टर ने काउंसलिंग की सलाह दी। काउंसलिंग की गई तो पता चला कि किशोर मोबाइल में बिजी रहने के चलते पढ़ाई में मन नहीं लगा पा रहा है।

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केस: 2

बात-बात पर तोड़फोड़

शहर के सिविल लाइंस एरिया निवासी एक किशोर के परिजन डॉक्टर के पास पहुंचे और बताया कि उनका बेटा मोबाइल में ही लगा रहता है। बताया कि पहले तो बच्चा ठीक था। जब से वह नाइंथ में आया तब से चिड़चिड़ा हो गया। डॉक्टर ने काउंसलिंग की तो पता चला कि पेरेंट्स जब उसे पढ़ाई के लिए कहते हैं तो वह गुस्सा हो जाता है, डांटने पर तोड़फोड़ करने लगता है। डॉक्टर ने उसे समझाया और उसे दवाइयां दीं। पेरेंट्स का कहना है कि अभी भी उसकी काउंसलिंग और दवाएं दी जा रही हैं।

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अगर बच्चा फैमिली मेंबर्स का साथ छोड़ मोबाइल में अधिक समय दे रहा है तो सावधान हो जाइए। क्योंकि आपके बच्चे में मोबाइल की लत लग गई है। इसीलिए वह परिवार के साथ नहीं बल्कि मोबाइल से खेलना अधिक पसंद करता है। कई बार डांटने पर भी बच्चे गुस्सा हो जाते हैं, लेकिन मोबाइल नहीं छोड़ना चाहते। अगर ऐसा आपके बच्चे कर रहे हैं तो बच्चे की डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के मन कक्ष में काउंसलिंग करा सकते हैं। क्योंकि डॉक्टर्स का कहना है कि मोबाइल का नशा ड्रग्स से भी अधिक खतरनाक है। कई पेरेंट्स अपने बच्चों को लेकर मन कक्ष में आ रहे हैं।

एक माह में आ चुके हैं 20 बच्चे

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत मोबाइल नशा मुक्ति के लिए इलाज किया जा रहा है। मौजूदा दौर में मोबाइल फोन हमारी जरूरत बन चुका है। लेकिन मोबाइल का नशा ड्रग्स से भी ज्यादा खतरनाक होता जा रहा है। यह लोगों को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से बीमार कर रहा है। मोबाइल के नशे की गिरफ्त में आए लोगों को इस बुरी लत से छुटकारा दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने अनोखी पहल की है। ताकि लोग स्वस्थ रहे सकें और जरूरत पड़ने पर काउंसलिंग भी करा सकें।

ये आ रहीं समस्याएं

मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक की मानें तो जो बच्चे मोबाइल अधिक यूज करते हैं, उनमें अक्सर नींद न आना, भूख कम लगना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, गुस्सा करना, पढ़ाई में मन न लगना, आंख खराब होने जैसी परेशानियां होने लगती हैं। उन्होंने बताया कि छोटे बच्चों को मोबाइल की लत लगाने में पेरेंट्स ही सबसे अधिक जिम्मेदार होते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि बच्चा उनके काम या आराम में खलल न डाले। लेकिन बाद में बच्चों में लत लग जाती है।

टीनएजर्स की संख्या ज्यादा

मन कक्ष में काउंसलिंग कराने आने वाले पेरेंट्स के साथ जो भी बच्चे आ रहे हैं, उनमें सबसे अधिक टीन एजर्स ही निकल रहे है। जुलाई माह के आंकड़ों पर ही गौर करें तो डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मोबाइल समस्या से संबंधित 20 किशोर चुके हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि सभी बच्चे टीनएजर्स ही निकले।