बरेली (ब्यूरो)। पितृ पक्ष समाप्ति के बाद 26 सितंबर से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं, जो चार अक्टूबर तक चलेंगे। इस बार ये पूरे नौ दिन के होंगे। सोमवार को नवरात्र शुरू होने से मां भगवती गज पर सवार होकर धरा पर आएंगी। सूर्योदय कालीन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्र प्रारम्भ अथवा घट स्थापना की जाती है। दो दिन तिथि व्याप्ति या अव्याप्ति की स्थिति में नवरात्र पहले ही दिन प्रारम्भ होते हैं। यदि प्रतिपदा सूर्योदय के पश्चात् एक मुहुर्त पहले ही समाप्त हो रही है। तो नवरात्र पहले ही दिन प्रारम्भ होते हैे। इस वर्ष आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा का प्रारंभ 26 सितंबर से हो रहा। इस दिन प्रतिपदा सूर्योदय व्यपिनी होकर पूरे दिन रहेगी। हस्त नक्षत्र प्रात: 5:55 बजे के बाद से आरंभ होकर पूरे दिन रहेगा। शुक्ल योग प्रात:काल 8:05 बजे तक तदोपरांत ब्रह्म योग आरंभ होकर पूरे दिन रहेगा।

महानवमी चार अक्टूबर को
बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं। राजीव शर्मा के अनुसार इस दिन मूल नक्षत्र पूरे दिन-रात रहेगा। सरस्वती पूजन 2 अक्टूबर को है। इस दिन मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में मां सरस्वती का आह्वान करें। सायं 6:21 बजे से अन्नपूर्णा परिक्रमा का आरंभ होगा। महाअष्टमी 3 अक्टूबर सूर्योदय कालीन आश्विन शुक्ल मे मनाई जाएगी। यह अष्टमी सूर्योदय के बाद कम से कम एक घटी व्यापिनी तथा नवमी तिथि से युक्त होना चाहिए। सप्तमीयुता अष्टमी को सर्वथा त्याग देना चाहिए। अत: यह तिथि 03 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। निशीथ व्यापिनी अष्टमी में रात्रि 11:35 बजे से रात्रि 12:24 बजे तक महानिशा पूजा संपन्न होगी। अन्नपूर्णा परिक्रमा का समापन दिन में 3:59 बजे तक होगा। सायं त्रिमुहूर्त प्राप्त अष्टमीयुक्त नवमी में महानवमी व्रत अष्टमी व नवमी तिथि के संधि में तंत्र पूजन, हवन होगा। महानवमी 4 अक्टूबर को होगी।

पूजन सामग्री
रोली, मौली, केसर, सुपारी, चावल, जौ, सुगन्धित पुष्प, इलायची, लौंग, पान, सिन्दूर, श्रृगांर सामग्री, दूध, दही, शहद, गंगाजल, शक्कर, शुद्ध घी, जल, वस्त्र, आभूषण, बिल्व पत्र, यज्ञोपवीत, तांबे का कलश, पंचपात्र, दूब, चन्दन, इत्र, चौकी, बिछाने वाला लाल वस्त्र, दुर्गा जी की प्रतिमा, फल, धूप-दीप, नैवेध, अबीर, गुलाल, पिसी हल्दी, जल, शुद्ध मिट्टी, थाली, कटोरी, नारियल, दीपक, रुई आदि।

ऐसे करें कलश स्थापना
सर्वप्रथम एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर, चौकी के समक्ष कलश स्थापना के लिए मिट्टी की वेदी बनायें। उसमें भीगे हुए जौ के दाने बिखेर दें, वेदी के बीच में कलश स्थापना से पूर्व एक अष्टदल कमल बनाएं। कलश के अंदर तीर्थ जल भर दें। उसके ऊपर पंच पल्लव लगाकर उस पर किसी मिट्टी के पात्र में चावल भरकर रख दें, कलश के कंठ में कलावा बांधें। इसके बाद सूखे नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर कलश के ऊपर रखे कटोरे में रख दें। नारियल को सीधा खड़ा करके रखना है।


ऐसे करें पूजा : सर्वप्रथम बाएं हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने ऊपर छिडक़ें, उसके बाद आचमन करें। तदुरांत दिग्बंध करें।
गणपति पूजन : सामने पट्टे पर सफेद वस्त्र बिछा कर, स्वास्तिक बना कर पुष्प का आसन बनाकर गणपति की प्रतिमा स्थापित करें, हाथ में चावल लेकर गणपति का आह्वान करते हुए संकल्प लें और पूजा आरंभ करें। अंत में आरती करें। देवताओं के सम्मुख 14 बार आरती उतारने का विधान है, आरती के बाद पुष्पांजलि देकर शंख का जल, तांबे के पात्र में भरा जल सभी पर छिडक़ें, प्रदक्षिणा करें, नमस्कार करें, अंत में क्षमा प्रार्थना के बाद फिर प्रदक्षिणा करें।


हवन : नवरात्र व्रत एवं उपासना के बाद नवमी के दिन हवन करें। हवन साम्रगी में जौ काले तिल एवं चावल मिलाएं।

विसर्जन : बाएं हाथ में चावल लेकर दाहिने हाथ से देवी-देवताओं पर छिडक़ते हुए मां लक्ष्मी, कुबेर व इष्टदेवी से प्रार्थना करें कि मेरे यहां निवास करो एवं मुझे आशीर्वाद एवं साधना की, उपासना की, पूजा की सफलता प्रदान करते हुए अपने स्थान को गमन करें।

व्रत का पारण : विजयदशमी के दिन समस्त पूजन सामग्री का किसी जलाशय में विसर्जन करें।