- काम आया एचबीएनसी का प्रशिक्षण

- दादी और मां ने बच्चे को दिया केएमसी ट्रीटमेंट

बरेली : सरकारी अस्पताल में और वहां के स्टाफ से इलाज कराने से अभी भी कहीं न कहीं लोग बचते हैं, लेकिन अब स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो रहा है। उचित देखरेख के चलते मासूमों को नया जीवन भी मिल रहा है। ऐसा ही एक केस सैटरडे को सामने आया। ब्लॉक क्यारा के नवीनगर गांव की आशा नत्थो और आशा रफीकन ने ट्रेनिंग के दौरान प्राप्त सीख की बदौलत 2 दिन के बच्चे को हाइपोथर्मिया से बचा लिया।

कैसे बचाई जान

आशा नत्थो ने बताया कि अभियान के दौरान सैटरडे को वह प्रसूता गायत्री के घर पहुंची तो देखा कि बच्चे की दादी उसको आंगन में लिए बैठी हैं। बच्चे के बदन पर सही से कपड़े भी नहीं थे बच्चा बहुत धीरे आवाज में रो रहा था और उसका शरीर बिल्कुल ठंडा था। जब बच्चे को मां की गोद में दिया तो वो ढंग से दूध भी नहीं पी रहा था। जन्म के समय बच्चे का वजन 2 किलो 500 ग्राम था। बच्चे का टेम्प्रेचर 93.2 डिग्री फॉरेनहाइट था जो कि सामान्य से बहुत कम था। इसके बाद उन्होंने बच्चे की मां और दादी की मदद से कंगारू मदर केयर विधि से ट्रीटमेंट देना शुरू किया। कुछ घंटे बाद ही बच्चे का टेम्प्रेचर नॉर्मल हो गया। फिर सीएचसी पर ले जाकर बच्चे को एडमिट कराया। जहां प्राइमरी ट्रीटमेंट के बाद अब बच्चे की हालत में सुधार है।

काम आई ट्रेनिंग में मिली जानकारी

नवजात शिशु की देखरेख करने के लिए हाल ही में आशा कार्यकर्ताओं को गृह आधारित नवजात शिशु की देखभाल के एचबीएनसी की ट्रेनिंग दी गई है जिसमें वह लोगों के घर-घर जाकर नवजात शिशुओं की 42 दिन तक देखरेख कर रही हैं।

हाइपोथर्मिया के लक्षण

बच्चा ठीक प्रकार से ब्रेस्ट फिडिंग नहीं कर पाता है। जिससे उसका पेट नहीं भरता है और वजन कम होने लगता है। उसके हाथ या पैर छूने पर बहुत ठंडे महसूस होते हैं। वह बहुत सुस्त हो जाता है।

बरेली में एचबीएनसी प्रशिक्षित 2500 आशाएं कार्य कर रही हैं जो कि अपने क्षेत्र में बच्चा पैदा होने से 42 दिन तक समय.समय पर उसके घर जाकर उस को ठंड से बचाने के उपाय उसकी मां को बताती हैं। इस ट्रेनिंग के कई मासूमों को जीवनदान मिल रहा है।

जितेंद्र पाल सिंह, डीसीपीएम।