बरेली: एसआरएमएस रिद्धिमा सभागार में संडे को कश्मीरी पृष्ठभूमि पर आधारित नाटक 'हब्बा खातूनÓ का मंचन हुआ। इसमें कश्मीर की मशहूर शायरा हब्बा खातून के जीवन के उतार-चढ़ाव को दर्शाया गया। उनके गरीब परिवार में पैदा होने से लेकर कश्मीर की मलिका बनने तक के सफर का दिल्ली के रूबरू थिएटर ग्रुप के कलाकारों ने बहुत खूबसूरती से मंचन किया।

कलाकारों ने किया भावुक मंचन
नाटक की शुरुआत हब्बा खातून उर्फ जून से होती है जिसे पढऩे लिखने का बहुत शौक होता है। वो बचपन से ही पढऩे की शौकीन रहती हैं, मगर उस समय लड़कियों के पढऩे लिखने को गलत माना जाता था। इसके बावजूद वह अपने परिवार से लड़-झगड़ कर पढ़ती हैं, गरीबी के कारण उनके माता-पिता उनकी शादी कमाल नाम के एक आदमी से कर देते हैं। पति और ससुराल के लोग हब्बा खातून पर जुल्म करते हैं। ससुराल में जुल्म को हब्बा खातून सहती रहीं और अपनी पीड़ा को वह कविताओं और गीतों में व्यक्त करतीं। एक दिन हब्बा का पति उसे पीट रहा होता है जो उसके पिता देख लेते हैं और हब्बा को अपने साथ ले जाते हैं। एक दिन वह अपनी मीठी आवाज में गीत गा रही थीं तो शिकार खेलने आए कश्मीर के बादशाह यूसुफ शाह चक उन पर मोहित हो गए। उन्होंने हब्बा खातून को अपनी रानी बना लिया। यूसुफ शाह के साथ शादी के बाद हब्बा खातून ने जो कविताएं लिखीं, उनमें प्रेम की झलक साफ मिलती है। मुगल बादशाह अकबर ने इसी दौरान कश्मीर पर हमला किया। उन्होंने यूसुफ शाह चक को बंदी बना लिया और पहले दिल्ली, फिर बिहार ले गया। यूसुफ शाह से जुदाई हब्बा खातून के लिए एक बड़ा आघात साबित हुई। उन्होंने यूसुफ शाह की याद में, उससे पुनर्मिलन की आस में कई हृदय विदारक गीत लिखे। अंत में अपने बेटे वली अहद को रियासत सुपुर्द कर निकल पड़ती हैं अपने यूसुफ की तलाश में। सभागार में एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देव मूर्ति, आशा मूर्ति, आदित्य मूर्ति, ऋचा मूर्ति, रूबरू थियेटर के प्रेसिडेंट समीर खान, वाइस प्रेसिडेंट और कोर्डिनेटर मधु शर्मा, रोहित शर्मा और शहर के संभ्रांत लोग मौजूद रहे।