-सोमवार को शीतलाष्टमी पर पूजन का मिलेगा शुभ फल

-16 मार्च को मनाई जाएगी शीतलाष्टम

बरेली:

चैत्र माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला शीतलाष्टमी का व्रत इस बार 16 मार्च यानि सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन देवी दिगम्बरा का पूजन व्रज विधि विधान से करने से रोग और कष्ट दूर होते हैं।

यह है मान्यता

देवी दिगम्बरा गधर्व यानी गधे पर सवार रहती हैं। शूप, मार्जनी यानी झाड़ू एवं नीम के पत्तों से अलंकृत रहती हैं तथा हाथ में शीतल जल का कलश रखती हैं। सभी देवियों की पूजा-आराधना में इस देवी की अर्चना तथा व्रत आदि का अलग ही महत्व है, जिसके करने से व्रती के परिवार में दाह ज्वर, पीत ज्वर, दुर्गन्ध युक्त फोड़े, नेत्रों के सभी रोग, शीतला के फुंसियों के चिह्न तथा शीतला जनित सारे कष्ट.रोग दूर हो जाते हैं।

मिलेगा शुभ फल

बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा ने बताया कि यह व्रत लोकाचार के अनुसार होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गरुवार को भी किया जाता है। शुक्रवार को भी इसके पूजन का विधान है परंतु रविवार, शनिवार अथवा मंगलवार को शीतला माता का पूजन नहीं करना चाहिए। यदि अष्टमी तिथि इन चारों में पड़ जाय तो पूजन अवश्य करना चाहिए। स्कन्द पुराण में चार महीनों में इस व्रत को करने का विधान है। इस बार की विशेष बात यह है कि होली के बाद अष्टमी तिथि को ही सोमवार पड़ रहा है अत: व्रत का कई गुना अधिक शुभ फल प्राप्त होगा।

व्रत का विधान

प्रात: काल शीतल जल से स्नान कर संकल्प करना चाहिए.'मम गेहे शीतलारोगजनीतौपद्रव प्रश्मनपूर्वकआयुरारोग्य ऐश्वर्य अभिवृद्दये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये'

पूजन विधि

बास्योड़ा के दिन प्रात: काल एक थाली में पूर्व संध्या में तैयार नैवेध, हल्दी, दही, धूपबत्ती, जल का पात्र, चीनी, गुड़ और अन्य पूजन आदि सामान सजाकर परिवार के सभी सदस्यों के हाथ से स्पर्श कराकर शीतला माता के मंदिर जाकर पूजन करना चाहिए। होलिका के दिन बनाई गई गुलडि़या की माला भी शीतला माता को अर्पित करने का विधान है। चौराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करने की भी परम्परा है। शीतला माता के पूजन के उपरांत गदर्भ का पूजन कर मंदिर के बाहर काले कुत्ते के पूजन एवं गदर्भ को चने की दाल खिलाने की भी परंपरा है।